tag:blogger.com,1999:blog-42080861827252870782024-03-13T21:43:54.712+09:00अर्ज़ है...कुछ अर्ज़ करने की आरज़ू में अर्ज़ है...अबयज़ ख़ानhttp://www.blogger.com/profile/06351699314075950295noreply@blogger.comBlogger91125tag:blogger.com,1999:blog-4208086182725287078.post-86967099491513349512019-02-19T00:00:00.000+09:002019-02-19T00:00:18.878+09:00उनके घर भले ही कच्चे थे, मगर उनके दिल सच्चे थे<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<b>घर की मुंढेरें सिसक रही हैं,</b> दरवाजे खुद को तन्हा महसूस कर रहे हैं, चौखटें किसी पहाड़ की तरह उदास हैं.. गांव की पगडंडियों को आज भी किसी अपने का इंतज़ार हैं, खेतों में अलसायी हुई पत्तियां किसी के कदमों को छू लेना चाहती हैं.. मगर शायद अब वो कभी नहीं आयेगा, जिसके आने भर से बुजुर्गों के चेहरों पर लाली आ जाती थी, गांव के बच्चे खिलखिलाने लगते थे, चौपाल पर रौनक लौट आती थी.. मगर अब नहीं आयेगा यादव जी का छोरा, अब नहीं आयेगा जगदीश का लड़का, अब नहीं आयेगा छुटकी का भाई, अब नहीं आयेगा बूढ़ी मां का हमेशा बच्चा रहने वाला जवान.. अब कभी नहीं आयेगा उसका सुहाग, जिसके इंतज़ार में उसकी कितनी शामें सूनी गुजर गईं..<br />
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अब कैसे जीतराम की विधवा अपनी छोटी सी उस बच्ची को संभालेगी जिसने अपने पिता का चेहरा तक नहीं देखा.. भगीरथी जी के 3 साल के उस बच्चे का क्या कुसूर था जिसने अपने पिता को मुखाग्नि दी. उनके पिता के आंसुओं को कैसे पोछेंगे.. उन गांव वालों को हम क्या जवाब देंगे जो अपने लाल के लिये आज फफक-फफक कर रो रहे हैं. <b>कोटा के हेमराज मीणा की पत्नी को कौन समझाएगा जिसने अपने पति की शहादत की खबर मिलने के बाद अबतक अपनी मांग का सिन्दूर नहीं पोछा</b>.. राजस्थान के रोहिताश की पत्नी सरस्वती को क्या जवाब देंगे, जिसने 2 महीने पहले ही एक बच्चे को जन्म दिया है, जिसको आखिरी बार देखने के बाद ही रोहिताश वापस ड्यूटी पर लौटे थे.. नारायण लाल के गांव विनोल में सन्नाटा है, हर आंख में आंसू है और दिल में गुस्सा है..उनके पिता को इस बार होली पर बेटे के घर आने का बेसब्री से इंतज़ार था, मगर आयी तो मनहूस खबर आई.<br />
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आगरा के करहई में कौशल कुमार की शहादत की खबर पहुंची तो पूरा गांव आंसुओं से ज़ार ज़ार हो उठा, 4 दिन पहले बेटे से मिलकर लौटे कौशल कुमार के लिये ये आखिरी मुलाकात साबित हुई.. उत्तरकाशी के रहने वाले शहीद मोहनलाल की बेटी गंगा कह रही है <b>"मुझे तो बस पापा चाहिये" </b>बताईये कौन लाकर देगा उसके पापा को ? श्याम बाबू का गांव गम और गुस्से में डूबा हुआ है, पत्नी को होशो हवास नहीं है, बूढ़ी मां के हाथ कांप रहे हैं.. श्याम बाबू का 4 साल का बेटा और 6 महीने की बच्ची है, मगर बच्ची की किलकारियों से गूंजने वाला घर अब चीत्कारों से गूंज रहा है..<br />
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वाराणसी, उन्नाव, मैनपुरी, गोरखपुर, चंदौली, महाजराजगंज, शामली कोई शहर ऐसा नहीं बचा जहां के जवान ने देश के लिये अपनी जान कुर्बान ना की हो.. कन्नौज के प्रदीप की बेटी ने अपने पिता को आखिरी विदाई थी, मगर उसके लबों पर यही था कि उसके <b>"पापा कब आयेंगे"</b>.. है किसी के पास उसका जवाब ? चंदौली के अवधेश यादव को जब उनके 2 साल के बेटे ने आखिरी विदाई दी तो हर किसी का कलेजा मुंह को आ गया, उस नन्हें से बच्चे को शायद ये एहसास भी नहीं था कि कल जिसकी उंगली पकड़कर उसे जिंदगी के सबक सीखना थे, वो साया अब कभी उसके साथ नहीं होगा.. शामली के अमित 22 साल की उम्र में ही देश के लिये अपनी जान कुर्बान कर गये, जबकि शामली के ही प्रदीप छोटे छोटे बच्चों को छोड़कर हमेशा हमेशा के लिये इस दुनिया को अलविदा कह गये..<br />
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मोगा के शहीद जैमाल, तरनतारन के सुखजिंदर, गुरदासपुर के मनिन्दर और रोपड़ के कुलविंदर के घरवालों को हम क्या जवाब देंगे. उनके घरों में बिलखते बच्चे, उनकी मायें कैसे अब उनके पिता के बगैर उनके लिये सपने बुनेंगी.. कोई आखिरी बार अपने घर लोहिड़ी पर आया था, किसी को अगली बार होली पर आना था, किसी को अपने बच्चे से मिलना था, किसी को जिन्दगी के नये ख्वाब सजाने थे.. <b>सुखजिंदर के घर में शादी के 8 साल बाद खुशियां आयीं थीं, मगर अपने 7 महीने के बच्चे को वो ठीक से देख भी नहीं पाये थे और मुल्क के लिये शहीद हो गये</b>.. कुलविंदर की तो इसी साल शादी होने वाली थी, जिस बेटे के लिये मां-बाप सेहरे का ख्वाब देख रहे थे वो घर पर ताबूत में आया. <br />
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असम के शहीद जवान बासुमतारी की बेटी दीदमास्वरी को क्या जवाब देंगे जो मीडिया के कैमरों के सामने बिलख बिलख कर रो रही थी, कौन पोछेगा उस गरीब बाप के आंसू जिसकी जिन्दगी की लाठी बस उसका बेटा था.. बिहार के भोजपुर में जब शहीद मुकेश कुमार को उनके 3 साल के बेटे ने मुखाग्नि दी तो पूरा गांव दहाड़े मार मारकर रो रहा था, बूढ़ी मां को होशो हवास नहीं था और उनकी <b>पत्नी अपनी 4 साल की नन्ही मासूम के इस सवाल का जवाब नहीं दे पा रही थीं कि उसके पापा ताबूत में सो क्यों रहे हैं ?</b><br />
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यूपी से लेकर राजस्थान तक, ओडिशा से केरल तक, कश्मीर से कर्नाटक तक, झारखंड, पंजाब, तमिलनाडु कोई ऐसा सूबा नहीं बचा, जहां के जवानों ने इस मुल्क के लिये शहादत ना दी हो.. उनमें ना कोई हिन्दू था ना कोई मुसलमाँ था वो तो बस हिन्दुस्तानी थे. <b>मगर बदले में हम उन्हें क्या दे रहे हैं, 'नफरत' हम सोशल मीडिया पर ज़हर उगल रहे हैं, हिन्दू-मुसलमान कर रहे हैं</b>. बिना कुछ सोचे समझे इंसानियत का खून कर रहे हैं.. कश्मीर से कन्याकुमारी तक हम खुद ही बंटवारा करने में लगे हैं.. जवानों की शहादत पर मातम मनाने के बजाय ज़हर फैलाकर हम उनकी शहादत का अपमान कर रहे हैं.. कुछ नहीं तो कम से कम हम उन जवानों से ही कुछ सीख लें जो एक साथ रहकर इस मुल्क के लिये शहीद हो गये..<br />
<b>उनके घर भले ही कच्चे थे, मगर उनके दिल सच्चे थे</b><br />
जय जवान, जय हिंदुस्तान<br />
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©अबयज़<!--/data/user/0/com.samsung.android.app.notes/files/share/clipdata_190218_195958_758.sdoc--></div>
अबयज़ ख़ानhttp://www.blogger.com/profile/06351699314075950295noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-4208086182725287078.post-69021753860527368542016-11-27T14:33:00.001+09:002016-11-27T14:33:46.808+09:00अबकी बार खुले में शौच पर वार<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
http://www.ichowk.in/humour/next-surgical-strike-will-be-on-open-defecation/story/1/5058.html<br />
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<div id="p_4" style="color: #565656; font-family: Mangal; font-size: 17px; line-height: 28px; padding: 8px 0px 0px; text-align: justify;">
<strong>'अबकी बार, खुले में शौच पर वार'</strong>. सरकार का ये नया नारा उन लोगों पर और भारी पड़ने वाला है, जो घर में टॉयलट बनवाने के बाद भी दूसरे के खेतों को गंदा करके आते हैं. खुले में शौच करने वालों पर नजर रखने के लिए सरकार की तरफ से कुछ कड़े निर्देश जारी किये गये हैं. जैसे खुले में शौच करने वालों पर ड्रोन से नजर रखी जाएगी. इसरो से भी बात चल रही है और यह काम सैटेलाइट से भी करवाया जा सकता है. रंगे हाथ पकड़े जाने पर उनकी फोटो खींचकर अखबार में छपवाई जाएगी. साथ ही उनका लोटा और डिब्बा ज़ब्त कर लिया जाएगा. अगर इसके बाद भी वो खुले में शौच करता हुआ पकड़ा गया, तो अगली बार उसे जेल की टॉयलेट में भेजने का पूरा इंतज़ाम होगा.</div>
<div id="p_4" style="color: #565656; font-family: Mangal; font-size: 17px; line-height: 28px; padding: 8px 0px 0px; text-align: justify;">
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<div id="p_8" style="color: #565656; font-family: Mangal; font-size: 17px; line-height: 28px; padding: 8px 0px 0px; text-align: justify;">
- नियम लागू होने के बाद हर परिवार को शौचालय बनवाने के लिए हफ्ते भर का समय दिया जाएगा. इस दौरान लोगों को कुछ छूट रहेगी. जैसे हर घर से रोजाना एक ही शख्स खुले में शौच में जा सकता है.</div>
<div id="p_9" style="color: #565656; font-family: Mangal; font-size: 17px; line-height: 28px; padding: 8px 0px 0px; text-align: justify;">
- खुले में शौच में बैठने का अधिकतम टाइम 10 मिनट ही होगा. इस दौरान सिर्फ शौच करना होगा, किसी तरह की बात सोचने की कोई इजाज़त नहीं होगी.</div>
<div id="p_10" style="color: #565656; font-family: Mangal; font-size: 17px; line-height: 28px; padding: 8px 0px 0px; text-align: justify;">
- मानवीय आधार पर दस्त और कब्ज़ वालों को थोड़ी राहत मिल सकती है. उनकी समय सीमा दिन में दो बार हो सकती है.</div>
<div id="p_11" style="color: #565656; font-family: Mangal; font-size: 17px; line-height: 28px; padding: 8px 0px 0px; text-align: justify;">
- महिलाएं परदे का इंतज़ाम करके जा सकती हैं. लेकिन उन्हें अपनी सुरक्षा की गारंटी खुद देनी होगी.</div>
<div id="p_12" style="color: #565656; font-family: Mangal; font-size: 17px; line-height: 28px; padding: 8px 0px 0px; text-align: justify;">
- एक साथ ग्रुप में जाने की इजाज़त किसी को नहीं होगी.</div>
<div id="p_13" style="color: #565656; font-family: Mangal; font-size: 17px; line-height: 28px; padding: 8px 0px 0px; text-align: justify;">
- अगर खेत के मालिक ने शौच करते वक्त रंगे हाथ पकड़ लिया तो उसका खेत साफ़ करने के साथ ही जुर्माना भी भरना पड़ेगा.</div>
<div id="p_14" style="color: #565656; font-family: Mangal; font-size: 17px; line-height: 28px; padding: 8px 0px 0px; text-align: justify;">
- सीनियर सिटीज़न दिन में दो बार जा सकते हैं.</div>
<div id="p_15" style="color: #565656; font-family: Mangal; font-size: 17px; line-height: 28px; padding: 8px 0px 0px; text-align: justify;">
- ये सभी छूट सिर्फ एक हफ्ते तक ही दी जाएगी ताकि इस दौरान आप अपने घर में शौचालय का निर्माण कर सकें.</div>
<div id="p_16" style="color: #565656; font-family: Mangal; font-size: 17px; line-height: 28px; padding: 8px 0px 0px; text-align: justify;">
- बच्चों को खुली छूट होगी, लेकिन गंदगी हुई तो उनकी मां इसके लिए ज़िम्मेदार होगी.</div>
<table cellpadding="0" cellspacing="0" style="color: black; font-family: Mangal; max-width: 730px; text-align: justify; width: 100%px;"><tbody>
<tr></tr>
</tbody></table>
<table cellpadding="0" cellspacing="0" style="color: black; font-family: Mangal; max-width: 730px; text-align: justify; width: 100%px;"><tbody>
<tr></tr>
</tbody></table>
</div>
अबयज़ ख़ानhttp://www.blogger.com/profile/06351699314075950295noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-4208086182725287078.post-60856191344392906512016-11-27T14:24:00.002+09:002016-11-27T14:24:58.364+09:00सोनम गुप्ता बेवफ़ा क्यों है ?<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
http://www.ichowk.in/social-media/truth-revealed-why-sonam-gupta-became-bewafa/story/1/5026.html<br />
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<span style="color: #565656; font-family: Mangal; font-size: 17px; text-align: justify;">10 के पुराने नोट से लेकर 2000 के नए नोट तक सोनम हर बार बेवफ़ा साबित की जा रही है. हिंदुस्तान से लेकर न्यूज़ीलैंड तक और अमेरिका से लेकर यूरोप तक. हर नोट पे बस एक ही नाम, सोनम गुप्ता बेवफ़ा है. लेकिन ये किसी को नहीं पता कि सोनम आखिर बेवफ़ा क्यों हुई?</span></div>
अबयज़ ख़ानhttp://www.blogger.com/profile/06351699314075950295noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-4208086182725287078.post-61177789052810427682016-11-27T14:23:00.001+09:002016-11-27T14:23:18.355+09:00कतार का भी अपना मज़ा है<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
http://www.ichowk.in/humour/a-satire-on-lines-of-bank-after-currency-ban-in-india/story/1/4993.html<br />
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<div id="p_6" style="color: #565656; font-family: Mangal; font-size: 17px; line-height: 28px; padding: 8px 0px 0px; text-align: justify;">
सास बहू सबका दुःख एक जैसा ही है. ऊपर से कमबख्त नमक ने और ज़ायका बिगाड़ दिया. कित्ता अच्छा लग रहा है, पहली बार पूरा देश आटे दाल पर एक साथ चर्चा कर रहा है. नई उम्र के लड़के लड़कियां स्मार्टफोन के साथ और स्मार्ट कैसे बनें इस पर चर्चा कर रहे हैं. शादियों का सीज़न है तो लड़कियों की चिंता आई लाइनर से लेकर सजने संवरने में है. सहेली की शादी में नया सूट भी लेना है. लेकिन इत्ते कम पैसे में सब कैसे होगा.</div>
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अबयज़ ख़ानhttp://www.blogger.com/profile/06351699314075950295noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-4208086182725287078.post-66304534966834393652014-12-17T23:54:00.000+09:002014-12-17T23:55:16.933+09:00इस मातम को कोई नाम ना दो...<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
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<b>हर आंख नम है... </b>हर दिल में ग़म है... ख़ून से सने बस्तों में नन्हें हाथों से लिखी इबारतें रो रही हैं... कॉपी, किताबें, कलम-दवात, स्कूल की बेंच और कुर्सियां... दरो-दीवार सब रो रहे हैं। <b>गणित के खूंसट सर, अंग्रेज़ी की मैडम, उर्दू के मास्साब, बड़े से चश्मे वाले इतिहास के टीचर, गेट का दरबान, स्कूल के खेल का मैदान</b>... ज़मीन से लेकर आसमान तक हर आंख नम है।<br />
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="http://4.bp.blogspot.com/-ovHisqH06-E/VJGYl2uN8NI/AAAAAAAABUQ/L3450mEETAM/s1600/PAK%2BPIC.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" src="http://4.bp.blogspot.com/-ovHisqH06-E/VJGYl2uN8NI/AAAAAAAABUQ/L3450mEETAM/s1600/PAK%2BPIC.jpg" height="213" width="320" /></a></div>
<b>क्लासरूम के रोशनदान में घोंसला बनाने वाले कबूतर, </b>काबक में बैठी चिड़ियों के बच्चे सब रो रहे हैं... जो बच्चे मां से शाम को आने का वादा करके गये थे, वो हमेशा-हमेशा के लिए उससे रूठ कर उस जगह चले गये.. जहां से कोई लौटकर नहीं आता। <b>मां से बिस्तर में दुबककर जन्नत की कहानियां सुनते-सुनते बच्चे सीधे जन्नत ही चले गये। </b><br />
<b><br /></b>
<b>अब कुछ बाकी है...</b> तो सड़कों पर दर्द का समंदर है। इंसान तो छोड़िये शहर में खड़े पत्थरों के बुत आंसुओं से पिघल चुके हैं... शहर की तमाम गलियां इस तरह सूनी हैं.. जैसे उनकी ज़ुबान को ताला लग चुका है। पेशावर के तमाम पार्कों में अब सिर्फ़ सन्नाटा है। आज शाम ढलने वाली है.. लेकिन कोई बच्चा खेलने नहीं आया है.... लोगों की ज़ुबान बोलते-बोलते लरज़ रही है... आंखों से अश्क ज़ार ज़ार बह रहे हैं...<br />
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<b>132 मासूमों की लाशों का ढेर लगा है.. </b>लेकिन एक मां है... जो इस कब्रिस्तान में भी अपने जिगर के टुकड़े को तलाश रही है। मां जानती है.. कि इन बेबस लाशों में अब सांसों का कोई नामों निशां बाकी नहीं है... <b>मां जानती है... कि अब नन्हा सा खिलौना लेकर भी उसका बच्चा आंख नहीं खोलेगा। </b>नई साईकिल देखकर भी उसका जिगर का टुकड़ा उससे नज़र नहीं मिलाएगा..<b> </b><br />
<b><br /></b>
<b>लेकिन ताबूतों के इस ढेर में उसकी उम्मीद अभी बाक़ी है।</b> उसका लख्ते जिगर अब उससे कभी बात नहीं करेगा... उसका बच्चा अब उससे कभी कोई नख़रा नहीं करेगा... <b>जिस बच्चे को मां बचपन में चांद-तारों की कहानियां सुनाती थी, अब वो उन्हीं चंदा मामा के पास चला गया है।</b> आज घर में उसकी पसंद की खीर बनाई थी... आज घर में बड़े अरमान से नरगिसी कोफ़्ते बनाए थे। आज तो बच्चे के लिए कीमे वाली कचौड़ियां भी बनाईं थीं... लेकिन मां को अभी उम्मीद है... उसकी हिम्मत अभी टूटी नहीं है। टूटती सांसों में उसकी उम्मीद अभी बाक़ी है।<br />
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="http://4.bp.blogspot.com/-VPR3KLiZifM/VJGYYCVlJkI/AAAAAAAABUI/QFXsKwtaxlY/s1600/PAK%2BPIC%2B2.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" src="http://4.bp.blogspot.com/-VPR3KLiZifM/VJGYYCVlJkI/AAAAAAAABUI/QFXsKwtaxlY/s1600/PAK%2BPIC%2B2.jpg" height="180" width="320" /></a></div>
<b>लाशों के ढेर में मां अपने बच्चे का बस्ता तलाश रही है</b>.. ये देखने के लिए कि कल जो उसने घर पर स्कूल का काम किया था, उसमें उसे मैडम से गुड मिला या नहीं... ये देखने के लिए कि मैडम ने डायरी में उसकी तारीफ़ में चंद अल्फ़ाज़ लिखे या नहीं... ये देखने के लिए कि आज भी उसके बच्चे ने टिफ़िन से खाना खाया था या नहीं... लेकिन मां ने जब कांपते हाथों से अपने मासूम का बस्ता खोला तो उसका कलेजा मुंह को आ गया..<br />
मां ज़ोर ज़ोर से चीखें मार रही थी... उसकी दहाड़ हर किसी का कलेजा चीर रही थी... उसके बच्चे का बस्ता जगह जगह से छलनी हो चुका था.. कॉपी किताबें रोशनाई के बजाए खून से रंगी थीं... <b><i>टिफ़िन में सुबह के दो पराठे और आम का अचार वैसा ही रखा था, जैसा उसने दिया था... हर रोज़ की तरह आज भी उसके लाडले बच्चे ने खाना नहीं खाया था... आज उसने लंच में खाने के बजाए सीने पर गोलियां खाई थीं... </i></b><br />
उसकी गोद में पला-बड़ा उसका बच्चा उससे दूर चला गया.. बिना कोई शिकवा किये... बिना कोई गिला किये... बिना किसी फ़रमाइश के... लेकिन <b>उस मासूम ने तो जल्लादों की हूरों के लिए अपनी जान कुर्बान कर दी थी...</b> उसे शिकायत तो अल्लाह से भी थी, जब हैवान उसके बच्चों का सीना गोलियों से छलनी कर रहे थे.. और वो ख़ामोशी की चादर ओढ़े इस ख़ौफ़नाक मंज़र का गवाह बना था...<br />
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<b>ऐ-अल्लाह अब सब्र का पैमाना छलकने लगा है...</b><br />
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अबयज़ ख़ानhttp://www.blogger.com/profile/06351699314075950295noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-4208086182725287078.post-61992607435105768772013-11-17T01:37:00.002+09:002013-11-17T01:45:02.963+09:00अलविदा सचिन 'रत्न' तेंदुलकर<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
आज सिर्फ़ क्रिकेट का भगवान नहीं रोया... आज सिर्फ़ बल्ले का शहशांह नहीं रोया... <b>आज भगवान के साथ हिंदुस्तान रोया है... आज भगवान के साथ गेंद और बल्ले को जानने वाला हर शख्स रोया है... आज विकेट और गिल्ली को समझने वाले हर शख्स के आंसू निकले हैं...</b> आज कश्मीर से कन्याकुमारी तक हर हिंदुस्तानी की आंखें नम थीं... क्योंकि आज भारत रत्न रोया है...<br />
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<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="http://4.bp.blogspot.com/-HQ_LX2RztdI/UoehBALYczI/AAAAAAAAA_s/O8xsJljpRi8/s1600/Sachin-Tendulkar-India-So-007.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" height="192" src="http://4.bp.blogspot.com/-HQ_LX2RztdI/UoehBALYczI/AAAAAAAAA_s/O8xsJljpRi8/s320/Sachin-Tendulkar-India-So-007.jpg" width="320" /></a></div>
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पलकों में आंसू लिए लाखों-करोड़ों फैंस अपने शहंशाह को सलामी दे रहे थे... लेकिन ये लम्हों का क़सूर है... कि जिसने क्रिकेट के भगवान को मैदान से जुदा कर दिया... <b>आज आंखों में आंसू थे.. लेकिन दिल में दर्द था... दर्द ये कि लम्हों ने ये ख़ता क्यों की... </b>टीस ये कि लोगों के दिलों में राज करने वाले भगवान ने मैदान को अलविदा कह दिया था...<br />
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<b>आज सचिन अकेले नहीं रोए.. उनके साथ रोया उनके बचपन का वानखेड़े... उनके 24 साल के करियर में कंधे से कंधा मिलाकर खड़ा होने वाला वानखेड़े... उनको क्रिकेट का ककहरा सिखाने वाला वानखेड़े...धूल भरी पिच पर अपने सचिन को बल्ले की बाजीगरी सिखाने वाला वानखेड़े... अपने इस जिगर के टुकड़े को आखिरी विदाई देते वक्त फूटफूटकर रोया...</b>वानखेड़े में किसी के मुंह से अल्फ़ाज़ नहीं फूट रहे थे... लब जैसे थरथरा कर रह गए थे... होंट लरज़ने लगे थे... मांएं अपने आंचल से आंसू पोंछ रही थी... और बच्चे अपने सामने... एक इतिहास बनते हुए देख रहे थे...<br />
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वानखेड़े में जैसे ही मोहम्मद शमी ने वेस्टइंडीज़ के बल्लेबाज़ गैबरेल का आखिरी विकेट चटकाया... स्टेडियम तालियों की गूंज के बजाए... आंसुओं से ग़मग़ीन हो गया...<b> वानखेड़े के हर स्टैंड से सिर्फ़ सिसकियां सुनाई पड़ रही थीं... क्रिकेट का कोहिनूर... जब हाथ हिलाकर स्टेडियम से विदाई ले रहा था... तो हर हिंदुस्तानी का दिल रो रहा था... हर कोई यही कह रहा था... कि ऐ सचिन इस आखिरी लम्हे में हमें ऐसी सज़ा क्यों दी</b>.. और जो लोग इस लम्हे के गवाह नहीं बन पाए... उनका भी दल रो रहा था.. और टीस उनकी भी यही... कि ए भगवान... तू इन्सानों में भगवान बनाता क्यों है... और अगर भगवान बनाता है... तो उन्हें इंसानों से जुदा क्यों कर देता है...<br />
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बेशक क्रिकेट से अपनी जुदाई को मास्टर कभी नहीं भूल पाएंगे... लेकिन आज भी ये सबसे बड़ा दावा है... कि <b>जब आने वाली हज़ार पुश्तें भी क्रिकेट का क ख ग सीखेंगी... तो यही कहेंगी... कि हे भगवान तब हम क्यों नहीं थे... जब भगवान खुद मैदान पर क्रिकेट को अमर करने में लगे थे.... </b>जब भारत रत्न सचिन रमेश तेंदुलकर हिंदुस्तान की शान में चार चांद लगा रहे थे...<br />
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अबयज़ ख़ानhttp://www.blogger.com/profile/06351699314075950295noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-4208086182725287078.post-8282634418375490102013-06-03T02:45:00.001+09:002013-06-03T02:45:46.672+09:00मोबाइल वाला प्यार...<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<br />
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="http://4.bp.blogspot.com/-umZPZJF6Q4U/UauDSYRE8jI/AAAAAAAAApw/htnyCKI7j7M/s1600/Mobile+Love.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" height="296" src="http://4.bp.blogspot.com/-umZPZJF6Q4U/UauDSYRE8jI/AAAAAAAAApw/htnyCKI7j7M/s320/Mobile+Love.jpg" width="320" /></a></div>
<div class="MsoNormal">
<span lang="HI" style="font-family: "Aparajita","sans-serif"; line-height: 115%; mso-bidi-font-size: 11.0pt;"><br /></span></div>
<div class="MsoNormal" style="text-align: center;">
<span lang="HI" style="font-family: "Aparajita","sans-serif"; line-height: 115%; mso-bidi-font-size: 11.0pt;"><b>मोबाइल मनचलों को राहत की सांस देता है</b><o:p></o:p></span></div>
<div class="MsoNormal" style="text-align: center;">
<span lang="HI" style="font-family: "Aparajita","sans-serif"; line-height: 115%; mso-bidi-font-size: 11.0pt;">उदास दिलों को मैसेज की आस देता है<o:p></o:p></span></div>
<div class="MsoNormal" style="text-align: center;">
<span lang="HI" style="font-family: "Aparajita","sans-serif"; line-height: 115%; mso-bidi-font-size: 11.0pt;">सब्र इस बात का है कि जब सो जाते हैं सब
घरवाले<o:p></o:p></span></div>
<div class="MsoNormal" style="text-align: center;">
<span lang="HI" style="font-family: "Aparajita","sans-serif"; line-height: 115%; mso-bidi-font-size: 11.0pt;">मोबाइल माशूका के पास होता है।<o:p></o:p></span></div>
<div class="MsoNormal" style="text-align: center;">
<span lang="HI" style="font-family: "Aparajita","sans-serif"; line-height: 115%; mso-bidi-font-size: 11.0pt;">अब पड़ोसी की छत पर जाना<o:p></o:p></span></div>
<div class="MsoNormal" style="text-align: center;">
<span lang="HI" style="font-family: "Aparajita","sans-serif"; line-height: 115%; mso-bidi-font-size: 11.0pt;">और मुन्ने का ख़त पहुंचाना<o:p></o:p></span></div>
<div class="MsoNormal" style="text-align: center;">
<span lang="HI" style="font-family: "Aparajita","sans-serif"; line-height: 115%; mso-bidi-font-size: 11.0pt;">कितनी पुरानी बात है..<o:p></o:p></span></div>
<div class="MsoNormal" style="text-align: center;">
<span lang="HI" style="font-family: "Aparajita","sans-serif"; line-height: 115%; mso-bidi-font-size: 11.0pt;"><b>अब तो एक घंटी में दिलरुबा दिल के पास
है।</b><o:p></o:p></span></div>
<div class="MsoNormal" style="text-align: center;">
<span lang="HI" style="font-family: "Aparajita","sans-serif"; line-height: 115%; mso-bidi-font-size: 11.0pt;">अच्छी बात ये है कि पकड़े जाने का भी डर
नहीं<o:p></o:p></span></div>
<div class="MsoNormal" style="text-align: center;">
<span lang="HI" style="font-family: "Aparajita","sans-serif"; line-height: 115%; mso-bidi-font-size: 11.0pt;">ढूंढता रहे आपको लड़की का भाई<o:p></o:p></span></div>
<div class="MsoNormal" style="text-align: center;">
<span lang="HI" style="font-family: "Aparajita","sans-serif"; line-height: 115%; mso-bidi-font-size: 11.0pt;">या अब्बा..<o:p></o:p></span></div>
<div class="MsoNormal" style="text-align: center;">
<span lang="HI" style="font-family: "Aparajita","sans-serif"; line-height: 115%; mso-bidi-font-size: 11.0pt;">मोबाइल में न सतीश होगा<o:p></o:p></span></div>
<div class="MsoNormal" style="text-align: center;">
<span lang="HI" style="font-family: "Aparajita","sans-serif"; line-height: 115%; mso-bidi-font-size: 11.0pt;">न सलीम होगा<o:p></o:p></span></div>
<div class="MsoNormal" style="text-align: center;">
<span lang="HI" style="font-family: "Aparajita","sans-serif"; line-height: 115%; mso-bidi-font-size: 11.0pt;">न किशन न जयकिशन होगा.।<o:p></o:p></span></div>
<div class="MsoNormal" style="text-align: center;">
<span lang="HI" style="font-family: "Aparajita","sans-serif"; line-height: 115%; mso-bidi-font-size: 11.0pt;">आपका नाम या तो लल्लू होगा<o:p></o:p></span></div>
<div class="MsoNormal" style="text-align: center;">
<span lang="HI" style="font-family: "Aparajita","sans-serif"; line-height: 115%; mso-bidi-font-size: 11.0pt;">या फिर उल्लू होगा..<o:p></o:p></span></div>
<div class="MsoNormal" style="text-align: center;">
<span lang="HI" style="font-family: "Aparajita","sans-serif"; line-height: 115%; mso-bidi-font-size: 11.0pt;">लेकिन दोस्त उल्लू नाम सुनकर उदास मत होना<o:p></o:p></span></div>
<div class="MsoNormal" style="text-align: center;">
<span lang="HI" style="font-family: "Aparajita","sans-serif"; line-height: 115%; mso-bidi-font-size: 11.0pt;">सनम को इसका दोष मत देना<o:p></o:p></span></div>
<div class="MsoNormal" style="text-align: center;">
<span lang="HI" style="font-family: "Aparajita","sans-serif"; line-height: 115%; mso-bidi-font-size: 11.0pt;">उसकी फ़ोन बुक में कई पप्पू भी होंगे<o:p></o:p></span></div>
<div class="MsoNormal" style="text-align: center;">
<span lang="HI" style="font-family: "Aparajita","sans-serif"; line-height: 115%; mso-bidi-font-size: 11.0pt;">कई उल्लू होंगे</span><span style="font-family: "Aparajita","sans-serif"; line-height: 115%; mso-bidi-font-size: 11.0pt;">,
<span lang="HI">उल्लू के पट्ठे भी होंगे।।<o:p></o:p></span></span></div>
<div class="MsoNormal" style="text-align: center;">
<span lang="HI" style="font-family: "Aparajita","sans-serif"; line-height: 115%; mso-bidi-font-size: 11.0pt;"><b>एक गर्लफ्रेंड पर 4 ब्वॉयफ्रेड का चलन
तो पुराना है</b><o:p></o:p></span></div>
<div class="MsoNormal" style="text-align: center;">
<span lang="HI" style="font-family: "Aparajita","sans-serif"; line-height: 115%; mso-bidi-font-size: 11.0pt;">फिर ये तो मोबाइल प्यार का ज़माना है<o:p></o:p></span></div>
<div class="MsoNormal" style="text-align: center;">
<span lang="HI" style="font-family: "Aparajita","sans-serif"; line-height: 115%; mso-bidi-font-size: 11.0pt;">यहां रॉन्ग नंबर से पहचान होती है<o:p></o:p></span></div>
<div class="MsoNormal" style="text-align: center;">
<span lang="HI" style="font-family: "Aparajita","sans-serif"; line-height: 115%; mso-bidi-font-size: 11.0pt;">फिर फ़ोन से जान और क़रीब होती है।<o:p></o:p></span></div>
<div class="MsoNormal" style="text-align: center;">
<span lang="HI" style="font-family: "Aparajita","sans-serif"; line-height: 115%; mso-bidi-font-size: 11.0pt;">बातचीत से बढ़ती हैं नज़दीकियां<o:p></o:p></span></div>
<div class="MsoNormal" style="text-align: center;">
<span lang="HI" style="font-family: "Aparajita","sans-serif"; line-height: 115%; mso-bidi-font-size: 11.0pt;">लेकिन इस प्यार में न बेक़रारी होती है<o:p></o:p></span></div>
<div class="MsoNormal" style="text-align: center;">
<span lang="HI" style="font-family: "Aparajita","sans-serif"; line-height: 115%; mso-bidi-font-size: 11.0pt;">न मज़ेदारी होती है...<o:p></o:p></span></div>
<div class="MsoNormal" style="text-align: center;">
<span lang="HI" style="font-family: "Aparajita","sans-serif"; line-height: 115%; mso-bidi-font-size: 11.0pt;">अब न इसरार होता है<o:p></o:p></span></div>
<div class="MsoNormal" style="text-align: center;">
<span lang="HI" style="font-family: "Aparajita","sans-serif"; line-height: 115%; mso-bidi-font-size: 11.0pt;">न इक़रार होता है..<o:p></o:p></span></div>
<div class="MsoNormal" style="text-align: center;">
<span lang="HI" style="font-family: "Aparajita","sans-serif"; line-height: 115%; mso-bidi-font-size: 11.0pt;">इज़हार की बात तो छोड़ दीजिए..<o:p></o:p></span></div>
<div class="MsoNormal" style="text-align: center;">
<span lang="HI" style="font-family: "Aparajita","sans-serif"; line-height: 115%; mso-bidi-font-size: 11.0pt;"><b>बैटरी के साथ प्यार वीक होता जाता है...</b><o:p></o:p></span></div>
<div class="MsoNormal" style="text-align: center;">
<span lang="HI" style="font-family: "Aparajita","sans-serif"; line-height: 115%; mso-bidi-font-size: 11.0pt;">वेलेडिटी के साथ टल्कटाइम ख़त्म हो जाता
है..<o:p></o:p></span></div>
<div class="MsoNormal" style="text-align: center;">
<span lang="HI" style="font-family: "Aparajita","sans-serif"; line-height: 115%; mso-bidi-font-size: 11.0pt;">और सिम बदलने के साथ मोबाइल से प्यार डिलीट
हो जाता है।।</span><span style="font-family: "Aparajita","sans-serif"; line-height: 115%; mso-bidi-font-size: 11.0pt;"><o:p></o:p></span></div>
</div>
अबयज़ ख़ानhttp://www.blogger.com/profile/06351699314075950295noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-4208086182725287078.post-29826532976157297172013-05-05T00:25:00.000+09:002013-05-05T00:43:58.297+09:00बकरी हाज़िर हो...<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<br />
<em><strong>अदालत में अजीब मुकदमा<br />गवाह भी बकरी <br />और सबूत भी बकरी</strong></em> <br />
<br />
मामला समझ से थोड़ा परे चला जाता है लेकिन यही है इस मुकदमे की हकीकत...एक बकरी के मालिकाना हक के लिए चला ऐसा केस जिसमें फैसला भी बकरी की गवाही से ही हुआ<br />
दरअसल इस अजब गजब मुकदमे की शुरुआत हुई एक बकरी पर हुए विवाद से...<br />
<br />
खंडवा के <b>अकबर ने गजराज नाम के एक शख्स से 3700 रुपए में एक बकरा खरीदा था.</b>..लेकिन जब अकबर इस बकरे को बेचने के लिए बाज़ार में गया तो विनोद बारेला नाम के एक शख्स ने बकरे पर अपना मालिकाना हक जता दिया <br />
विनोद के इल्जाम के मुताबिक अकबर का बकरा दरअसल उसका था जो चार दिन पहले गुम हो गया था...और इसी वजह से <b>विनोद ने अकबर और गजराज के खिलाफ चोरी का मुकदमा भी दर्ज करवा दिया था </b><br />
जिसके बाद पुलिस ने दोनों आरोपियों को पकड़ लिया था<br />
बकरी चोरी का इल्जाम लगते ही अकबर सकते में आ गया...क्योंकि ये साबित करना बहुत मुश्किल था कि बकरा उसका है और उसने बकरा चोरी नहीं किया था...खुद को बचाने के लिए अकबर ने कोर्ट की शरण ली औऱ फिर शुरु हुआ ये अजीबोगरीब मुकदमा <br />
<br />
<br />
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="http://2.bp.blogspot.com/-TVNxjdMrhcY/UYUnj81blVI/AAAAAAAAApI/l5gFPmKMmrE/s1600/court_room.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" height="180" src="http://2.bp.blogspot.com/-TVNxjdMrhcY/UYUnj81blVI/AAAAAAAAApI/l5gFPmKMmrE/s320/court_room.jpg" width="320" /></a></div>
<br />
तस्वीरें उसी वक्त की हैं जब दोनों पक्षों के साथ बकरियों और बकरे को कोर्ट में पेश किया गया था...इन तस्वीरों में आप देख सकते हैं कैसे ये तीनों कोर्ट के सामने खड़े हैं...इस अजीबोगरीब मुकदमे को देखने के लिए लोगों की भीड़ भी मौजूद थी....<br />
<br />
अदालत के सामने दोनों पक्ष दो बकरियों को लेकर आए औऱ दोनों का दावा था कि उनके पास विवादित बकरे की असली मां थी <br />
<b><i>मामला पेचीदा था औऱ मुश्किल भी...विवादित बकरा काले रंग का था और जिन बकरियों को मां बताने का दावा किया जा रहा था वो दोनों भी काली थीं...जज साहब के लिए भी फैसला देना आसान नहीं था...</i></b><br />
<br />
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="http://2.bp.blogspot.com/-Oj-Dka_w72Y/UYUoG5NcDyI/AAAAAAAAApU/iJigNrAapfc/s1600/2.png" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" height="180" src="http://2.bp.blogspot.com/-Oj-Dka_w72Y/UYUoG5NcDyI/AAAAAAAAApU/iJigNrAapfc/s320/2.png" width="320" /></a></div>
<br />
<br />
इस मुश्किल से निकलने के लिए एक अनोखा तरीका निकाला गया..<b>.बकरे को दोनों बकरियों के साथ छोड़ देने का फैसला किया गया और माना गया कि बकरा जिस बकरी के पास चला जाएगा वही उसकी मां है और उसी का मालिक बकरे का असली मालिक होगा </b><br />
और फिर मुकदमा आगे बढ़ा.,..देखिए कैसे इन दोनों बकरियों के पास इस बकरे को छोड़ दिया गया है...हर कोई सांसें थामें इस मंजर को देख रहा था...क्योंकि लोग इस नायाब मुकदमे का नतीजा जानना चाह रहे थे...और फिर <b>आखिरकार वो लम्हा आ ही गया जब बकरे ने अपनी मां को पहचान लिया...देखिए कैसे ये छोटा बकरा धीरे धीरे चलते हुए अपनी असली मां के पास चला गया...</b><br />
<br />
जिस बकरी के पास ये बकरा गया था वो गजराज की थी जिसने अकबर को बकरा बेचा था...और ये देखने के बाद कोर्ट ने फैसला सुना दिया कि अकबर ही बकरे का असली मालिक है और गजराज ने अकबर को बकरा बेचा था ना कि चुराया था<br />
<div style="text-align: left;">
एक बकरी के जरिए चोरी के मुकदमे का फैसला...इससे पहले शायद ही कभी ऐसा हुआ हो...लेकिन <b>खंडवा की अदालत के इस फैसले ने दो बेगुनाहों को सजा मिलने से बचा लिया </b>खंडवा के लोगों के लिए ये अनोखा केस था लेकिन अदालत और जज की सूझबूझ ने इस अजीब से दिख रहे केस को भी सुलझा दिया </div>
</div>
अबयज़ ख़ानhttp://www.blogger.com/profile/06351699314075950295noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-4208086182725287078.post-76547036608593605732011-09-24T01:07:00.006+09:002011-09-24T01:15:53.713+09:00रिश्ते बड़े अजीब हैं, तेरी गली के साथ...<b>पापा आज आप बहुत याद आ रहे हो, बहुत याद आ रही है। आपके बिना जिंदगी बहुत मुश्किल हो गई है। मेरे पापा की एक बहुत खूबसूरत ग़ज़ल आप लोगों के साथ शेयर कर रहा हूं... और कुछ लिखने की हिम्मत नहीं है।</b><div><div style="text-align: center;"><b>-----------------------------------------------</b></div><br /><div style="text-align: center;"><b>कुछ इस तरह से हमने गुजारी किसी के साथ</b></div><div style="text-align: center;"><b>जैसे के अजनबी हो कोई अजनबी के साथ</b></div><div style="text-align: center;"><b><br /></b></div><div style="text-align: center;"><b>कैसा मज़ाक था, ये मेरी जिंदगी के साथ</b></div><div style="text-align: center;"><b>जलता गया वजूद मेरा, रौशनी के साथ</b></div><div style="text-align: center;"><b><br /></b></div><div style="text-align: center;"><b>कुछ दोस्ती के साथ हैं, कुछ दुश्मनी के साथ</b></div><div style="text-align: center;"><b>रिश्ते बड़े अजीब हैं, तेरी गली के साथ</b></div><div style="text-align: center;"><b><br /></b></div><div style="text-align: center;"><b>उसने भी हमसे प्यार किया था, हजार बार</b></div><div style="text-align: center;"><b>दिल की लगी के साथ नहीं, दिल्लगी के साथ</b></div><div style="text-align: center;"><b><br /></b></div><div style="text-align: center;"><b>उसके सितम का कोई भी पहलू बुरा नहीं</b></div><div style="text-align: center;"><b>तरके-ताल्लुकात भी हैं सादगी के साथ</b></div><div style="text-align: center;"><b><br /></b></div><div style="text-align: center;"><b>ए दिल बड़ा अजीब है अपना भी मामला</b></div><div style="text-align: center;"><b>जीना उसी के साथ है, मरना उसी के साथ</b></div><div style="text-align: center;"><b><br /></b></div><div style="text-align: center;"><b>'क़ासिम' तेरे ख्याले परेशां का क्या हुआ</b></div><div style="text-align: center;"><b>क्यों तूने उसको छोड़ दिया बेदिली के साथ</b></div></div><div style="text-align: center;"><b><br /></b></div>अबयज़ ख़ानhttp://www.blogger.com/profile/06351699314075950295noreply@blogger.com6tag:blogger.com,1999:blog-4208086182725287078.post-1577133848737524272011-06-19T02:48:00.004+09:002011-06-19T03:00:33.853+09:00पापा जाने कहां तुम चले गए...<a href="http://1.bp.blogspot.com/-qC_WItgXuUw/Tfzk9d4xqfI/AAAAAAAAAnE/lL_yfREiLPw/s1600/18051_1335285941408_1208870520_1013103_1002888_n.jpg" onblur="try {parent.deselectBloggerImageGracefully();} catch(e) {}"><img style="float:left; margin:0 10px 10px 0;cursor:pointer; cursor:hand;width: 238px; height: 320px;" src="http://1.bp.blogspot.com/-qC_WItgXuUw/Tfzk9d4xqfI/AAAAAAAAAnE/lL_yfREiLPw/s320/18051_1335285941408_1208870520_1013103_1002888_n.jpg" border="0" alt="" id="BLOGGER_PHOTO_ID_5619618179697453554" /></a><b>जून का तीसरा इतवार... </b>दुनियाभर केबच्चों के लिए फादर्स डे.. लेकिन इसी जून की पहली तारीख मेरे पप्पा को मुझसे छीनकर ले गई। एकपल को ऐसा लगा जैसे सबकुछ ताश के पत्तों की तरह बिखर गया। ऐसा लगा जैसे पैरों के नीचे से ज़मीन खिसक गई हो। शायद मेरे घर को किसी की नज़र लग गई.. <b>हमेशा मुस्कुराने वाले मेरे पप्पा बड़े चुपके से हमें छोड़कर चलते बने।</b> ग़म तो यह कि हमसे कुछ कहा भी नहीं। <b>मेरे प्यारे पप्पा जब मेरे सिर सेहरा सजाने का ख्वाब देख रहे थे, तभी मौत आई और ज़िंदगी को धोखा देकर पप्पा को मुझसे छीनकर ले गई।</b> पिछले साल फादर्स डे पर अपने पप्पा के लिए मैने चंद लाइनें लिखी थीं.. ऐसा लग रहा है जैसे एक-एक लाइन दिल को चीरकर रख देगी। पप्पा अगर कोई ख़ता हो गई हो, तो उसे माफ कर देना।<br /><div><b><br /></b></div><div><b>पप्पा.. अब भी पहले जैसे ही थे.. दिन बदल गए थे.. पप्पा नहीं बदले।</b> उम्र की थकान उनके चेहरे से ज़ाहिर हो जाती थी। लेकिन बच्चों की ख़ातिर वो आज भी उफ़ तक नहीं करते थे। मेरे लिए दुनिया में अगर कोई सबसे ज्यादा प्यारा था, तो मेरे पप्पा। <b>मां ने मुझे जन्म दिया है.. लेकिन पप्पा ने तो ज़िंदगी का ककहरा सिखाया था।</b> एक हमारे पप्पा ही तो थे जिनके कंधो पर हमने छोटी सी उम्र से ही ढेरों सपने संजो लिए थे।<b>होश संभालने के बाद पापा के सामने ही तो सबसे पहले हाथ फैलाया था। और पप्पा ने जेब से एक चवन्नी निकाल कर हाथ पर रख दी थी।</b> उसके बाद तो ये सिलसिला सा चल निकला था। जब भी किसी चीज़ की ज़रूरत होती.. पप्पा के पास पहुंच जाते। दुनिया की तमाम मुश्किलें आ जाएं.. बस फिक्र क्या करना.. आखिर मेरे पप्पा जो थे। <a onblur="try {parent.deselectBloggerImageGracefully();} catch(e) {}" href="http://1.bp.blogspot.com/-2jf0kXLf4R8/TfznAA02ZFI/AAAAAAAAAnU/PVMhqe8lnA0/s1600/18051_1335285861406_1208870520_1013101_4376659_n.jpg"><img style="display:block; margin:0px auto 10px; text-align:center;cursor:pointer; cursor:hand;width: 320px; height: 247px;" src="http://1.bp.blogspot.com/-2jf0kXLf4R8/TfznAA02ZFI/AAAAAAAAAnU/PVMhqe8lnA0/s320/18051_1335285861406_1208870520_1013101_4376659_n.jpg" border="0" alt=""id="BLOGGER_PHOTO_ID_5619620422459221074" /></a> सुबह क्लीनिक जाने वाले पप्पा जब शाम को थके-हारे घर लौटते थे.. तब झट से उनकी गोदी में चढ़ जाते थे। निगाहें कुछ खोजती थीं... शायद पप्पा बाज़ार से कोई चीज़ लाए हैं। कुछ खाने की चीज़... और पप्पा अपने बच्चों के मन की बात समझ जाते थे... घर लौटते वक्त उनके हाथ में कुछ न कुछ ज़रूर होता था। <b>पप्पा का लाड़ तो पूछिए मत। उनका बस चलता.. तो आसमान से तारे भी तोड़कर ले आते।</b> झुलसती गर्मी हो, कड़कड़ाती सर्दी हो, या फिर बरसात.. कड़ी धूप में मीलों का सफ़र... टपकती हुई किराए के घर की छत...दीवारों में सीलन.. तमाम दुश्वारियां सामने थीं.. लेकिन पप्पा ने कभी हार नहीं मानी। उंगली पकड़कर साथ चलने वाले पप्पा हमारी खातिर कुछ भी करने के लिए तैयार रहते थे।</div><div><br /></div><div><br /><a href="http://2.bp.blogspot.com/-ntWG9i8EBjg/TfzmMJKv3qI/AAAAAAAAAnM/aH7zejztQZI/s1600/25686_1397638380180_1208870520_1183941_2206734_n.jpg" onblur="try {parent.deselectBloggerImageGracefully();} catch(e) {}"><img style="float:right; margin:0 0 10px 10px;cursor:pointer; cursor:hand;width: 240px; height: 320px;" src="http://2.bp.blogspot.com/-ntWG9i8EBjg/TfzmMJKv3qI/AAAAAAAAAnM/aH7zejztQZI/s320/25686_1397638380180_1208870520_1183941_2206734_n.jpg" border="0" alt="" id="BLOGGER_PHOTO_ID_5619619531345354402" /></a>जैसे-जैसे हम बड़े हो रहे थे.. पप्पा के सामने फ़रमाइशों की झोली बढ़ती जा रही थी। <b>मुश्किलों के उस दौर में भी प्यारे पप्पा ने कभी हार नहीं मानी। हमें पालने और पढ़ाने के लिए अपना सबकुछ कुर्बान कर दिया।</b> अपनी ऐशो-आराम की उम्र उन्होंने हमारा मुस्तकबिल बनाने में गुज़ार दी। वक्त के साथ हम बढ़े होने लगे। <b>कभी पापा की उंगली पकड़कर चलने वाले हम अब उनके कंधे से उचकने की कोशिश करने लगे।</b> हम ये सोचकर कितने खुश होते थे.. कि हम पप्पा से बड़े हो रहे हैं। बार-बार पप्पा के बराबर खड़े होकर उनकी लंबाई से ऊपर जाने की कोशिश करते। लेकिन पप्पा अपने बच्चों के बड़े होने पर हमसे भी ज्यादा खुश होते थे। बेशक उनकी ज़िम्मेदारियां बढ़ रही थीं। फिर स्कूल से निकलकर कॉलेज का ज़माना आया। अब बारी थी.. घर से दूर दूसरे शहर में जाने की। लेकिन पप्पा अब भी खुश थे.. कि उनके बच्चे बड़े हो रहे हैं। लेकिन बच्चे तो अपनी ही दुनिया में मस्त थे। चवन्नी या एक रुपये से अब काम नहीं चलता था। अब पप्पा के सामने जेब खर्च की मोटी फ़रमाइश होती थी। फिर कॉलेज के बाद बारी आई नौकरी की। छोटे शहर से बड़े शहर का रुख हुआ। हम अब भी खुश थे.. बड़े शहर की चकाचौंध और नौकरी में पूरी तरह खो गए थे। <b>पप्पा की गोद में सोने वाले अब पप्पा से मीलों दूर थे। पप्पा अब भी खुश थे..</b> लेकिन अब उनकी आंखे नम थीं.. क्योंकि बच्चे अब सचमुच बड़े हो गए थे... और उनसे बहुत दूर भी हो गए थे। <b>और मेरे प्यारे पप्पा फिर से अकले हो गए। </b><br /><br /></div>अबयज़ ख़ानhttp://www.blogger.com/profile/06351699314075950295noreply@blogger.com11tag:blogger.com,1999:blog-4208086182725287078.post-59709471960887734992011-01-20T16:11:00.008+09:002011-01-20T16:29:54.253+09:00नसबंदी कराओ, नैनो पाओ...<a onblur="try {parent.deselectBloggerImageGracefully();} catch(e) {}" href="http://4.bp.blogspot.com/_kcUDTs00Zpc/TTfjYWzRuwI/AAAAAAAAAmo/I0p2t1438Ls/s1600/Family%2BPlaning.jpg"><img style="float:left; margin:0 10px 10px 0;cursor:pointer; cursor:hand;width: 320px; height: 234px;" src="http://4.bp.blogspot.com/_kcUDTs00Zpc/TTfjYWzRuwI/AAAAAAAAAmo/I0p2t1438Ls/s320/Family%2BPlaning.jpg" border="0" alt=""id="BLOGGER_PHOTO_ID_5564165872216554242" /></a>इस तस्वीर को देखकर कुछ याद आया आपको... <span style="font-weight:bold;">बुलंद भारत की बुलंद तस्वीर में इसका भी बड़ा योगदान है। छोटा परिवार, सुखी परिवार.. लड़का हो या लड़की बच्चे दो ही अच्छे... दो बच्चों के बाद बस करो.. नसबंदी कराओ गर्व से जियो... गाड़ियों से लेकर मौहल्ले भर की दीवारें इन नारों से पटी रहती थीं..</span> घर के छोटे बच्चे बिना कोई मतलब समझे इन्हें पढ़ते, और फिर घर में जाकर वहीं बात दोहराते। मां-बाप अगर बच्चों को अपने साथ लेकर बाहर जाते, तो उनको अपने पीछे छुपा लेते, कि कहीं बच्चे दीवार पर लिखे परिवार नियोजन के विज्ञापन को न पढ़ लें। <span style="font-weight:bold;">60 बरस हो गए देश को, सरकार के नारे पानी में बह गए </span>और आबादी का विस्फोट जारी रहा। तस्वीर देखनी हो, तो सिर्फ दिल्ली दर्शन कर लीजिए। पैर रखने की जगह नहीं है इस शहर में। आबादी तकरीबन 1 करोड़ 50 लाख से भी ज्यादा। दिल्ली में तो इंसानों के साथ-साथ गाड़ियां भी इतनी हो गई हैं.. कि सड़क पर पैर रखना भी मुश्किल हो गया है। भला हो मेट्रो का.. लेकिन वो बेचारी भी क्या करे.. रोज़ बढ़ती जा रही इस आबादी के बोझ से कैसे निपटे। <br /><br />अब ज़रा देश के हाल पर भी नज़र डाल लीजिए। <span style="font-weight:bold;">2009 में भारत की आबादी 119 करोड़ 80 लाख दर्ज की गई। 18 करोड़ से ज्यादा आबादी वाला यूपी ब्राज़ील के बराबर पहुंच गया है।</span> आबादी महामानव की तरफ मुंह फैलाए खड़ी है.. खाने वाले ज्यादा हो गए हैं... उपज कम हो रही है, नतीजा महंगाई ने आम इँसान की नाक में नकेल डाल दी है। और शरद पवार को भी बहाना बनाने का एक और मौका मिल गया। लेकिन आबादी पर ब्रेक लगाने के मामले में सभी चुप हैं। सरकार की तमाम कोशिशें फेल हो गईं.. लेकिन पिछले दिनों दो बड़ी मस्त ख़बरें आईं...<br /><br /><span style="font-weight:bold;">पहली ख़बर भोपाल से आई... </span><br />-300 से ज्यादा नसबंदी कराने वाले व्यक्ति को परिवार कल्याण कार्यक्रम में सक्रिय योगदान देने के लिए नैनो कार दी जाएगी।<br />-200 अथवा उससे ज्यादा नसबंदी के आपरेशन कराने वाले व्यक्ति को मोपेड बतौर पुरस्कार में दी जाएगी। खास बात ये है कि भोपाल में इस सुनहरी घोषणा का ऐलान खुद वहां के कलेक्टर निकुंज श्रीवास्तव ने गांधी मेडिकल कालेज में किया था। अब कलेक्टर साहब को कौन बताए कि एक नैनो के लिए कोई भला 300 शिकार कहां से फांसकर लाएगा। वो भी सिर्फ नैनो के लिए.. इससे तो वो 3000 रुपये महीने की आसान किस्त पर वैसे ही नैनो ख़रीद लेगा। और भला 200 नसबंदी के लिए कौन भला मोपेड लेगा। अब सरकार को कौन बताए, कि आजकल मोपेड का नहीं, फर्राटेदार बाइक का ज़माना है। हां अब कोई नैनो के लिए काग़ज़ों में ही 300 शिकार फांस ले, तो अलग बात है। <br /><a onblur="try {parent.deselectBloggerImageGracefully();} catch(e) {}" href="http://1.bp.blogspot.com/_kcUDTs00Zpc/TTfjkpaNQhI/AAAAAAAAAmw/XbaFtUtIn8g/s1600/Nano%2BCar.gif"><img style="float:right; margin:0 0 10px 10px;cursor:pointer; cursor:hand;width: 320px; height: 192px;" src="http://1.bp.blogspot.com/_kcUDTs00Zpc/TTfjkpaNQhI/AAAAAAAAAmw/XbaFtUtIn8g/s320/Nano%2BCar.gif" border="0" alt=""id="BLOGGER_PHOTO_ID_5564166083370107410" /></a><span style="font-weight:bold;">दूसरी ख़बर भी मध्य प्रदेश से ही आई..</span><br />ख़बर सागर ज़िले से थी, जहां के कलेक्टर ने ऐलान किया कि अगर कोई 5 या उससे ज्यादा लोगों को नसबंदी के लिए प्रेरित करे, तो उसे बंदूक का लाइसेंस मिलेगा। जो लोग खुद से भी नसबंदी के लिए आएंगे उनको भी बंदूक के लाइसेंस में प्राथमिकता मिलेगी। इस ख़बर पर मेरे एक दोस्त ने ठहाका लगाया, कि ''भईया.. जब नसबंदी ही करा लेगा तो बंदूक से खाक निशाना लगाएगा और फिर अब शिकार करेगा भी तो किसका...''<br /><br />नसबंदी वालों को इनाम का सरकारी ऐलान पहली बार नहीं हुआ है, इससे पहले भी नसबंदी कराने वालों को कभी कैश, तो कभी कुछ और छोटे-मोटे इनाम का लालच देकर नसबंदी कराई जाती थी.. इन छोटे-मोटे इनामों का फायदा छोटे-मोटे दलाल टाइप के लोग खूब उठाते थे। <span style="font-weight:bold;">इनाम के लालच में कईयों की तो जबरन नसबंदी करा दी जाती थी। कई तो ऐसे लोग भी जाल में फंस जाते थे, जिनकी पहले ही नस बंद हो चुकी थी। नसबंदी के इनाम के लालच में कई बुढ्ढे भी इस जाल में फांस लिये जाते थे।</span> इस चक्कर में कई ऐसे लोग भी शिकार हो जोते थे, जिनकी ज़िंदगी फुटपाथ पर बसर होती थी। अख़बारों में ख़बरें छपतीं, लेकिन कुछ दिन हो-हल्ला मचने के बाद सबकुछ शांत हो जाता था। <br /><br />समझ नहीं आता कि सरकार आखिर ऐसी बेकार की स्कीमें बनाती क्यों है। क्या देश की आबादी पर लगाम लगाने के लिए यही एक सबसे अच्छा तरीका है। <span style="font-weight:bold;">सरकार में हिम्मत है, तो कानून बनाए। 2 बच्चों के बाद कानूनन रोक लगाए।</span> लेकिन ऐसा सरकार भला कैसे कर सकती है। ऐसा हुआ, तो नेताओं को वोट कैसे मिलेंगे। <span style="font-weight:bold;">जब संसद में बैठे नेता ही 10-10 बच्चों के बाप होंगे, तो फिर देश की जनता का क्या कसूर।</span> ये तो वही बात हो गई, कि शराब और सिगरेट पीना स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है। उसके बाद भी सरकार उसकी बिक्री पर रोक नहीं लगाती, क्योंकि उससे सरकार के ख़ज़ाने में सबसे ज्यादा पैसा आता है।<span style="font-weight:bold;"> ऐ हिंदुस्तान तेरे हाल पर रोना आया।<br /></span>अबयज़ ख़ानhttp://www.blogger.com/profile/06351699314075950295noreply@blogger.com4tag:blogger.com,1999:blog-4208086182725287078.post-18661393743235347722010-11-14T05:59:00.003+09:002010-11-14T06:05:27.278+09:00मैं आतिश परस्त नहीं..<a onblur="try {parent.deselectBloggerImageGracefully();} catch(e) {}" href="http://1.bp.blogspot.com/_kcUDTs00Zpc/TN79NICUgjI/AAAAAAAAAl4/K5fryyvIUtA/s1600/FIRE%2BFOREST.jpg"><img style="display:block; margin:0px auto 10px; text-align:center;cursor:pointer; cursor:hand;width: 400px; height: 300px;" src="http://1.bp.blogspot.com/_kcUDTs00Zpc/TN79NICUgjI/AAAAAAAAAl4/K5fryyvIUtA/s400/FIRE%2BFOREST.jpg" border="0" alt="" id="BLOGGER_PHOTO_ID_5539142993649631794" /></a><div style="text-align: justify;"><b>जंगल में आग लगी.. चारों तरफ़ हाहाकार मचा था..</b> आग की लपटें आसमान को छू रही थीं। जंगल से निकलकर धुआं बस्ती की फिज़ा में दम घोंटने लगा। आग इतनी भयानक हो चुकी थी, मानो पल भर में ही जंगल को राख कर देगी। तपिश ऐसी कि वहां एक पल भी रुकना नामुमकिन हो चुका था। बेबस जानवर जंगल से जानवर शहर की तरफ भाग रहे थे। जिंदगी बचाने के लिए उनके पास इसके सिवा शायद कोई ज़रिया नहीं था। <b>चंद आतिश परस्तों ने कुछ रंग-बिरंगे काग़ज़ के टुकड़ों के लिए हरे-भरे जंगल को आग के हवाले कर दिया था।</b></div><div style="text-align: justify;"><br /></div><div style="text-align: justify;">बेज़ुबान जानवर बेबस थे.. उनका घर जल रहा था.. लेकिन कोई आग बुझाने वाला नहीं था। जानवरों की बस्ती में कुछ आतिशी इंसानों ने शोलों को हवा दे दी थी। कुछ बेज़ुबान तो इस आग में जलकर खाक हो गए, तो कुछ दम घुटने से ही इस दुनिया से रुखसत हो गए। जंगल जल रहा था, लेकिन<b> पास की इंसानी बस्ती में किसी को भी अपना फर्ज़ याद नहीं आया.. </b>जंगल से निकलकर जानवर बस्ती में पहुंचने लगे.. तो तमाशबीनों की भीड़ ने उन्हें घेर लिया.. किसी ने दौड़ा-दौड़ाकर शेर को मार डाला.. तो कोई हाथियों पर पत्थरों की बरसात करने लगा।</div><div style="text-align: justify;"><br /></div><div style="text-align: justify;">अपना घर छोड़कर बेघर हुए इन जानवरों की सुध लेने वाला कोई नहीं था। <b>शहर में इंसानी भेष में जानवर थे..</b> जो उनकी हालत पर तरस खाने के बजाए बेज़ुबानों पर ज़ुल्म कर रहे थे। इधर जंगल में आग भड़कती ही जा रही थी। मीलों में फैला जंगल आहिस्ता-आहिस्ता आग के आगोश में समाता जा रहा था। लेकिन किसी में इतनी ताकत नहीं थी, जो उस जंगल को आग से बचा ले। जंगल में बड़े से पीपल के पेड़ पर एक चिड़िया भी रहती थी.. इस आग में उसका घर भी छूटने वाला था... उसकी आंखो में आंसू थे.. उसे गम था अपना आशियाना छिन जाने का। </div><div style="text-align: justify;"><br /></div><div style="text-align: justify;">लेकिन <b>चिड़िया से जंगल की आग देखी न गई। अचानक वो घोंसले से बाहर आई और कुछ दूर एक छोटे से तालाब पर पहुंची, वहां से उसने अपनी चोंच में दो बूंद पानी लिया, और लाकर उसे जंगल के ऊपर छिड़क दिया। इसके बाद वो फिर तालाब पर गई, दो बूंद पानी लाई और उसे जंगल पर छिड़क दिया। </b>इसी तरह उसने दस-बारह बार किया। जब वो ऐसा करके थक गई तो अपने घोंसले में बैठकर सुस्ताने लगी। तभी सामने वाले पेड़ पर मौजूद अजगर ने उसकी तरफ देखा और बोला तुझे क्या लगता था, कि तेरी चोंच में पानी लाने से जंगल की आग बुझ जाएगी। तू क्यूं इतनी मेहनत कर रही थी। चिड़िया ने जवाब दिया। मैं भी जानती हूं कि मेरे चोंच में पानी लाने से जंगल की आग नहीं बुझने वाली। लेकिन<b><span><span> कल जब इस जंगल का इतिहास लिखा जाएगा, तो मेरा नाम आग लगाने वालों में नहीं, बल्कि आग बुझाने वाले में लिखा जाएगा। </span></span></b></div>अबयज़ ख़ानhttp://www.blogger.com/profile/06351699314075950295noreply@blogger.com7tag:blogger.com,1999:blog-4208086182725287078.post-89230336207244016372010-08-19T02:45:00.004+09:002010-08-19T03:12:24.217+09:00दोस्तों जिंदगी दर-बदर हो गई...सभी दोस्तों से ये पुरखुलूस गुज़ारिश है, कि एक बार इस ग़ज़ल को पढ़ने की ज़हमत ज़रूर करें। बड़े अरसे बाद क़लम उठाई है, शायद ग़लतियां भी बहुत हों। ग़ज़ल कभी बहुत ज्यादा लिखी नहीं। कभी-कभार काग़ज़ पर अल्फ़ाज़ उकेरने की गुस्ताखियां की हैं। इस बार भी शायद कुछ ऐसा ही है। लिखने की कोशिश तो बहुत की, लेकिन किसी पैमाने पर उतरने वाली ग़ज़ल बन नहीं पाई। मीटर और पैरामीटर से अपना दूर तक भी वास्ता नहीं है। लिहाज़ा उसके लिए तो ज़रूर माफ़ करें। अगर आपको पसंद आ जाए तो इस अदीब की इसलाह ज़रूर करें।<div><br /><a onblur="try {parent.deselectBloggerImageGracefully();} catch(e) {}" href="http://4.bp.blogspot.com/_kcUDTs00Zpc/TGwiLJChUzI/AAAAAAAAAks/AN3aQIEx8Bo/s1600/Lonely+2.jpg"></a></div><div><a onblur="try {parent.deselectBloggerImageGracefully();} catch(e) {}" href="http://4.bp.blogspot.com/_kcUDTs00Zpc/TGwiLJChUzI/AAAAAAAAAks/AN3aQIEx8Bo/s1600/Lonely+2.jpg"><img style="text-align: left;display: block; margin-top: 0px; margin-right: auto; margin-bottom: 10px; margin-left: auto; cursor: pointer; width: 320px; height: 213px; " src="http://4.bp.blogspot.com/_kcUDTs00Zpc/TGwiLJChUzI/AAAAAAAAAks/AN3aQIEx8Bo/s320/Lonely+2.jpg" border="0" alt="" id="BLOGGER_PHOTO_ID_5506814019167671090" /></a><div><div style="text-align: center;"><span class="Apple-style-span" style="font-weight: bold; "><br /></span></div><div style="text-align: center;"><span class="Apple-style-span" style="font-weight: bold; ">जब से उसकी टेढ़ी नज़र हो गई।</span></div><span style="font-weight:bold;"><div style="text-align: center;">दोस्तों जिंदगी दर-बदर हो गई।।</div><div style="text-align: center;"><br /></div><div style="text-align: center;">वो क्या गए हमसे रूठकर यारों।</div><div style="text-align: center;">महफिले और मुख़्तसर हो गईं।।</div><div style="text-align: center;"><br /></div><div style="text-align: center;">नफ़रतों के दायरे जब से बढ़ने लगे।</div><div style="text-align: center;">दिल की गलियां भी और तंग हो गईं।।</div><div style="text-align: center;"><br /></div><div style="text-align: center;">संगदिल के संग रहना ही ज़ेरेनसीब था।</div><div style="text-align: center;">जीती बाज़ी हारना अब किस्मत हो गई।।</div><div style="text-align: center;"><br /></div><div style="text-align: center;">उजले लिबास में लोग दिल के काले हैं।</div><div style="text-align: center;">मसीहाओं की अब यही पहचान हो गई।।</div><div style="text-align: center;"><br /></div><div style="text-align: center;">प्यार की बस्ती में धोखा ही धोखा है।</div><div style="text-align: center;">रंग बदलना लोगों की फितरत हो गई।।</div><div style="text-align: center;"><br /></div><div style="text-align: center;">प्यार, नफ़रत, ग़म, गुस्सा और फरेब।</div><div style="text-align: center;">ज़िंदगी की अब यही कहानी हो गई।।</div></span></div></div>अबयज़ ख़ानhttp://www.blogger.com/profile/06351699314075950295noreply@blogger.com16tag:blogger.com,1999:blog-4208086182725287078.post-82326091833783876142010-07-24T03:04:00.005+09:002010-07-24T03:21:01.175+09:00दिल्ली में छपाक.. छई..<a onblur="try {parent.deselectBloggerImageGracefully();} catch(e) {}" href="http://4.bp.blogspot.com/_kcUDTs00Zpc/TEncHQ6Ds7I/AAAAAAAAAkQ/enylGcqyJnU/s1600/Cars+in+Rain..+(1).jpg"><img style="float:left; margin:0 10px 10px 0;cursor:pointer; cursor:hand;width: 320px; height: 213px;" src="http://4.bp.blogspot.com/_kcUDTs00Zpc/TEncHQ6Ds7I/AAAAAAAAAkQ/enylGcqyJnU/s320/Cars+in+Rain..+(1).jpg" border="0" alt=""id="BLOGGER_PHOTO_ID_5497166837538075570" /></a>कई दिन से उमस बढ़ती जा रही थी.. गर्मी के साथ चिपचिपाहट भी बढ़ने लगी थी.. फि़ज़ा खुशनुमा तो थी, लेकिन माहौल में काफ़ी नमी थी.. बस खुदा से दुआ थी, कि बारिश हो जाए.. कम से कम इस चिपचिपाती गर्मी से तो राहत मिलेगी.. लेकिन मौसम को शायद ये मंज़ूर नहीं था..<span style="font-weight:bold;"> दिन तो किसी तरह दफ़्तर में गुज़र जाता था, लेकिन कबूतरखाने जैसे घरों में रात काटना बड़ा मुश्किल हो रहा था...</span> लेकिन कहावत है न कि खुदा के घर देर है, लेकिन अंधेर नहीं... दिल्ली शहर में जब बारिश हुई तो झमाझम हुई.. बदरा बरसे तो जी भरकर बरसे.. आसमान में काली घटा ऐसी छाई, कि फिर तो रातभर बारिश ने मूसलाधार रूप अख्तियार कर लिया... बादलों ने तन और मन भिगो कर रख दिया.. लेकिन इस शहर और अपने गांव में यही फर्क है, कि यहां बारिश का मज़ा लेने के बजाए लोग चाहरदीवारी में ही कैद होकर रह जाते हैं। <br /><br /><a onblur="try {parent.deselectBloggerImageGracefully();} catch(e) {}" href="http://2.bp.blogspot.com/_kcUDTs00Zpc/TEncjMhW3gI/AAAAAAAAAkY/xxxo1GfUnWA/s1600/Dilli+Rain.jpg"><img style="float:right; margin:0 0 10px 10px;cursor:pointer; cursor:hand;width: 320px; height: 240px;" src="http://2.bp.blogspot.com/_kcUDTs00Zpc/TEncjMhW3gI/AAAAAAAAAkY/xxxo1GfUnWA/s320/Dilli+Rain.jpg" border="0" alt=""id="BLOGGER_PHOTO_ID_5497167317397069314" /></a>और एक अपना गांव है, जहां बारिश में जमकर भीगो, कोई रोक-टोक नहीं... <span style="font-weight:bold;">दिल्ली में बारिश झमाझम हो रही थी.. लेकिन ये क्या... एक घंटे बाद टीवी ऑन किया, तो हर चैनल पर डूबती-उतराती दिल्ली की तस्वीरें नज़र आ रही थी...</span> शहर में कई-कई फुट पानी भर चुका था, गाड़ियों की लंबी-लंबी कतारें लगी थीं, दिल्ली जाम से दो-चार हो रही थी, और दिल्ली वाले बारिश से तरबतर। राजधानी की हालत पर तरस आ रहा था.. <span style="font-weight:bold;">लेकिन क्या करें, बदहाली के लिए भी हम लोग ही ज़िम्मेदार हैं.. घर में नहीं हैं दाने और अम्मा चली भुनाने की तर्ज़ पर लोन लेकर गाड़ियों का अंबार लगाने पर तुले हैं..</span> और फिर जब घुटनों पानी से मशक्कत करके घर पहुंचते हैं, तो सरकार को कोसते हैं... सड़कें भी आखिर क्या करें... फैलकर बड़ी तो नहीं हो सकती न... <br /><br /><a onblur="try {parent.deselectBloggerImageGracefully();} catch(e) {}" href="http://2.bp.blogspot.com/_kcUDTs00Zpc/TEndB2inSSI/AAAAAAAAAkg/7i1THDGif4U/s1600/Boat.jpg"><img style="float:left; margin:0 10px 10px 0;cursor:pointer; cursor:hand;width: 320px; height: 230px;" src="http://2.bp.blogspot.com/_kcUDTs00Zpc/TEndB2inSSI/AAAAAAAAAkg/7i1THDGif4U/s320/Boat.jpg" border="0" alt=""id="BLOGGER_PHOTO_ID_5497167844072704290" /></a>कई बार लगता है कि इससे तो अपना प्यारा छोटा सा गांव ही बेहतर है, जहां हम बचपन में भी <span style="font-weight:bold;">बारिश के पानी में क़ाग़ज़ की कश्तियां चलाते थे..</span> और आज भी जाते हैं, तो बरसात में अपने इस पसंदीदा खेल को भला कैसे छोड़ सकते हैं.. <span style="font-weight:bold;">पहली या दूसरी क्लास में रहे होंगे, काग़ज़ की नाव बनाना तो तभी सीख लिया था.. </span>वैसे तो स्कूल में काग़ज़ के बहुत से खिलौने बनाना सीखे थे, <span style="font-weight:bold;">लेकिन क़ाग़ज़ की नाव तो ज़िंदगी का एक हिस्सा बन गई.. शायरों ने इसे कलम में पिरो लिया, तो बच्चों ने इसमें अपनी दुनिया बसा ली.. </span>बारिश के मौसम में फिर उसी घर में लौट जाने को जी करता है, <span style="font-weight:bold;">मन करता है फिर से बचपन में लौट जाने को जहां दिलभर कर शरारतें करो.. जहां बरसात के पानी में छपाक.. छई करने को मिले..</span> जहां बारिश के पानी में किसी के ऊपर छींटे उड़ाने की फिर से छूटे मिले.. जहां बारिश के पानी में निकर पहनकर फिर से सड़क पर दौड़ने को मिले.. <br /><br />मुझे अच्छी तरह याद है, जब जुलाई के महीने में स्कूल खुलते ही खूब बारिशें होती थीं, स्कूल में पानी भर जाता था.. और फिर सबकी छुट्टी हो जाती थी... बस फिर क्या था... किताबों से भरा बैग पीठ पर लादकर घर के लिए दौड़ लगा दिया करते थे.. <span style="font-weight:bold;">क्या मस्त दिन थे, वो बारिश में भीगने के... हसीन और बेहद खूबसूरत दिन... जहां बरसात में पापा के साथ अंगीठी पर भुट्टा भूनकर खाते थे..</span> तालाब से सिंघाड़े तोड़कर लाते थे... क्या मस्ती होती थी.. मोहल्ले में हमारे पानी भर जाए, तो कोई नगरपालिका को नहीं कोसता था.. बच्चों की तो समझो ऐश हो जाती थी... <span style="font-weight:bold;">लेकिन दिल्ली शहर को देखकर तो डर लगता है.. कहां हम बचपन में कागज़ की नाव चलाते थे, और कहां अब दिल्ली शहर के बरसाती पानी में कारें डूबती-उतराती हैं... </span>अबयज़ ख़ानhttp://www.blogger.com/profile/06351699314075950295noreply@blogger.com3tag:blogger.com,1999:blog-4208086182725287078.post-68941319687797864782010-06-20T02:49:00.005+09:002010-06-20T03:03:10.858+09:00सबसे प्यारे मेरे पा...<a onblur="try {parent.deselectBloggerImageGracefully();} catch(e) {}" href="http://1.bp.blogspot.com/_kcUDTs00Zpc/TB0DzbTAqFI/AAAAAAAAAkA/YOVuWDyXjq4/s1600/Pappa.jpg"><img style="float:left; margin:0 10px 10px 0;cursor:pointer; cursor:hand;width: 238px; height: 320px;" src="http://1.bp.blogspot.com/_kcUDTs00Zpc/TB0DzbTAqFI/AAAAAAAAAkA/YOVuWDyXjq4/s320/Pappa.jpg" border="0" alt=""id="BLOGGER_PHOTO_ID_5484544103242836050" /></a><span style="font-weight:bold;">पप्पा.. अब भी पहले जैसे ही थे.. दिन बदल गए थे.. पप्पा नहीं बदले। </span>उम्र की थकान उनके चेहरे से ज़ाहिर हो जाती है। लेकिन बच्चों की ख़ातिर वो आज भी उफ़ तक नहीं करते। मेरे लिए दुनिया में अगर कोई सबसे ज्यादा प्यारा है, तो मेरे पप्पा ही हैं। मां ने मुझे जन्म दिया है.. लेकिन पप्पा ने तो ज़िंदगी का ककहरा सिखाया है। <span style="font-weight:bold;">एक हमारे पप्पा ही तो हैं, जिनके कंधो पर हम छोटी सी उम्र से ही ढेरों सपने संजो लेते हैं।</span> होश संभालने के बाद पापा के सामने ही तो सबसे पहले हाथ फैलाया था। और पप्पा ने जेब से एक चवन्नी निकाल कर हाथ पर रख दी थी। उसके बाद तो ये सिलसिला सा चल निकला था। जब भी किसी चीज़ की ज़रूरत होती.. पप्पा के पास पहुंच जाते। <span style="font-weight:bold;">दुनिया की तमाम मुश्किलें आ जाएं.. बस फिक्र क्या करना.. आखिर मेरे पप्पा जो हैं।</span> सुबह क्लीनिक जाने वाले पप्पा जब शाम को थके-हारे घर लौटते थे.. तब झट से उनकी गोदी में चढ़ जाते थे। निगाहें कुछ खोजती थीं... शायद पप्पा बाज़ार से कोई चीज़ लाए हैं। कुछ खाने की चीज़... और पप्पा अपने बच्चों के मन की बात समझ जाते थे... घर लौटते वक्त उनके हाथ में कुछ न कुछ ज़रूर होता था। और पप्पा का लाड़ तो पूछिए मत। उनका बस चलता.. तो आसमान से तारे भी तोड़कर ले आते। झुलसती गर्मी हो, कड़कड़ाती सर्दी हो, या फिर बरसात.. <span style="font-weight:bold;">कड़ी धूप में मीलों का सफ़र... टपकती हुई किराए के घर की छत...दीवारों में सीलन.. तमाम दुश्वारियां सामने थीं.. लेकिन पप्पा ने कभी हार नहीं मानी।</span> उंगली पकड़कर साथ चलने वाले पप्पा हमारी खातिर कुछ भी करने के लिए तैयार रहते थे। <br /><br /><a onblur="try {parent.deselectBloggerImageGracefully();} catch(e) {}" href="http://3.bp.blogspot.com/_kcUDTs00Zpc/TB0EmIxb9KI/AAAAAAAAAkI/q0yQOQqXc5o/s1600/Pappa2.jpg"><img style="float:right; margin:0 0 10px 10px;cursor:pointer; cursor:hand;width: 240px; height: 320px;" src="http://3.bp.blogspot.com/_kcUDTs00Zpc/TB0EmIxb9KI/AAAAAAAAAkI/q0yQOQqXc5o/s320/Pappa2.jpg" border="0" alt=""id="BLOGGER_PHOTO_ID_5484544974443508898" /></a><span style="font-weight:bold;">जैसे-जैसे हम बड़े हो रहे थे.. पप्पा के सामने फ़रमाइशों की झोली बढ़ती जा रही थी।</span> मुश्किलों के उस दौर में भी प्यारे पप्पा ने कभी हार नहीं मानी। हमें पालने और पढ़ाने के लिए अपना सबकुछ कुर्बान कर दिया। अपनी ऐशो-आराम की उम्र उन्होंने हमारा मुस्तकबिल बनाने में गुज़ार दी। वक्त के साथ हम बढ़े होने लगे। <span style="font-weight:bold;">कभी पापा की उंगली पकड़कर चलने वाले हम अब उनके कंधे से उचकने की कोशिश करने लगे। </span>हम ये सोचकर कितने खुश होते थे.. कि हम पप्पा से बड़े हो रहे हैं। बार-बार पप्पा के बराबर खड़े होकर उनकी लंबाई से ऊपर जाने की कोशिश करते। लेकिन पप्पा अपने बच्चों के बड़े होने पर हमसे भी ज्यादा खुश होते थे। बेशक उनकी ज़िम्मेदारियां बढ़ रही थीं। <span style="font-weight:bold;">फिर स्कूल से निकलकर कॉलेज का ज़माना आया। अब बारी थी.. घर से दूर दूसरे शहर में जाने की। लेकिन पप्पा अब भी खुश थे.. कि उनके बच्चे बड़े हो रहे हैं।</span> लेकिन बच्चे तो अपनी ही दुनिया में मस्त थे। चवन्नी या एक रुपये से अब काम नहीं चलता था। अब पप्पा के सामने जेब खर्च की मोटी फ़रमाइश होती थी। फिर कॉलेज के बाद बारी आई नौकरी की। छोटे शहर से बड़े शहर का रुख हुआ। <span style="font-weight:bold;">हम अब भी खुश थे.. बड़े शहर की चकाचौंध और नौकरी में पूरी तरह खो गए थे।</span> पप्पा की गोद में सोने वाले अब पप्पा से मीलों दूर थे। <span style="font-weight:bold;">पप्पा अब भी खुश थे.. लेकिन अब उनकी आंखे नम थीं.. क्योंकि बच्चे अब सचमुच बड़े हो गए थे... और उनसे बहुत दूर भी हो गए थे। और मेरे प्यारे पप्पा फिर से अकले हो गए।</span>अबयज़ ख़ानhttp://www.blogger.com/profile/06351699314075950295noreply@blogger.com16tag:blogger.com,1999:blog-4208086182725287078.post-10969154467273320682010-06-13T23:45:00.005+09:002010-06-14T00:03:09.045+09:00और वो हाथी को चट कर गए...<a onblur="try {parent.deselectBloggerImageGracefully();} catch(e) {}" href="http://3.bp.blogspot.com/_kcUDTs00Zpc/TBTxrJzAW6I/AAAAAAAAAjo/KLN9DFku6dY/s1600/ELH.jpg"><img style="display:block; margin:0px auto 10px; text-align:center;cursor:pointer; cursor:hand;width: 400px; height: 180px;" src="http://3.bp.blogspot.com/_kcUDTs00Zpc/TBTxrJzAW6I/AAAAAAAAAjo/KLN9DFku6dY/s400/ELH.jpg" border="0" alt=""id="BLOGGER_PHOTO_ID_5482272370083257250" /></a><br /><span style="font-weight:bold;">ये ख़बर किसी का भी दिल दहला सकती है।</span> हो सकता है इसको पढ़ने के बाद आपके रोएं भी खड़े हो जाएं.. लेकिन ये ख़बर एकदम सच है.. इसी ज़मीन पर एक मुल्क ऐसा भी है, जहां लोग मिनटों में एक हाथी को चट कर गए। सुनकर अटपटा लग रहा है न आपको.. लेकिन ये एकदम सच है..<span style="font-weight:bold;"> इंसान ने हैवान का रूप इख्तियार कर एक हाथी को चट कर दिया। </span>एक हुजूम देखते ही देखते विशालकाय हाथी को हज़म कर गया.. और किसी को डकार भी नहीं आई। <span style="font-weight:bold;">छह हज़ार किलो का हाथी, डेढ़ घंटे से भी कम वक्त में ख़त्म हो गया.. </span>देखते ही देखते हाथी की बोटी-बोटी कर दी गईं... और मैदान में कुछ बचा, तो सिर्फ़ हाथी का कंकाल..अगर आपको अब भी यकीन नहीं है, तो ये तस्वीरें देख लीजिए... जो इस कहानी को खुद-ब-खुद बयां कर रही हैं। क्योंकि तस्वीरें कभी झूठ नही बोलतीं... <br /><br /><a onblur="try {parent.deselectBloggerImageGracefully();} catch(e) {}" href="http://3.bp.blogspot.com/_kcUDTs00Zpc/TBTx9rDGzkI/AAAAAAAAAjw/ZBT362rD1RU/s1600/ELH2.jpg"><img style="display:block; margin:0px auto 10px; text-align:center;cursor:pointer; cursor:hand;width: 400px; height: 320px;" src="http://3.bp.blogspot.com/_kcUDTs00Zpc/TBTx9rDGzkI/AAAAAAAAAjw/ZBT362rD1RU/s400/ELH2.jpg" border="0" alt=""id="BLOGGER_PHOTO_ID_5482272688246804034" /></a><br />हाथी का गोश्त खाने के शौकीन इन लोगों ने भालों और नुकीले हथियारों से उसका काम तमाम कर दिया। इन लोगों ने तो दरिंदगी की इंतिहा पार कर दी...जंगल में बीमारी से तड़प-तड़प कर हाथी मौत की नींद सो गया.. और उसे बचाने वाले हाथ उसकी मौत पर जश्न मनाने में जुटे थे। मामला जिम्बाब्वे के गोरालिज़ू नेशनल पार्क का है. जहां बीमारी की वजह से एक हाथी की मौत हो गई.. जैसे ही ये ख़बर इलाके में आम हुई.. एक हुजूम हाथी की तरफ़ उमड़ पड़ा... <span style="font-weight:bold;">मरे हुए हाथी को देखते ही लोगों ने आव देखा न ताव.. भीड़ में जिसको भी मौका मिला.. वो हाथी का गोश्त खाने के लिए पागल हो गया...</span> भूखी भीड़ मरे हुए हाथी पर टूट पड़ी। दरिंदगी की हद पार करते हुए लोगों ने उसकी बोटी-बोटी कर डाली...<span style="font-weight:bold;"> भूखे भेड़ियों की तरह लोगों ने उसके जिस्म से गोश्त के पारचे उतारना शुरु कर दिये। </span>जिसको जो मिला, उसने मरे हुए हाथी पर वही आज़माया। तीर-तलवारों से लेकर छोटे-छोटे भालाओं तक, हाथी पर हर तरह के हथियार का इस्तेमाल किया गया... <span style="font-weight:bold;"> बच्चों से लेकर बड़े तक सब इस जश्न में शामिल थे...</span><br /><br /><a onblur="try {parent.deselectBloggerImageGracefully();} catch(e) {}" href="http://1.bp.blogspot.com/_kcUDTs00Zpc/TBTyrPTiSbI/AAAAAAAAAj4/6nUUGq4lHmI/s1600/ELH3.jpg"><img style="display:block; margin:0px auto 10px; text-align:center;cursor:pointer; cursor:hand;width: 400px; height: 283px;" src="http://1.bp.blogspot.com/_kcUDTs00Zpc/TBTyrPTiSbI/AAAAAAAAAj4/6nUUGq4lHmI/s400/ELH3.jpg" border="0" alt=""id="BLOGGER_PHOTO_ID_5482273471073503666" /></a><br />गांव-गांव से लोग हाथी का गोश्त खाने के लिए उमड़ पड़े... हाथी के दोश्त की दावत आम हो गई... लोग बोरे और बर्तनों में भरकर गोश्त अपने घर ले गए.. <span style="font-weight:bold;">लेकिन कुछ लोग तो ऐसे थे, जो हाथी के गोश्त को कच्चा ही चबा गए... </span>गोश्त को झपटने के लिए हालत ये थी, कि लोग एक दूसरे से गुत्थमगुत्था भी हो गए... देखते ही देखते मिनटों में ही छह हज़ार किलो का हाथी कंकाल में बदल गया.. <span style="font-weight:bold;">हालांकि इस घटना के बाद इंसान और जानवर में फर्क करना ज़रा मुश्किल हो रहा है...</span> लेकिन इंसान अपना काम तमाम कर चुका था.. अब बारी जानवरों की थी... और इंसान के बाद वहां कुत्ते भी अपने लिए बोटी-हड्डी की तलाश में मंडराने लगे.. पापी पेट के लिए इंसान सचमुच हैवान बन गया.. <span style="font-weight:bold;">एक मरे हुए हाथी के लिए इससे बुरा क्या होगा, कि उसकी मौत पर मातम मनाने के बजाए, लोग उसके मातम का जश्न मना रहे थे...</span>अबयज़ ख़ानhttp://www.blogger.com/profile/06351699314075950295noreply@blogger.com17tag:blogger.com,1999:blog-4208086182725287078.post-20068682777362556842010-05-09T04:21:00.005+09:002010-05-09T04:34:06.524+09:00मां तेरे चेहरे में मुझे भगवान नज़र आता है...<span style="font-weight:bold;">मां... मैंने कभी ख़ुदा की सूरत तो नहीं देखी..<br />मगर तेरे चेहरे में मुझे भगवान नज़र आता है..<br /></span><br /><a onblur="try {parent.deselectBloggerImageGracefully();} catch(e) {}" href="http://2.bp.blogspot.com/_kcUDTs00Zpc/S-W7IOi6sqI/AAAAAAAAAjg/ZnJqz2eE1Dw/s1600/Mother_child_720.jpg"><img style="cursor:pointer; cursor:hand;width: 400px; height: 319px;" src="http://2.bp.blogspot.com/_kcUDTs00Zpc/S-W7IOi6sqI/AAAAAAAAAjg/ZnJqz2eE1Dw/s400/Mother_child_720.jpg" border="0" alt=""id="BLOGGER_PHOTO_ID_5468983072529232546" /></a><br /><br /><span style="font-weight:bold;">मां </span>जब मैंने इस दुनिया में आंखे खोली थीं... तो सबसे पहले तेरा ही चेहरा नज़र आया था.. तुम्हारे नाज़ुक हाथों में मेरी परवरिश हुई.. उंगली पकड़कर आपने ही तो मुझे चलना सिखाया था.. <span style="font-weight:bold;">जब मैंने बोलना शुरु किया था, तो सबसे पहले मेरे मुंह से मां ही तो निकला था.. और तुम कैसे ख़ुशी से चहकी थीं...</span> देखो-देखो.. उसने मुझे मां कहा है... घुटनों के बल चलते वक्त जब मुझे ज़रा सी ठेस लग जाती थी, तो कैसे तुम्हारा कलेजा छलनी हो जाता था.. जब मैंने होश संभाला, तब सबसे पहले तुमने ही मुझे उंगली पकड़कर चलना सिखाया था... <span style="font-weight:bold;">उसके बाद स्कूल जाने से पहले तुमने ही तो मुझे घर में क ख ग घ सिखाया था... </span>तुम मेरी मां के बाद मेरी पहली टीचर भी तो बनीं थीं... फिर जब मैं पापा की उंगली पकड़कर स्कूल जाने लगा, तो तुम सुबह सवेरे ही मेरे लिए उठ जाती थीं... पहले मुझे नहलाना-धुलाना, फिर जल्दी से नाश्ता बनाना.. मां तुम्हारे दिन की शुरुआत तो इसी के साथ ही होती थी... <br /><br />जैसे-जैसे मैं बड़ा होने लगा...फिर मेरी फ़रमाइशें बढ़ने लगीं... मेरे नख़रे बढ़ने लगे... मेरी शैतानियां बढ़ने लगीं.. लेकिन तुमने हमेशा किसी साए की तरह मेरा साथ निभाया... <span style="font-weight:bold;">मैं बीमार हुआ, तुम रातों को भी मेरी ख़ातिर नहीं सोईं... मुझे दर्द हुआ.. तुम हमेशा मेरी ख़ातिर रोईं... </span>लेकिन मेरी एहसानफ़रामोशी तो देखो...तुम्हारे खाने से लेकर तुम्हारी बातों तक हर किसी में मुझे ऐब निकालने की आदत थी.. लेकिन तुमने तो कभी उफ़ तक नहीं की... मैंने कितनी बार ज़िद की होगी तुमसे.. लेकिन तुम कभी ख़फ़ा भी तो नहीं होती थी... कितनी बार तुमसे झूठ भी बोला होगा.. लेकिन कभी मुझे सज़ा तक नहीं दी... मुझे अगर ज़ख्म हो जाए... तो मेरी मां की तो जान ही निकल जाती थी... मेरे स्कूल से देर हो जाने पर कैसे तुम बैचेन हो जाया करती थीं... जब पापा कभी मुझे डांटते थे, तो कैसे तुम मुझे अपने पीछे छिपा लिया करती थीं... <span style="font-weight:bold;"><br /><br />ज़िदगी की धूप में ख़ुद को खड़ा करने वाली मां, हर घड़ी सिर्फ़ मेरे लिए ही दुआ करती है... </span>मैं जब बड़ा हुआ तो स्कूल से कॉलेज जाने का वक्त आया.. लेकिन घर से बाहर जाने के बारे में सुनकर ही मां कैसे परेशान सी हो गई थीं.. उनके जिगर का टुकड़ा उनसे कहां रहेगा.. कैसे रहेगा.. उसे खाना कौन खिलाएगा, कौन उसके नख़रों को बर्दाश्त करेगा... लेकिन मुझे तो जाना था.. अब घर की दहलीज़ तो छूटना ही थी.. मां ने भी अपने बच्चे के बेहतर मुस्तकबिल के लिए दिल पर पत्थर रख लिया था... अब मां दूर हो गई थी... अब उससे बात करने के लिए एक फ़ोन का ही सहारा था... दूसरे शहर में अब मां की अहमियत का अंदाज़ा हुआ था... <span style="font-weight:bold;">अब याद आती थी.. मां के हाथ की बनी खीर.. बचपन में उनके हाथ से सिले कपड़े.. घर के पीछे वाले पेड़ पर मां के हाथ का बनाया हुआ झूला.. गर्मी में आम का पन्ना.. सर्दियों में मां के हाथ का बुना हुआ स्वेटर..</span> अभी तो घर छूटा था... लेकिन मंज़िल तो किसी दूसरे शहर में थी...<br /><br />पढ़ाई मुकम्मल होने के बाद अब तलाश थी नौकरी की... लेकिन अपने घर में नौकरी का कोई ज़रिया नहीं था... अब छोटे शहर से बड़े शहर की तरफ़ रूख़ करना मजबूरी थी... मां की आंखे नम नहीं थीं... बल्कि अब उनकी आंखों से ज़ार-ज़ार आंसू बह रहे थे.. बेटा अब बहुत दूर जा रहा था... जिगर का टुकड़ा अब शायद परदेसी होने वाला था... उसका दाना-पानी दूसरे शहर में ही लिखा था... अब घर नहीं छूटा था.. अब पापा के साथ मां भी छूट गई थी... घर से विदाई के वक्त पापा ने दिल को तसल्ली दे ली थी... लेकिन मां तो आख़िर मां थी... <span style="font-weight:bold;">उसका लख़्ते-जिगर उसका नूरे-नज़र अब जा रहा था दूर-बहुत दूर... </span>लेकिन एक बार फिर मां ने अपने अरमानों को जज़्ब कर लिया था... बेटा अब बड़े शहर में था.. लेकिन परदेस में वक्त ने सबकुछ बदल डाला था... <br /><br />अब मां से सिर्फ़ फोन पर ही थोड़ी सी गुफ्तुगू होती है... <span style="font-weight:bold;">अब मुनव्वर राना और निदा फ़ाज़ली की ग़ज़लों में मां याद आती है...</span> अब अकेले में तन्हाई में मां याद आती है... <span style="font-weight:bold;">अब मां के हाथ की करेले की सब्ज़ी बहुत मीठी लगती है...</span> अब मां घर लौटकर मां की गोद में न तो रोने का वक्त है और न ही मां की गोद में सोने का... अब मां बहुत दूर है... उस छोटे से गांव में जहां वो बेसन की रोटी पर देसी घी लगाती थी... जहां मिट्टी के चूल्हे पर आंखे जलाती है...जहां मेरी ख़ातिर अब भी वो पापा से लड़ जाती है... अब मां याद आती है... सोंधी रोटी पर खट्टी चटनी जैसी माँ, याद आता है चौका-बासन, चिमटा फुँकनी जैसी माँ। बाँस की खुर्री खाट के ऊपर हर आहट पर कान धरे, आधी सोई आधी जागी थकी दुपहरी जैसी माँ। मां मुझे फिर से ले चलो उसी बचपन में जहां मेरी शैतानियां हों... और तुम्हारा ढेर सारा लाड़-प्यार... मेरा वादा है कि फिर मैं तुम्हें तंग नहीं करूंगा.. कभी नहीं.. कभी नहीं... कभी नहीं...अबयज़ ख़ानhttp://www.blogger.com/profile/06351699314075950295noreply@blogger.com15tag:blogger.com,1999:blog-4208086182725287078.post-83191959255274131862010-05-01T01:13:00.006+09:002010-05-01T01:32:04.753+09:00मेरी किस्मत और मेरा चांद..<a onblur="try {parent.deselectBloggerImageGracefully();} catch(e) {}" href="http://1.bp.blogspot.com/_kcUDTs00Zpc/S9sFsNZ3OyI/AAAAAAAAAjU/fezB9YfP6Tw/s1600/Moon.jpg"><img style="cursor:pointer; cursor:hand;width: 320px; height: 320px;" src="http://1.bp.blogspot.com/_kcUDTs00Zpc/S9sFsNZ3OyI/AAAAAAAAAjU/fezB9YfP6Tw/s320/Moon.jpg" border="0" alt=""id="BLOGGER_PHOTO_ID_5465968829814749986" /></a><br /><br /><span style="font-weight:bold;">मेरी किस्मत और मेरा चांद<br />मुझसे खेल रहे थे लुकाछिपी का खेल<br /><br />मेरा चांद मेरे क़रीब आकर भी दूर हो जाता<br />और मेरी किस्मत मुझे ठेंगा दिखा जाती।<br /><br />चौदहवीं की रौशनी में चमकने के बावजूद<br />नजूमी के पन्नों में दमकने के बावजूद<br /><br />दूरियों का दायरा...<br />चांद और किस्मत के दरम्यान और बढ़ गया<br /><br />और मैं फ़ैसला लेने में लाचार था<br />कि मेरी किस्मत बुलंद है<br />या मेरा चांद मेरी ज़िंदगी है<br /><br />आख़िर ज़िंदगी के एक मोड़ पर<br />मेरा चांद बेज़िया होने लगा<br />और किस्मत ने लुकाछिपी के <br />इस खेल में मुझे मात दे दी।।<br />(बेज़िया मतलब डूबना)</span>अबयज़ ख़ानhttp://www.blogger.com/profile/06351699314075950295noreply@blogger.com9tag:blogger.com,1999:blog-4208086182725287078.post-38281924610751608122010-04-28T01:56:00.007+09:002010-04-28T02:10:23.835+09:00इस शहर में अब मन नहीं लगता...<a onblur="try {parent.deselectBloggerImageGracefully();} catch(e) {}" href="http://4.bp.blogspot.com/_kcUDTs00Zpc/S9cZKq2os6I/AAAAAAAAAic/lKvB5kPvEkE/s1600/My+Home.jpg"><img style="float:left; margin:0 10px 10px 0;cursor:pointer; cursor:hand;width: 240px; height: 320px;" src="http://4.bp.blogspot.com/_kcUDTs00Zpc/S9cZKq2os6I/AAAAAAAAAic/lKvB5kPvEkE/s320/My+Home.jpg" border="0" alt=""id="BLOGGER_PHOTO_ID_5464864343930221474" /></a><span style="font-weight:bold;">बंसत निकल चुका था... हर तरफ फागुन की मस्ती छाई थी.. खेतों में गेंहूं की फसल कट चुकी थी... गन्ना भी खेतों से उठ चुका था...</span> दिल्ली में बहुत दिन रहने के बाद अकेलेपन में घर की याद सताने लगी थी... मैंने दफ्तर से कुछ दिन की छुट्टी ली और अपने घर चला गया... घर दिल्ली से दो सौ किलोमीटर था, लेकिन अपना था... सफर काटना मुश्किल हो रहा था... मन कर रहा था, कि उड़ते हुए घर पहुंच जाऊं... घरवाले बहुत याद आ रहे थे... <span style="font-weight:bold;">सात घंटे की थकान भरा सफ़र पूरा करने के बाद मैं घर पहुंचा, तो घर में सूने चेहरों पर मुस्कुराहट लौट आई थी.. मेरे जाने से मानों घर खिल चुका था...</span> घरवाले भी जानते थे, कि मैं दो-या तीन दिन की छुट्टी पर ही आया हूं.. लेकिन उनके लिए इतना ही काफी था, कि मैं उनकी नज़रों के सामने हूं...नाते-रिश्तेदारों से मुलाकात के बाद मैंने अपने खेत पर जाने का फैसला किया... चाचा को साथ लेकर मैं जंगल में अपने खेत पर निकल गया... गन्ने की फसल पूरी तरह उठ चुकी थी... खेत की मेंडों पर चारों तरफ लिप्टिस और पॉपुलर के पेड़ लगा दिये गये थे.. लिप्टस के पेड़ तो अब छाया भी देने लगे थे... बाकी खेत में गन्ने की पेड़ी थी... बीच-बीच में मैंथा भी बो दिया गया था... खेत अपनी तारीफ अपने मुंह से कर रहा था.. <br /><br /><a onblur="try {parent.deselectBloggerImageGracefully();} catch(e) {}" href="http://1.bp.blogspot.com/_kcUDTs00Zpc/S9cZbNQv8HI/AAAAAAAAAik/CWAcGWCTfxM/s1600/Dady.jpg"><img style="float:right; margin:0 0 10px 10px;cursor:pointer; cursor:hand;width: 240px; height: 320px;" src="http://1.bp.blogspot.com/_kcUDTs00Zpc/S9cZbNQv8HI/AAAAAAAAAik/CWAcGWCTfxM/s320/Dady.jpg" border="0" alt=""id="BLOGGER_PHOTO_ID_5464864628044460146" /></a>मेरा मन किया कि अब वापस दिल्ली न जाकर यहीं रुक जाऊं... अब कौन है दिल्ली में.. किसके लिए वापस जाऊं... यहां तो सभी अपने हैं.. मां-बाप हैं.. भाई हैं.. अपना घर है... और सबसे बड़ी बात अपनापन है... कम से कम मां के हाथ का खाना तो मिलेगा... दिल्ली में ढंग से खाना भी नसीब नहीं होता... मां के हाथ का खाना खाए हुए तो महीनों बीत जाते हैं... <span style="font-weight:bold;">शकरकंद की खीर खाए हुए तो कई साल हो गये... लेकिन इस बार घर पर मां से कहकर गन्ने के रस की खीर ज़रूर बनवाई थी.. बहुत मज़ा आया था उसे खाने में..</span> कई साल बाद गन्ने के रस की खीर खाने का मौका मिला था...मेरे दिल ने फिर कहा... अब दिल्ली लौटकर क्या करोगे... कोई नहीं है वहां तुम्हारा... सिवाए नौकरी के... वो भी मज़दूरों जैसी... न खाने का होश... न जीने का... लेकिन फिर कहीं मन में एक ख्याल आ जाता.. कि घर पर मैं करूंगा भी क्या... न कोई नौकरी.. न कोई कारोबार... <br /><br />लेकिन मन ने कहा..नहीं..नहीं.. अभी नहीं... इतनी जल्दी नहीं... अभी कुछ दिन और देखता हूं... शायद कोई बात बन जाए... इसी उधेड़बुन में छुट्टी के तीन दिन कहां गुज़र गये... पता भी नहीं चला... ऐसा लगा जैसे हवा का एक झोका आया... और सबकुछ उड़ाकर ले गया... मां की आंखों में आंसू थे.. इन तीन दिन में उनसे दो लफ्ज़ ढंग से बाते भी नहीं हुई थीं.. वक्त तो जैसे तूफ़ान की तरह उड़ गया था... <br />दिल्ली के लिए रावनगी की तैयारी शुरु हो गई... इसी बीच मैंने मौका निकालकर पापा से कह ही दिया...<br /><br /><span style="font-weight:bold;">पापा.. अब दिल्ली में मन नहीं लगता.. वापस घर आने को दिल करता है..<br />हां... तो आ जाओ.. इसमें परेशानी क्या है...<br />परेशानी तो कोई नहीं है.. लेकिन मैं सोच रहा हूं, कुछ दिन नौकरी और कर लूं... फिर जल्द ही यहां वापस लौट आऊंगा...<br />कोई बात नहीं.. तुम अपना मन बना लो... फिर जब चाहें आ जाना.. यहां तो तुम्हारा घर है...<br />पापा की इतनी सी बात ने बड़ा सहारा दे दिया...<br /></span><br />अनमने मन से घरवालों से विदाई लेकर दिल्ली के लिए रवानगी की... लेकिन घर से निकलते वक्त भी दिल कह रहा था, कि वापस मत जाओ.. वहां कौन है तुम्हारा... किसके लिए जा रहे हो.. लेकिन क्या करता.. नौकरी जो ठहरी...<br /><br /><span style="font-weight:bold;">फिज़ा भी मुखालिफ थी.. रास्ते मुख्तलिफ थे... हम कहां मुकाबिल थे.. सारा ज़माना मुख़ालिफ़ था..</span>अबयज़ ख़ानhttp://www.blogger.com/profile/06351699314075950295noreply@blogger.com7tag:blogger.com,1999:blog-4208086182725287078.post-68556911222037731622010-04-01T22:41:00.006+09:002010-04-01T23:01:51.443+09:00गरीबों की कार का गरीबों जैसा हश्र...<a onblur="try {parent.deselectBloggerImageGracefully();} catch(e) {}" href="http://3.bp.blogspot.com/_kcUDTs00Zpc/S7Smfx6puQI/AAAAAAAAAiE/8CLtBXfOLKg/s1600/Maruti+Pics+2.jpg"><img style="float:left; margin:0 10px 10px 0;cursor:pointer; cursor:hand;width: 320px; height: 229px;" src="http://3.bp.blogspot.com/_kcUDTs00Zpc/S7Smfx6puQI/AAAAAAAAAiE/8CLtBXfOLKg/s320/Maruti+Pics+2.jpg" border="0" alt=""id="BLOGGER_PHOTO_ID_5455168113558010114" /></a>अरे कहां हैं...आप..? आपके सपनों की कार अब आपसे विदा ले रही है... और आप खामोश हैं... <span style="font-weight:bold;">पहले आपका स्कूटर आपसे विदा हुआ.. और अब आपकी कार...</span> अरे वही कार जिसके लिए आपने अपनी जेब काटकर कुछ रुपये गुल्लक में जमा किया थे... वही कार जिसके लिए आपने अपना पुराना स्कूटर भी बेच दिया था... चार पहियों वाली छोटी सी वही कार, जिसे शोरूम से घर लाने के बाद आप सीना चौड़ाकर घूमते थे.. जिसके लिए, आपने आनन-फानन में आंगन के बाहर एक गैराज भी तैयार कराया था.. अरे भई कार आ रही है, तो गैराज क्यों नहीं होगा... वरना कार खड़ी कहां होगी... कार आने के बाद उसकी आवभगत में क्या जश्न हुआ था.. <span style="font-weight:bold;">कार को देखने के लिए पूरा मोहल्ला जमा हो गया था.. </span>मजाल क्या कोई बच्चा उसे छू तो ले... उस पर ज़रा सी खरोंच भी आ जाए तो उफ्फ़ जान ही निकल जाए.. वही कार जिसमें बैठकर आप अपने-अपनों को ही भूल जाते थे.. <br /><br />वही कार जिसने सोसाइटी में आपका स्टेटस सिंबल बढ़ा दिया था... अपने बीवी बच्चों के साथ आप जब उस कार में बैठते थे, तो शायद खुद को किसी लॉर्ड से कम नहीं समझते थे.. <span style="font-weight:bold;">घर में सपनों की कार ने आपको बड़ा आदमी बनाया था, तो साथ में अदब और सलीका भी सिखाया था... कपड़े पहनने का सलीका सिखाया था.. </span>अब कार में बैठने के लिए क्रीज़ वाले ही कपड़े पहने जाते थे.. कार ज़रा सी गंदी हो जाए, तो फिर क्या.. पूरा घर मिलकर उसकी धुलाई-सफ़ाई में लग जाता था.. कार ने ज़रा सी खिचखिच क्या की, बस ज़रा देर में ही पहुंच गई गैराज... उसके नाज़-नखरे उठाने के लिए पूरा घर लग जाता था.. बात-बात में आप कहीं जाने के बहाने ढूंढते थे, ताकि कार को गैराज से निकालकर कहीं तफ़रीह ही कर आएं..<span style="font-weight:bold;"> कार में बैठने के बाद रूतबा ऐसा बढ़ा था, कि अब नु्क्कड़ की चाय पीने के बजाए रेस्त्रां में बैठकर गप्पें नोश फ़रमाई जाती थीं...</span> कहीं बाहर खाना खाने के बहाने ढूंढे जाते थे... बेगम और बच्चों के साथ गर्मियों की छु्ट्टियों में पहाड़ पर जाने के प्रोग्राम बनते थे.. <br /><br /><a onblur="try {parent.deselectBloggerImageGracefully();} catch(e) {}" href="http://2.bp.blogspot.com/_kcUDTs00Zpc/S7SlyKELdvI/AAAAAAAAAh8/DLOlw92gBpc/s1600/Maruti+Pics3.jpg"><img style="float:right; margin:0 0 10px 10px;cursor:pointer; cursor:hand;width: 320px; height: 240px;" src="http://2.bp.blogspot.com/_kcUDTs00Zpc/S7SlyKELdvI/AAAAAAAAAh8/DLOlw92gBpc/s320/Maruti+Pics3.jpg" border="0" alt=""id="BLOGGER_PHOTO_ID_5455167329766438642" /></a>इधर छुटिटयों का ऐलान हुआ, उधर पूरा घर जुट गया तैयारियों में... पीछे डिग्गी में भरा ढेर सारा सामान.. और चल दिये मंज़िल की ओर... और कार बेफिक्र हर कहीं आपके साथ जाने को तैयार.. हरदम तैयार... बस स्टार्ट करने की देर है.. और लो जी चल पड़ी अपनी मंज़िल की तरफ़... फिर चाहें कैसी ही सड़क हो.. सड़क ऊबड़-खाबड़ हो या फिर उसमें गड्ढे हों...पथरीली हो, या फिर पहाड़ की चढ़ाई, बेचारी ने उफ़्फ तक नहीं की... <span style="font-weight:bold;">कार में चलने के बाद आपकी शाहखर्ची भी बढ़ गई थी.. भले ही पैसे से आप अमीर न बने हों, लेकिन कार ने आपका रूतबा तो ज़रूर बढ़ाया था... अब आप सादा फिल्टर के बजाए सिगार पीने लगे थे.. </span>यार दोस्तों में कार की शानदार सवारी के किस्से बार-बार सुनाए जाते थे... आपकी बेगम मोहल्ले भर की औरतों को कार के किस्से-कहानियां सुनाती थीं.. <span style="font-weight:bold;">और आपके पप्पू की तो पूछिए ही मत.. स्कूल में सब बच्चे अब पप्पू से दोस्ती करना चाहते थे, ताकि किसी बहाने पप्पू की कार में चड्डू खाने को मिल जाए..</span> चड्डू न सही कम से कम कार तो देखने को मिल ही जाएगी... <br /><br />वक्त का पहिया घूमा तो मारूति ने मिडिल क्लास से निकलकर गरीब आदमी के घर में कदम रखा... <span style="font-weight:bold;">सेकेंड हेंड मारूति के चलन ने उन लोगों को भी कार वाला बना दिया, जो खुद को 'बे'कार समझते थे... कार ने आम आदमी का इतना ख्याल रखा, कि 20 से 50 हज़ार की हैसियत वाले भी मारूति 800 की बदौलत कार वाले हो गए...</span> लेकिन अब आप बड़े आदमी हो गए, तो उस छोटी सी कार को भला क्यों याद रखेंगे... वक्त के साथ आपके सपने भी बड़े होने लगे हैं... अब मारूति को छोड़कर आप लक्ज़री कार में सवार हो चुके हैं... अब आपको अपनी कार का शीशा हाथ से ऊपर चढ़ाने की ज़रूरत नहीं हैं... अब आपकी गाड़ी में सब कुछ ऑटोमेटिक है... बड़ी कार के साथ रूतबा और भी बढ़ा हो गया है...अब आप ऐसी की ठंडी हवा में लक्ज़री कार की सवारी का लुत्फ़ लेते हैं..देश की बड़ी आबादी को कार वाला बनाने वाली मारूति 800 जा रही है... कभी न लौटकर आने के लिए.. लेकिन आपको क्या.. आपकी बला से... <br /><br /><a onblur="try {parent.deselectBloggerImageGracefully();} catch(e) {}" href="http://1.bp.blogspot.com/_kcUDTs00Zpc/S7SkkNAGGoI/AAAAAAAAAh0/-c46U7INtHg/s1600/Maruti+Pics.jpg"><img style="float:left; margin:0 10px 10px 0;cursor:pointer; cursor:hand;width: 320px; height: 240px;" src="http://1.bp.blogspot.com/_kcUDTs00Zpc/S7SkkNAGGoI/AAAAAAAAAh0/-c46U7INtHg/s320/Maruti+Pics.jpg" border="0" alt=""id="BLOGGER_PHOTO_ID_5455165990524820098" /></a>26 साल का लंबा अरसा तय करने के बाद मारूति कंपनी ने उस कार को बंद करने का फैसला किया है, जो हिंदुस्तान के मिडिल क्लास के परिवार को ढोती थी...जो किसी वक्त में हिंदुस्तान के सुखी परिवार का स्टेट्स सिंबल बन चुकी थी.. <span style="font-weight:bold;">14 दिसंबर 1983 को जब इंदिरा गांधी ने इसे गुड़गांव से लॉंच किया था, तो कार बाज़ार में तहलका मच गया था... </span>हालांकि भारत में उस वक्त कुछ गिनी-चुनी ही कारें थीं.. और वो भी अमीरों के शौक में शामिल थीं... मिडिल क्लास तो तब कार के बारे में सोच भी नहीं सकता था.. मारूति से सिर्फ़ खानदान ही नहीं जुड़े थे, बल्कि इस कार के साथ जज़्बात जुड़े थे... <span style="font-weight:bold;">26 बरस में मारूति ने करीब 28 लाख से ज्यादा 800 मॉडल की कारें बेचीं.. लेकिन आज वही कंपनी कह रही है, कि हम भावनाओं को हावी नहीं होने देते..</span> देश में ख़तरनाक होती आबोहवा के लिए अब इस बेचारी को भी ज़िम्मेदार ठहराया जा रहा है... लेकिन कोई ये नहीं कहता कि सड़कों पर दनानदन दौड़ रही कारें भी तो इसके लिए ज़िम्मेदार हैं... फिर बेचारी अकेली मारूति 800 पर ही तोहमत क्यों..? कंपनी ने बाकी सभी कारों को यूरो-4 पर अपग्रेड कर लिया है, और मिडिल क्लास के बाद आम आदमी की इस कार पर किसी को ज़रा भी तरस नहीं खाया...अबयज़ ख़ानhttp://www.blogger.com/profile/06351699314075950295noreply@blogger.com11tag:blogger.com,1999:blog-4208086182725287078.post-55156554276107849682010-03-16T02:07:00.008+09:002010-03-16T02:55:23.897+09:00ये तस्वीरें ज़रूर देखिए.. बहुत कुछ कहती हैं...इस बार ब्लॉग की पोस्ट बिल्कुल ही अलग सी है.. <span style="font-weight:bold;">इस बार कलम नहीं सिर्फ तस्वीरें बोलेंगी... देखने में भले ही ये तस्वीरें मामूली सी हों... लेकिन इनके पीछे कई सदियां छिपी हुई हैं.. </span>इन तस्वीरों में जीकर तमाम पीढ़ियां गुज़र गईं... ये तस्वीरें बेशक गुजरे ज़माने की दास्तान बयान करती हों... लेकिन इन तस्वीरों के पीछे फोटोग्राफी की कई दास्तानें छिपी हैं... एक दौर छिपा है, जिसकी कहानियां हम आज की पीढ़ी को सुनाते हैं.. ये तस्वीरें गुज़रा ज़माना याद कराती हैं.. तो बचपन के दिनों को याद कराकर आंखों को भी नम कर देती हैं...<br /> <br /><a onblur="try {parent.deselectBloggerImageGracefully();} catch(e) {}" href="http://3.bp.blogspot.com/_kcUDTs00Zpc/S55qvCM6b5I/AAAAAAAAAhM/5IiMUEds2dM/s1600-h/3.jpg"><img style="display:block; margin:0px auto 10px; text-align:center;cursor:pointer; cursor:hand;width: 400px; height: 272px;" src="http://3.bp.blogspot.com/_kcUDTs00Zpc/S55qvCM6b5I/AAAAAAAAAhM/5IiMUEds2dM/s400/3.jpg" border="0" alt=""id="BLOGGER_PHOTO_ID_5448909955442306962" /></a><span style="font-weight:bold;">अब ज़रा चाची की इस इस तस्वीर को ही गौर से देख लीजिए</span>... फोटो खिंचवाने का ये भी एक अनूठा ही शौक था.. <span style="font-weight:bold;">फोटो स्टूडियो में नकली मोटरसाईकिल पर बैठकर फोटो खिंचवाने का भी अपना ही अलग मज़ा था... और पीछे सवारी भी बैठी हो, फिर तो क्या कहने... </span>क्यों जी कुछ याद आया.. आंटी जी की इस तस्वीर को देखकर.. घर के पास वाले मेलों में तो अपने भी ऐसी तस्वीरे ज़रूर खिंचवाई होगी...<br /><br /><a onblur="try {parent.deselectBloggerImageGracefully();} catch(e) {}" href="http://1.bp.blogspot.com/_kcUDTs00Zpc/S55tOY0rJoI/AAAAAAAAAhc/NIjrjnQQZA8/s1600-h/2.jpg"><img style="float:left; margin:0 10px 10px 0;cursor:pointer; cursor:hand;width: 214px; height: 320px;" src="http://1.bp.blogspot.com/_kcUDTs00Zpc/S55tOY0rJoI/AAAAAAAAAhc/NIjrjnQQZA8/s320/2.jpg" border="0" alt=""id="BLOGGER_PHOTO_ID_5448912693113857666" /></a>चलिए अब एक और तस्वीर से आपको रूबरू कराते हैं.. 80 से 90 के दौरान अगर आपकी शादी हुई होगी, तो अपनी बेगम के साथ आपने भी तस्वीर तो ज़रूर खिंचवाई होगी.. क्या कमाल के फोटग्राफर हुआ करते थे... आपके इशारे से पहले ही समझ जाते थे, कि आपको ऐसी तस्वीर चाहिए, जिससे ये साबित हो जाए, कि आप उसके लिए चांद ही तोड़कर ले आए.. ढूंढिए अपने घर में भी कोई ऐसी तस्वीर...<span style="font-weight:bold;">चांद में से झांकते शौहर जनाब अपनी बीवी को दिलासा दिला रहे हैं कि बेगम मान भी जाओ.. असली न सही, कम से कम आपके लिए चांद तो ले ही आया.. </span>लेकिन बेगम हैं कि फोटो में भी रूठी-रूठी नज़र आती हैं.. तस्वीर में चांद भी है, दिल भी है, लेकिन दिलरुबा रूठी-रूठी सी है.. इंडियन फोटोग्राफी का पूरा कमाल है.. लेकिन कमाल ये है कि बेगम हैं कि मानती ही नहीं.. कुछ याद करिए.. आपने भी ऐसी तस्वीर ज़रूर बनवाई होगी.. तो निकालिए अपनी एलबम और गुज़रे ज़माने को भी ज़रा याद कर लीजिए.. <br /><br /><a onblur="try {parent.deselectBloggerImageGracefully();} catch(e) {}" href="http://3.bp.blogspot.com/_kcUDTs00Zpc/S55u_NhiLrI/AAAAAAAAAhk/aOCuG0yKl8w/s1600-h/1.jpg"><img style="float:right; margin:0 0 10px 10px;cursor:pointer; cursor:hand;width: 206px; height: 320px;" src="http://3.bp.blogspot.com/_kcUDTs00Zpc/S55u_NhiLrI/AAAAAAAAAhk/aOCuG0yKl8w/s320/1.jpg" border="0" alt=""id="BLOGGER_PHOTO_ID_5448914631406005938" /></a>अब एक तस्वीर यारबाज़ों के लिए.. ये उनके लिए जिन्हें काम के बाद यारी का बड़ा शौक था.. दोस्तों के साथ घूमने जाने के बहाने ढूंढते थे... और बात-बात पर पहुंच जाते थे फोटोग्राफर भाईसाहब के पास.. <span style="font-weight:bold;">नए-नए कपड़ों और सूटबूट में सजधजकर पहुंच गए तस्वीर खिंचवाने.. लेकिन वो तस्वीर ही क्या जिसमें टशन न हो.. जिसमें अदा न हो.. दोस्तों का साथ हो और एक्टिंग न हो, तो फिर क्या कहने.. </span>फोटोग्राफर की दुकान पर अदा दिखाने का पूरा सामान मौजूद होता था.. बस फिर क्या था.. <span style="font-weight:bold;">हाथ में पकड़ा टेलीफोन और पीछे टेलिविज़न.. बगल में खड़े हो गए साथी.. क्या कमाल की पिक्चर होती थी.. पीछे पहाड़ों का नज़ारा, कुर्सी पर बैठकर बन गये लाट साहब..</span> फोटोग्राफर ने कहा स्माइल प्लीज़... और लो जी खिंच गई तस्वीर... अपने यार दोस्तों के साथ तो आपने भी ज़रूर खिंचवाई होगी ऐसी तस्वीर.. क्यों जी याद आए दोस्तों के साथ कुछ पुराने दिन..यारबाज़ी के दिन...<br /><br /><a onblur="try {parent.deselectBloggerImageGracefully();} catch(e) {}" href="http://4.bp.blogspot.com/_kcUDTs00Zpc/S55xvduOpoI/AAAAAAAAAhs/8dUqMYVkQmo/s1600-h/4.jpg"><img style="float:left; margin:0 10px 10px 0;cursor:pointer; cursor:hand;width: 200px; height: 320px;" src="http://4.bp.blogspot.com/_kcUDTs00Zpc/S55xvduOpoI/AAAAAAAAAhs/8dUqMYVkQmo/s320/4.jpg" border="0" alt=""id="BLOGGER_PHOTO_ID_5448917659411195522" /></a>ये तस्वीर देखकर आपको हंसी तो आ रही होगी, लेकिन हंसियेगा मत.. <span style="font-weight:bold;">कभी न कभी तो आपने भी किसी के साथ ऐसी तस्वीर खिंचवाई होगी.. रानी मुखर्जी न सही, प्रीती जिन्टा ही सही.. कुछ नहीं तो माधुरी के साथ ही.. आपके दिल ने भी धक-धक तो किया ही होगा... </span>अरे क्या हुआ असली न सही.. तो उसकी तस्वीर ही सही... <span style="font-weight:bold;">कम से कम तस्वीर ने तसव्वुर करने को कब मना किया है...</span> पीछे पहाड़ों का खूबसूरत नज़ारा और बगल में रानी मुखर्जी हो.. तो किस कमबख्त का मन नहीं करेगा...एक अदद तस्वीर बनवाने के लिए... <span style="font-weight:bold;">बस रानी मुखर्जी की कमर में डाल दिया हाथ.. कौन सा रानी मुखर्जी मना कर रही है.. और फिर वैसे भी फोटोग्राफर तो पूरे ही पैसे लेगा..</span> और फिर जब मौका मिल रहा है, तो क्यों न कैश करा लिया जाए... मेला भी याद रहेगा.. और मेले में खिंचवाई तस्वीर भी..तस्वीरें भले ही पुराने दौर की हों... लेकिन एक दौर को याद करा गईं... कुछ भूला-बिसरा वक्त..अबयज़ ख़ानhttp://www.blogger.com/profile/06351699314075950295noreply@blogger.com16tag:blogger.com,1999:blog-4208086182725287078.post-69076334262281273122010-02-27T13:56:00.010+09:002010-02-27T17:13:42.536+09:00दुनिया का सबसे ऊंचा पेट्रोल पंप...<a href="http://1.bp.blogspot.com/_kcUDTs00Zpc/S4iyZ3irtUI/AAAAAAAAAf8/7ElGsrDvIcE/s1600-h/Pet.jpg"><img style="float:left; margin:0 10px 10px 0;cursor:pointer; cursor:hand;width: 300px; height: 400px;" src="http://1.bp.blogspot.com/_kcUDTs00Zpc/S4iyZ3irtUI/AAAAAAAAAf8/7ElGsrDvIcE/s400/Pet.jpg" border="0" alt=""id="BLOGGER_PHOTO_ID_5442796307153139010" /></a>सबसे पहले आप ये तस्वीर देख लीजिए.. और तस्वीर में इस बोर्ड पर जो लिखा है उसे भी गौर से पढ़ लीजिए... जी हां <strong>सबसे ऊंचा पेट्रोल पंप.. और सबसे ऊंचा सिर्फ हिंदुस्तान में ही नहीं, बल्कि दुनिया का सबसे ऊंचा पेट्रोल पंप.. या ये भी कह सकते हैं कि भारत-तिब्बत सीमा पर सबसे आखिरी पेट्रोल पंप... </strong>अगर यहां आकर आपकी गाड़ी में पेट्रोल ख़त्म हो गया.. तो समझो.. फिर तो आपकी गड्डी चलने से रही... हिंदुस्तान के इस अनूठे पेट्रोल पंप पर भी हम आपको ले चलेंगे.. लेकिन उससे पहले ये जान लेना ज़रूरी है, कि भारत का ये सबसे आखिरी और दुनिया का सबसे ऊंचा पेट्रोल पंप आखिर हैं कहां..? शिमला से करीब 425 किलोमीटर और समुद्रतल से 3800 मीटर ऊंचाई पर एक छोटा सा कस्बा है काज़ा... हिमाचल के लाहौल-स्पीति ज़िले में मौजूद इस कस्बे की खूबसूरती देखते ही बनती है... <br /><br />वैसे तो पूरे लाहौल-स्पीति को ही बर्फीला रेगिस्तान कहा जाता है... लेकिन काज़ा की पहाड़ियों पर जमी बर्फ और हल्के काले बादल इसको और भी दिलकश बना देते हैं... लाहौल स्पीति की पूर्वी सीमा तिब्बत से मिलती है और तिब्बत की सीमा के पास ही मौजूद है काज़ा.. स्पीति नदी के किनारे पहाड़ी की चोटी पर बसे इस छोटे से कस्बे में कुछ होटल्स और रोज़मर्रा की ज़रूरतों के लिए छोटा सा बाज़ार भी है...<strong>हालांकि काज़ा के बारे में कहा जाता है कि यहां ऑक्सीजन की कमी की वजह से कई बार आपको सांस लेने में भी दिक्कत हो सकती है..</strong> लेकिन यहां पहुंचने का रोमांच सारी थकावट को दूर कर देता है... काज़ा से कुछ ऊपर ही है रोहतांग दर्रा, जिसकी समुद्रतल से ऊंचाई तकरीबन 3980 मीटर है.. और रोहतांग जाने वाले काज़ा से होकर ही गुज़रते हैं... <br /><br /><a href="http://4.bp.blogspot.com/_kcUDTs00Zpc/S4iy-eikbXI/AAAAAAAAAgE/EOBJLoSJhtw/s1600-h/Pet2.jpg"><img style="float:right; margin:0 0 10px 10px;cursor:pointer; cursor:hand;width: 400px; height: 300px;" src="http://4.bp.blogspot.com/_kcUDTs00Zpc/S4iy-eikbXI/AAAAAAAAAgE/EOBJLoSJhtw/s400/Pet2.jpg" border="0" alt=""id="BLOGGER_PHOTO_ID_5442796936096935282" /></a>मनाली से भी काज़ा के लिए आपको टैक्सियां मिल सकती हैं... लेकिन सर्दियों में जब बर्फ ज्यादा पड़ती है, तो काज़ा जाने वाले रास्ते भी कुछ वक्त के लिए बंद हो जाते हैं... कई बार तो बिजली की भी दिक्कत आने लगती है... काज़ा से करीब बीस किलोमीटर दूर है किब्बर गांव... काज़ा से किब्बर जाने वाले रास्ते में ही पड़ता है दुनिया का सबसे ऊंचा पेट्रोल पंप... छोटे से गांव किब्बर कि आबोहवा इतनी खुशनुमा है कि मन करता है, बस यहीं के होकर रह जाओ... <strong>यहां की चोटियों पर खड़े होकर लगता है कि आसमान अब और दूर नहीं है और अगर एक पत्थर भी तबियत से उछाला जाए, तो यकीनन आसमां में सुराख हो सकता है...</strong> काज़ा के पास ही इंडियन ऑयल ने बनाया है अनूठा रिकॉर्ड.. दुनिया का सबसे ऊंचा पेट्रोल पंप कायम करने का... <br /><br />इस पेट्रोल पंप पर वो सभी सहूलियतें हैं जो किसी दूसरे पेट्रोल पंप पर होती हैं... पेट्रोल-डीज़ल के साथ ही, फर्स्ट एड तक... पहाड़ी पर मौजूद पेट्रोल पंप छोटा ज़रूर है, लेकिन आपके सफ़र में कभी रुकावट नहीं आने देता... पेट्रोल पंप के आस-पास सफेद चांदी जैसी बर्फ की चोटियां आपको बरबस ही अपने आगोश में ले लेती है... <strong>तिब्बत की सीमा से सटे इस पेट्रोल पंप पर जो भी आता है, वो खुद पर फख्र ज़रूर करता है... इस पेट्रोल पंप के कुछ लम्हों को अपने कैमरे में ज़रूर कैद करता है...</strong> खास बात ये है कि पेट्रोल पंप के बड़े से बोर्ड के नीचे सर्व शिक्षा अभियान का नारा भी लिखा है.. <strong>जो माता-पिता शिक्षित होंगे, संतान उसी की सुखी होगी... </strong>यानि इंडियन ऑयल का ये पंप, न सिर्फ पहाड़ की मुश्किल राहों को आसान बना रहा है, बल्कि सरकार के नेक काम में भी इसने भागीदारी निभाई है... वाकई लाजवाब है भारत का आखिरी और दुनिया का सबसे ऊंचा पेट्रोल पंप...<br />आखिर में काज़ा से जुड़ी एक और दिलचस्प बात.. जब मैंने ये पोस्ट पब्लिश की, उसके बाद मेरे पास आदर्श का फोन आया, आदर्श का कहना था, कि <strong>काज़ा वैसे तो एक टूरिस्ट प्लेस है ही, लेकिन जब किसी अधिकारी या कर्मचारी को सज़ा देना होती है, तो सरकार उसका ट्रांसफर काज़ा में कर देती है... </strong>है न दिलचस्प बात..अबयज़ ख़ानhttp://www.blogger.com/profile/06351699314075950295noreply@blogger.com8tag:blogger.com,1999:blog-4208086182725287078.post-36140364624345068262010-02-08T03:42:00.004+09:002010-02-08T03:52:06.428+09:00जब कोई आपसे रूठ जाए...<a onblur="try {parent.deselectBloggerImageGracefully();} catch(e) {}" href="http://4.bp.blogspot.com/_kcUDTs00Zpc/S28KagrIZmI/AAAAAAAAAfM/oGN6YhJBo5g/s1600-h/Bewafai2.jpg"><img style="float:left; margin:0 10px 10px 0;cursor:pointer; cursor:hand;width: 320px; height: 240px;" src="http://4.bp.blogspot.com/_kcUDTs00Zpc/S28KagrIZmI/AAAAAAAAAfM/oGN6YhJBo5g/s320/Bewafai2.jpg" border="0" alt=""id="BLOGGER_PHOTO_ID_5435574725823194722" /></a><span style="font-weight:bold;">जब आपका कोई आपसे रूठ जाए तो आप क्या करते हैं... </span>उसे मनाने की कोशिश करते हैं न..? लेकिन फिर भी कोई आपसे रूठा ही रहे तो आप क्या करेंगे.. उसे एक बार फिर से मनाने की कोशिश करेंगे... लेकिन अगर वो आपसे मिलना ही न चाहे तब आप क्या करेंगे... क्या कोई किसी से इस कदर भी रूठ सकता है, कि वो फिर उसे मनाने का मौका भी न दे... <span style="font-weight:bold;">क्या कोई गुनाह इतना बड़ा भी हो सकता है, कि उसकी माफी नहीं हो सकती...</span> इक छोटी सी बात क्या तमाम रिश्तों को ख़त्म कर देती है, क्या तमाम जज़्बात ख़त्म हो जाते हैं... क्यों तुम मेरे साथ खुद को भी सज़ा दे रहे हो... अगर कसूर मेरा है, तो सज़ा भी मुझे मिलनी चाहिए.. तुम बेवजह गुनाह में भागीदार क्यों बन रहे हो... तुम भले ही अपने दिल पर पत्थर रखकर उसे समझाने की कोशिश करो... लेकिन मैं ये अच्छी तरह जानता हूं, कि खुश तुम भी नहीं हो...<br /><br />बेशक ख़ताओं की सज़ा दी जाए.. लेकिन एक बार ख़तावार की बात भी तो सुन लेना चाहिए... ये जानते हुए भी कि कुछ गलतफहमियां किसी की ज़िंदगी को ज़र्रा-ज़र्रा भी कर सकती हैं... फिर कुछ नादानियां किसी को उम्र भर की सज़ा कैसे दे सकती हैं... मुमकिन है कोई किसी को भुला देता हो, लेकिन उसकी यादों को मिटाना तो नामुमकिन है...<span style="font-weight:bold;"> तस्वीरें कमरे से हटाई जा सकती हैं... लेकिन जो यादें दिलों में बस गईं उनको कैसे मिटाया जा सकता है... </span>अपनी तस्कीन के लिए हम किसी को भुलाने की कोशिश कर सकते हैं... लेकिन भुला तो नहीं सकते न... बंदूक की गोली के ज़ख्म मुकर्रर वक्त पर भर जाते हैं... लेकिन प्यार के अंजाम में मिला ये घाव तो उम्र भर के लिए तड़पने को मजबूर कर देता है...<br /><br /><a onblur="try {parent.deselectBloggerImageGracefully();} catch(e) {}" href="http://4.bp.blogspot.com/_kcUDTs00Zpc/S28LTT8Nl3I/AAAAAAAAAfU/Wajq8s3pqG8/s1600-h/Alone3.jpg"><img style="float:right; margin:0 0 10px 10px;cursor:pointer; cursor:hand;width: 320px; height: 240px;" src="http://4.bp.blogspot.com/_kcUDTs00Zpc/S28LTT8Nl3I/AAAAAAAAAfU/Wajq8s3pqG8/s320/Alone3.jpg" border="0" alt=""id="BLOGGER_PHOTO_ID_5435575701657720690" /></a>ये कैसे मुमकिन है, कि दो प्यार करने वाले ही फिर एक-दूसरे से हमेशा-हमेशा नफ़रत करने लगें... शिकवा तो ये कि हमने कभी खुद को बदला ही नहीं... मिले भी हर किसी से, लेकिन अफ़सोस के अजनबी ही बने रहे... <span style="font-weight:bold;">प्यार कैसे किसी के लिए सज़ा बन जाता है... बाद नफ़रत के फिर एक दर्द का सिलसिला सा शुरु हो जाता है... </span>प्यार तो हज़ार गुनाहों को माफ करता है, लेकिन फिर यही प्यार कैसे नफ़रत की वजह बन जाता है... कैसे शबनम शोलो में बदल जाती है... कैसे रुखसार पर ढलकने वाले आंसुओं का मतलब बदल जाता है... बेशक प्यार कभी कुछ जानकर नहीं होता... लेकिन एहसास तो हो ही जाता है... ज़रूरी तो नहीं कि प्यार जताने के लिए इज़हार की ज़रूरत ही पड़े... <br /><br />प्यार तो आंखो की जुबां समझता है... जज़्बातों को पढ़ लेता है... कई बार तो लगता है कितनी आसान थी वो ज़िंदगी, जब हमारी सिर्फ खुशी से दोस्ती थी...अब लगता है <span style="font-weight:bold;">कितनी अजीब है ज़िंदगी किसी को प्यार नहीं मिलता, तो किसी को मिलकर भी नहीं मिलता... </span>लेकिन हमें तो कुछ पल की मोहलत भी न मिली...न तो वक्त ने हम पर रहम किया और न ज़माने ने... उनकी नज़रों ने हमें पल भर में ही रुसवा कर दिया... न हम सच्चे प्यार के काबिल रहे और न उन्होंने ही हमें एतबार के काबिल समझा... जिसके लिए रास्ते की तमाम बंदिशों को तोड़ा, एक दिन वही साथ छोड़कर चला जाता है.. बिना कुछ कहे, बिना कुछ बताए, बिना कुछ सुने... इक सज़ा दे जाता है... उम्र भर भुगतने के लिए... <br /><br /><span style="font-weight:bold;">कुछ तबीयत ही मिली थी ऐसी, चैन से जीने की सूरत ना हुई<br />जिसे चाहा उसे अपना ना सके जो मिला उससे मुहब्बत ना हुई</span>अबयज़ ख़ानhttp://www.blogger.com/profile/06351699314075950295noreply@blogger.com11tag:blogger.com,1999:blog-4208086182725287078.post-86265045232833171582010-02-05T03:57:00.005+09:002010-02-05T04:10:53.792+09:00मेरी जुगाड़ यात्रा...<a onblur="try {parent.deselectBloggerImageGracefully();} catch(e) {}" href="http://3.bp.blogspot.com/_kcUDTs00Zpc/S2saL_2mXzI/AAAAAAAAAe8/eLwhqmtLzrw/s1600-h/jugar2.jpg"><img style="float:left; margin:0 10px 10px 0;cursor:pointer; cursor:hand;width: 320px; height: 203px;" src="http://3.bp.blogspot.com/_kcUDTs00Zpc/S2saL_2mXzI/AAAAAAAAAe8/eLwhqmtLzrw/s320/jugar2.jpg" border="0" alt=""id="BLOGGER_PHOTO_ID_5434466168773959474" /></a><span style="font-weight:bold;">जुगाड़..</span> नाम सुनकर आपको कुछ अटपटा ज़रूर लगेगा.. लेकिन जनाब चौंकिए मत.. इस जुगाड़ पर तो आपकी और हमारी पूरी ज़िंदगी चल रही है.. ताज़ा-ताज़ा जुगाड़ आजकल झारखंड में चल रहा है.. क्या जुगाड़ लगाया, बीजेपी ने.. उन्हीं सोरेन साहब को पटा लिया, जिन्हें वो पानी पी-पीकर कोसती थी... लेकिन ये तो कुछ भी नहीं है.. <span style="font-weight:bold;">जुगाड़ तो 1999 में हुआ था.. </span>जब अटल जी एनडीए के 13 पहियों के रथ पर सवार होकर आए थे... बाद में उसमें कितने और जुड़े थे, अब तो ठीक से याद भी नहीं... लेकिन जुगाड़ का वो फार्मूला पूरे पांच साल चला था। लेकिन बात अब असली जुगाड़ की... असल में मेरा मकसद आपको जुगाड़ की यात्रा कराना था.. <br /><br />जनवरी के पहले हफ्ते की बात है.. मेरे चाचा और चाची हज से लौटकर आए, लिहाज़ा उनसे मिलने जाना भी ज़रूरी था... दिल्ली से खतौली तक का सफ़र तो बस से पूरा हो गया.. लेकिन खतौली से आगे उनके गांव फुलत तक जाने के लिए न तो बस थी, और न ही कोई ट्रेन... गांव तक जाने के लिए बस एक ही साधन था... <span style="font-weight:bold;">जुगाड़.. क्या कमाल की गाड़ी है.. रतन टाटा देख लें तो शर्मा जाएं... </span>उनकी लाख टके की नैनो तो जुगाड़ के आगे पानी भरती नज़र आए.. <span style="font-weight:bold;">नैनो में कहां चार लोग ही बैठ सकते हैं... ज़रा वज़न ज्यादा हुआ, तो क्या भरोसा नैनो चलने से मना कर दे... </span>लेकिन अपना जुगाड़ मस्त है... एक ही खेप में इंसान और जानवर एक साथ उसपर सवारी करते हैं... फिर भी जगह बाकी है, तो कुछ बोझा भी लाद लो... लेकिन अपना जुगाड़ उफ़ तक नहीं करता... <br /><br /><a onblur="try {parent.deselectBloggerImageGracefully();} catch(e) {}" href="http://3.bp.blogspot.com/_kcUDTs00Zpc/S2sbR1_qp3I/AAAAAAAAAfE/Hf4ektUIwNU/s1600-h/jugar4.jpg"><img style="float:right; margin:0 0 10px 10px;cursor:pointer; cursor:hand;width: 320px; height: 214px;" src="http://3.bp.blogspot.com/_kcUDTs00Zpc/S2sbR1_qp3I/AAAAAAAAAfE/Hf4ektUIwNU/s320/jugar4.jpg" border="0" alt=""id="BLOGGER_PHOTO_ID_5434467368718477170" /></a>सड़क चाहें कैसी भी हो, ऊबड़-खाबड़ हो... पथरीली हो या रपटीली हो... जुगाड़ जब चलता है तो मस्त चलता है... उड़नखटोले जैसी दिखने वाली <span style="font-weight:bold;">इस गाड़ी की डिज़ाइनिंग भी ऐसी लाजवाब कि अच्छे-अच्छे इंजीनियर भी चकरा जाएं... </span>दुनिया में चार पहियों की इससे सस्ती गाड़ी तो शायद अबतक नहीं बनी होगी... क्या कमाल का जुगाड़ है... सबसे पहले डीज़ल इंजन के पुराने जनसैट का जुगाड़ किया... फिर कहीं से जीप का स्टैयिरंग लिया और उसमें ट्रैक्टर का गियर बॉक्स लगा दिया... एक्सीलेटर, क्लच और ब्रेक भी ट्रैक्टर के पुराने पुर्ज़ों से जुगाड़ लिये... लो जी आधी गाड़ी तो तैयार... लेकिन पहिए अभी बाकी हैं... सो पुरानी जीप और पुराने ट्रैक्टर से ये प्रॉब्लम भी सॉल्व हो गई... <br /><br />इसके बाद कहीं से लकड़ी के कुछ पटले जुगाड़े और उन्हें मैकेनिक के यहां ले जाकर एक जुगाड़ वाली बॉडी बनवा ली.. फिर उसे फिट करा लिया... लो हो गया तैयार जुगाड़... न हींग लगी और न फिटकरी और रंग भी चोखा हो गया... अब चाहें इस पर खेत-खलिहान का बोझा लादो, या दरोगा जी की नाक के नीचे सवारियां भरो.. हाईवे पर दौड़ाओ या खेतों में, <span style="font-weight:bold;">अपना जुगाड़ मस्त है... न रजिस्ट्रेशन का झंझट, न ड्राइविंग लाईसेंस की चिकचिक.. आखिर पूछता कौन है... </span>बच्चे चलाएं या बूढ़े... जुगाड़ चलता जाता है... बिना किसी की परवाह किये... हिचकोले खाता.. हवा से बातें करता.. अपना जुगाड़ दौड़ता जाता है...<br /><br />लेकिन जुगाड़ का भी एक दर्द है, देश की आधी आबादी उसके भरोसे टिकी है.. सैकड़ो गांव तो ऐसे हैं, जहां अगर जुगाड़ न हो, तो शायद वहां के लोग शहर का मुंह भी न देख पाएं... लेकिन फिर भी इस जुगाड़ की कोई कद्र ही नहीं... सब उसे बड़ी हिकारत की नज़र से देखते हैं... जनता के लिए बिजली सड़क पानी का दावा करने वाली सरकारों को तो शायद मालूम भी नहीं होगा, कि मुल्क में करीब आधी आबादी आज भी जुगाड़ पर टिकी है... और बाकी लोग भी देख रहे हैं, कि उनका देश भी जुगाड़ से ही चल रहा है... सरकारें ही जब जुगाड़ पर टिकी हों, तो ज़मीन पर रहने वालों को पूछता ही कौन है... <span style="font-weight:bold;">सब्र कर जुगाड़ एक दिन तेरे भी पूछ होगी, जब अमेरिका चुपके से जुगाड़ का भी पेटेंट करा लेगा और फिर हम इंपोर्टेड जुगाड़ पर सफर करके बड़ा फख्र महसूस करेंगे...</span>अबयज़ ख़ानhttp://www.blogger.com/profile/06351699314075950295noreply@blogger.com14tag:blogger.com,1999:blog-4208086182725287078.post-79992646247666429752010-01-24T14:03:00.010+09:002010-01-24T14:26:15.826+09:00मेला.. जाने कहां गये वो मेले<a href="http://3.bp.blogspot.com/_kcUDTs00Zpc/S1vWizra_aI/AAAAAAAAAec/TzomsahZ32w/s1600-h/Mela2.jpg"><img style="float:left; margin:0 10px 10px 0;cursor:pointer; cursor:hand;width: 320px; height: 240px;" src="http://3.bp.blogspot.com/_kcUDTs00Zpc/S1vWizra_aI/AAAAAAAAAec/TzomsahZ32w/s320/Mela2.jpg" border="0" alt=""id="BLOGGER_PHOTO_ID_5430169669201493410" /></a>बचपन में मुंशी प्रेमचंद की एक कहानी पड़ी थी ईदगाह... उसमें हामिद नाम का एक छोटा सा बच्चा था, जो अपनी दादी के लिए मेले से एक चिमटा लाया था, ताकि उसकी दादी के हाथ जलने न पाएं... उस कहानी को पढ़कर दो आंसू हामिद और उसकी दादी के लिए ज़रूर छलक आते थे... लेकिन न तो अब हामिद है, न उसकी दादी और न ही अब कहीं मेले नज़र आते हैं... हिंदुस्तान की पहचान मेले गांव-देहातों की शान हुआ करते थे, <strong>मेलों में सज धजकर जाना फख्र की बात माना जाता था... </strong>जहां कहीं मेला लगता था, वहां तो समझो ईद हो जाती थी.. बड़ी फुर्सत से जाते थे मेले में... दूर-दूर से नाते-रिश्तेदार भी मेला करने आते थे... <br /><br />मेरे कस्बे में भी साल में कई मर्तबा मेला लगता था... लेकिन सबसे मशहूर मेला मुहर्रम का था.. दूर-दूर से दुकाने आती थीं, जिसमें बच्चों के लिए तमाम तरह के खिलौनों की दुकाने होती थीं, तो कहीं औरतों के लिए बिसातखाने की दुकाने... कहीं-कहीं हर माल वालों की दुकान भी होती थी, जहां पांच रुपये में सुई से लेकर मानों तो हवाई जहाज तक मिल जाता था... तो कहीं हल्वे-पराठे और जलेबियों की दुकाने भी लगती थी... गर्मागर्म जलेबी खाने के बाद अगर आपकी जीभ को कुछ चटपटा खाने की मंशा हो, तो समोसों से लेकर आलू टिक्की और गोल गप्पे तक हाज़िर होते थे... <strong>गोल गप्पे भी दिल्ली की तरह नहीं.. पांच रुपये में तीन</strong>... वहां तो भरपेट खाओ.. जितना मन करे, कचौड़ियों से लेकर पकौड़ियों तक.. लेकिन दाम बस एक से दो रुपये तक... <br /><br /><a href="http://3.bp.blogspot.com/_kcUDTs00Zpc/S1vW4Rp0aNI/AAAAAAAAAek/DLFnof0OC5A/s1600-h/Mela+Muharram.jpg"><img style="float:right; margin:0 0 10px 10px;cursor:pointer; cursor:hand;width: 320px; height: 214px;" src="http://3.bp.blogspot.com/_kcUDTs00Zpc/S1vW4Rp0aNI/AAAAAAAAAek/DLFnof0OC5A/s320/Mela+Muharram.jpg" border="0" alt=""id="BLOGGER_PHOTO_ID_5430170038025087186" /></a>मेले में खिलौनो और खील-बताशों के बीच ही सबीलें भी लगाई जाती थीं, जहां लोगों को शर्बत पिलाया जाता था....अगर अब आप खाने-पीने और दुकानदारी से निपट गये हों, तो चले आईए मेले के दूसरे छोर पर... अहा.. क्या-क्या नज़ारे होते थे... बड़े-बड़े झूले...जिसमें बैठने के बाद रोंगटे खड़े हो जाएं... और कोई पहली बार बैठ गया, तो समझो उसको तो चक्कर आ जाए... झूले में बैठने के बाद लगता था, कि बस सबसे ऊपर तो अब हम ही हैं... मेले में फोटोग्राफर की दुकान पर सबसे ज्यादा मजमा जुटता था...नौजवान लड़के-लड़कियां बड़ी अदा के साथ उसकी दुकान पर फोटो खिंचवाते थे... कोई हाथ में टेलीफोन लेकर फोटो खिंचवाता था, तो कोई मोटरसाईकिल पर सवार होकर अपनी तस्वीर बनवाता था.. चश्मा लगाकर और बन-ठनकर फोटो खिंचवाने वालों की तो पूछिए मत... <br /><br />दूसरी तरफ़ तमाशे वाले.. एक से एक तमाशे... कहीं मदारी बंदर का नाच दिखा रहा है, तो कहीं जादूगर बच्चे का सिर धड़ से काट देता था, और तमाशा देखने वाले दूसरे बच्चों का तो खून सूख जाता था... फिर जादूगर सबको धमकाकर कहता था, कि जो आदमी यहां से बिना पैसे दिये जाएगा.. वो घर तक सही सलामत नहीं पहुंच पाएगा... उसको जादू के करतब से मैं बीमार कर दूंगा... और मासूम बच्चे डर के मारे घर से जो पैसे लेकर आते थे, वो सब उसी को देकर चले जाते थे... इसके बाद बारी आती थी सर्कस की... अजब-गजब करतब करती लड़कियों को देखने के लिए पूरा का पूरा कस्बा जुट जाता था... सर्कस के बाहर शेर का बड़ा सा बोर्ड भी लगा होता था, लेकिन शेर कभी नज़र नहीं आया...<br /> <br /><a href="http://4.bp.blogspot.com/_kcUDTs00Zpc/S1vZFDnmQLI/AAAAAAAAAes/NkS2lUq8BNk/s1600-h/Mela3.bmp"><img style="float:left; margin:0 10px 10px 0;cursor:pointer; cursor:hand;width: 320px; height: 176px;" src="http://4.bp.blogspot.com/_kcUDTs00Zpc/S1vZFDnmQLI/AAAAAAAAAes/NkS2lUq8BNk/s320/Mela3.bmp" border="0" alt=""id="BLOGGER_PHOTO_ID_5430172456619229362" /></a>वहीं पास में ही एक छोटा सा सनीमा वाला <strong>रोज़ाना तीन शो... शोले..शोले..शोले... सुपर डुपर हिट फिल्म... ज़रुर देखिए.. ज़रूर देखिए</strong> की आवाज़ लगाता था... सनीमा क्या था... पूरा जुगाड़ था... पटलों पर बैठकर वीसीआर पर फिल्म देखते थे... सनीमा से फ्री होने के बाद देर रात में एक और शो चलता था... नाम था डांस पार्टी... पता नहीं कहां से उसमें लड़कियां डांस करने आती थीं.. लेकिन उसमें मजमा बहुत जुटता था... देर रात तक डांस पार्टी चलती थी... और बिगड़ैल शहज़ादे उसमें पैसे लुटाकर देर रात घर लौटते थे... <br /><br />सनीमा और सर्कस से निपट गये हों, तो चलिए आपको लेकर चलते हैं अजब अनूठे करतब में... जहां एक आदमी ऐलान करता है, कि वो बारह दिन तक साईकिल पर ही सवार रहेगा और बारहवें दिन समाधि ले लेगा... अजीबो-गरीब तमाशा होता था वो... आदमी बारह दिन तक साईकिल चलाता रहता था... उसी पर बैठकर खाता था... उसी पर नहाता था... गरज ये कि बारह दिन तक सारे काम साईकिल पर ही बैठकर करता था, फिर बारहवें दिन एक बड़ा सा गड्डा खोदा जाता था, जिसमें वो साईकिल समेत चला जाता था... फिर उसकी कब्र बनाई जाती थी, मतलब ये कि ज़िंदा आदमी कब्र में दफ्न.. फिर उसे दो दिन बाद कब्र से निकाला जाता था... और वो उसमें से जिंदा निकलता था... लेकिन इतना सब करने के बाद भी उसे मामूली से पैसे मिलते थे... लेकिन पेट भरने के लिए शायद उतना ही काफी होता था... हां इतना ज़रूर होता था, कि उस वक्त तमाशे और मेलों में भीड़ बहुत जुटती थी.. शायद उस वक्त लोगों को फुर्सत बहुत रही होगी... अब न वो मेले हैं और न फुरसत के वो चार दिन... जाने कहां गये वो मेले...अबयज़ ख़ानhttp://www.blogger.com/profile/06351699314075950295noreply@blogger.com6