अबयज़ ख़ान
लंदन का एल्फ़ी 13 की उम्र में बाप क्या बना, वो तो यही गुनगनाने लगा, साला मैं तो बाप बन गया। दुनिया उसकी उम्र और उसके बाप बनने पर भले ही नाक-भौं सिकोड़े, लेकिन अपने बाप का ये नालायक बेटा तो बड़ा लायक निकला। अरे भई इसे ही कहते हैं अंग्रेज़ों का दिमाग़। 13 की उम्र में ही एल्फ़ी ने अपने बाप को एक पोते के साथ ही लाखों-करोड़ों कमाने का मौका भी दे दिया। भई ये और किसी के बूते की बात तो नहीं थी। अब पिताश्री अपने सपूत के कर्मों पर शर्मिंदा होने के बजाए उसके डीएनए का ही सौदा करने पर तुले हैं। और तो और उसकी कहानी बिक जाए, पिता की कोशिश तो ये भी है। अरे भई एल्फ़ी की बल्ले-बल्ले हो गई, तो उसकी गर्लफ्रेंड चैंटील स्टीडमैन भी कम खुशकिस्मत नहीं है। मां बनने का सुख तो मिला ही, मुफ्त में ही पब्लिसिटी भी मिल गई। लेकिन उससे भी दिलचस्प है एल्फी की कहानी। एल्फ़ी ने बाप बनने का फैसला तब किया, जब उसके दो दोस्तों ने ये खुलासा किया कि उसकी गर्लफ्रेंड के साथ उन लोगों के भी रिश्ते हैं।



मतलब अगर एल्फ़ी शेर है, तो उसकी गर्लफ्रेंड भी सवा सेर से कम नहीं। जो बच्चे बचपन में बर्बी डॉल से खेलते है, अब बचपन की उम्र में सचमुच के बच्चे उनका खिलौना बन गये हैं। जनाब ज़माना फास्ट है, आज के ज़माने के बच्चों को अगर आप बाज़ार से खिलौना लाकर नहीं देंगे, तो वो घर में ही पैदा करना भी सीख चुके हैं। अरे आपने उनसे छुपाने के लिए रखा ही क्या है। टीवी ज्ञान परोस रहा है, तो प्यार के कल्चर ने ऐसा मदहोश कर दिया है कि दुनिया सपनों की तरह रंगीन हो गई है। अगर आपने अपने ज़माने में ऐसी हरकत की होती, तो पिताजी ने इतने जूते मारे होते, कि पूछिए मत। इलाके के लोग उन्हें इतना शर्मिंदा कर देते कि उनकी ज़िंदगी भी मौत से कम नहीं होती। और हो सकता है कि इलाके में हुक्का-पानी भी बंद हो जाता। लेकिन एल्फ़ी के बाप की तो चांदी हो गई। दुनियाभर के मीडिया में लड़का हाईलाइट्स बन चुका है। कोई डॉक्यूमेंटरी बना रहा है, तो कोई एल्फ़ी पर आधे-आधे घंटे के शोज़ निकाल रहा है। लगता है ब्रिटेन में तो शायद हिंदुस्तान से भी कमज़ोर कानून है। यहां पर कोई ऐसी हरकत करता, तो पुलिस भी इतने डंडे मारती कि न चलने लायक छोड़ती और न लेटने लायक। पास-पड़ोस के लोग इतनी लानत भेजते कि मुंह छिपाने लायक भी न बचते। लेकिन लंदन का ये छोकरा तो पूरी दुनिया में हीरो की तरह चल रहा है। अपने बाप का ये नालायक छोरा तो बड़ा ही लायक निकला। एल्फ़ी के पापा तो अब यही कह रहे होंगे कि बेटे तुम तो नालायक होकर भी बड़े लायक निकले....जय हो एल्फ़ी।
अबयज़ ख़ान
मारग्रेट अल्वा ने बोला कि कांग्रेस में टिकट बिकते हैं, तो मारग्रेट जी पर अनुशासन का डंडा डल गया, भैरों सिंह शेखावत ने बोला कि बीजेपी में टिकट बिकते हैं, तो बीजेपी के आला नेताओं ने उन्हें नसीहत दे डाली। लेकिन किसी ने इस बात पर तो गौर ही नहीं किया, कि टिकट तो सच में बिकते हैं। लेकिन आप सोच रहे होंगे कि बात तो बहुत पुरानी है, तो इतने अरसे बाद मुझे इसे ब्लॉग पर डालने की क्यों सूझी। लेकिन जनाब इसके पीछे की वजह भी कम दिलचस्प नहीं है। दफ्तर में मेरी एक दोस्त मुझसे मज़ाक में बोली, कि मुझे तो टिकट चाहिए, और मिल भी आसानी से जाएगा। बस कुछ पैसे खर्च करने होंगे। मुझे लगा कि चुनाव के लिए टिकट की बात कर रही है। मैंने कहा कि किससे खरीदोगी तुम टिकट। तो वो हंसकर कहती है, डीटीसी के बस कंडक्टर से। मैंने कहा अरे तुम तो टिकट बिकने की बात कर रहीं थीं, तो वो फिर कहती है, अरे बस में क्या फ्री में मिलता है। बात मुझे सूट कर गई। दिमाग लड़ाया, तो हर जगह टिकट बिकता हुआ नज़र आया। रेलवे से लेकर सिनेमा हाल तक। सर्कस से लेकर एक्ज़ीबिशन तक। ब्लूलाइन से लेकर डीटीसी बस तक। लोकल ट्रेन से लेकर हवाई जहाज़ तक। मेले से लेकर म्यूज़ियम तक। कितनी जगह टिकट बिकते हुए नज़र आये।

हर कहीं टिकट बिक रहा था। लोग लंबी-लंबी लाइन लगाकर टिकट ख़रीद रहे थे, लेकिन कोई भी शिकायत नहीं कर रहा था। बसों में तो लोग धक्के भी खा रहे थे, और फिर भी टिकट ले रहे थे, लेकिन शिकायत किसी को नहीं थी। उत्तम प्रदेश से लेकर उन्नत प्रदेश तक टिकटों को बेचने का खुला खेल फर्रुखाबादी चल रहा था। उसके बाद भी कोई चूं तक नहीं कर रहा था। हर राज्य में चुनाव के लिए टिकट बिक रहे थे। लेकिन कोई शिकायत नहीं कर रहा था। और तो और टिकट के दाम भी फिक्स थे, दो रुपये से लेकर जितना आपकी जेब बर्दाश्त कर सकती है, उतने का टिकट आपको मिल सकता है। फिर अल्वा जी और शेखावत साहब को क्या सूझी थी, जो शिकायत कर दी थी। रेलवे स्टेशन पर तो घंटो कतार में लगने के बाद भी लोग टिकट बिकने की शिकायत नहीं करते। ये अलग बात है कि लाइन में पॉकेट कट जाए, और बाद में घर जाने की भी हालत न रहे। मेट्रो के मल्टीप्लेक्स छोड़ दें, तो आज भी कई सिनेमाहॉल ऐसे हैं, जहां सिनेमा का टिकट न सिर्फ़ बिकता है, बल्कि लोग ब्लैक में भी ऊंचे दाम पर ख़रीदते हैं। फिर भी कोई टिकट बिकने की शिकायत नहीं करता। और तो और लॉटरी का टिकट ख़रीदने के बाद भी बहुत से लोगों को कुछ हाथ नहीं आता। फिर भी कोई शिकायत नहीं करता। अब अगर चुनाव में किसी नेताजी ने जनता की गाड़ी कमाई से टिकट खरीद लिया, तो इसमें जुर्म ही क्या है। अरे भई जीतकर वो जनता की मदद तो ही करेंगे। फिर काहे का चिल्लाना कि टिकट बिकते हैं। और फिर वैसे भी जीतने के बाद तो सारे पैसे वसूल ही हो जाते हैं। तो अगर आपको भी कभी टिकट ख़रीदना हो, तो पांच रुपये का टिकट लीजिए और हो जाईये बस में सवार। फिर न कहिए कि भईया टिकट बिक रहा है।
अबयज़ ख़ान
इश्क का रोग कब किसे लग जाए, कौन जानता है। नज़र से नज़र मिली नहीं, कि प्यार परवान चढ़ जाता है। लेकिन प्यार का इज़हार करने में सालों लग जाते हैं, और वो इसलिए क्योकि आपको पता ही नहीं चलता, कि आपको प्यार हो गया है। लेकिन जनाब हम आपको बताते हैं कि अगर आपको प्यार हो जाए, तो क्या है प्यार की पहचान।
फिज़ा महकी-महकी सी है। मौसम भीगा-भीगा सा है। बसंत के इस मौसम में प्यार के परिंदे चहकने लगे हैं। लेकिन प्यार किसी कैमिकल लोचे से नहीं होता, ये दिल कब किस पर मचल जाए, कौन जानता है। इश्क की पगडंडियों पर चलते-चलते कब आप प्यार के आगोश में समां जातें हैं, आपको खुद भी पता नहीं चलता। ये प्यार हर किसी से यूं ही नहीं हो जाता। 
लेकिन इस कम्बख्त इश्क की पहचान भी बड़ी अजीब होती, अगर आपको किसी से प्यार हो जाए, तो आप कुछ-कुछ बहक से जाते हैं। दिल में कुछ-कुछ होने लगता है। रातें करवटें बदल-बदल कर कटती हैं, जब ज़िंदगी आपको बहुत खूबसूरत लगने लगती है। उर्दू समझ में न आने के बावजूद आपको गज़ल बहुत अच्छी लगती हो। आपका हर रास्ता महबूब की गली से गुज़रता हो। दिन में बार-बार उसका फोन मिलाकर काट देते हों, तो समझिये आपको प्यार हो गया है। आप भी इश्क के उस चक्कर में पड़ गये हैं, जिसमें अच्छे-अच्छे घनचक्कर हो जाते हैं।
अरे जनाब इतना ही काफ़ी नहीं है, अभी तो इश्क की पहचान बहुत सी और भी हैं, जो आपको दीवाना साबित कर सकती है। जब कभी महबूब का नाम सामने आये, और आपका चेहरा गुलाबी पड़ जाए, तो समझिये आपको इश्किया बुखार हो गया है। उसकी हर पसंद आपकी पसंद बन जाए, उसके भगवान आपके खुदा बन जाएं, तो समझिये ये दिल आवारा हो चुका है। जब उसकी गली से गुज़रने पर आपका दिल धड़कने लगे, उससे सच बोलने पर आपकी ज़ुबान लरज़ने लगे, तो समझ लीजिए जनाब कि आपको प्रेम रोग हो गया है। तभी तो दुनिया कहती है... हां यही प्यार है।



अभी तो प्यार की इब्तेदा की थी, अभी से रास्ते में दुश्वारियां आ गईं। ये दर्द प्यार के उन प्रेमी जोड़ों का है, जिनका प्यार शुरु होने से पहले ही पल भर में बिखर जाता है। लेकिन प्यार करने वालों को शायद ये नहीं मालूम कि प्यार के तो अक्षर ही अधूरे होते हैं। शायद इसीलिए ढाई आखर प्रेम का दो कदम भी नहीं चल पाता। प्यार के बारे में किस्से आपने अक्सर सुने होंगे। प्यार को लेकर लोग खूब कसमें-वादे भी खाते हैं। लेकिन ऐसा क्यों होता है कि बहुत से लोगों का प्यार परवान चढ़ते ही टूट जाता है, तो कुछ लोग प्यार के सफ़र में चलते तो साथ-साथ हैं, लेकिन कुछ दूर चलने के बाद ही उनके रास्ते अलग-अलग हो जाते हैं। लेकिन हम आपको जो वजह बताने जा रहे हैं, वो अपने आप में काफ़ी दिलचस्प है।
दरअसल प्यार से जुड़े जितने भी अल्फ़ाज़ हैं, वो अपने आप में ही पूरे नहीं होते, तो भला प्यार कैसे परवान चढ़े। चाहें प्यार, इश्क, मौहब्बत और प्रेम को ही ले लीजिए, ये सभी लफ्ज़ अपने आप में ही अधूरे हैं, ऐसे में ढाई आखर का प्रेम भला ज़िंदगी भर चले भी तो कैसे। जबकि प्यार के अपोज़िट जितने भी अल्फ़ाज़ हैं, वो न सिर्फ़ अपने आप में पूरे हैं, बल्कि शान से सीना ताने भी खड़े रहते हैं। अब चाहें बेवफ़ाई हो, छल या कपट हो। फ़रेब हो, या फिर धोखा। सब इश्क के रास्ते में रोड़ा बने रहते हैं।  ज्यादा पुरानी बात नहीं है, देशभर की चर्चित फ़िज़ा और चांद मौहम्मद की कहानी को लोग अभी भूले भी नहीं हैं। मौहब्बत के परवान चढ़ने से पहले ही दोनों की कहानी चार दिन की चांदनी की तरह बिखर गई। एक-दूसरे पर मर-मिटने की कसमें खाने वाले दोनों आशिक अब एक-दूसरे को पानी पी-पीकर कोस रहे हैं। अरे भई इसीलिये तो कहते हैं कि ये इश्क नहीं आसां, बस इतना समझ लीजिए, इक आग का दरिया है और डूब कर जाना है।
अबयज़ ख़ान
तेरह साल का बच्चा बाप बन गया, सुनकर हैरत तो हुई, लेकिन अचरज बिल्कुल भी नहीं हुआ। कंप्यूटर गेम खेलने वाला 13 साल का एल्फ़े पेटन एक बच्चे का बाप बन गया। मामला ब्रिटेन का है, तो शायद आप सोचते होंगे कि वो लोग हमसे ज्यादा एडवांस हैं। वहां तो हर काम सुपरफास्ट अंदाज़ में होता है। अंग्रेज़ों में तो ये कोई नई बात नहीं है। लेकिन बच्चा तेरह साल की उमर में बाप बन गया, और लड़की 14 साल की उम्र में बच्चे की मां बन गई। मामला पेचीदा, लेकिन ब्रिटेन से जुड़ा है, तो हम लोग इसे बड़ी बात न समझकर भुला देंगे। लेकिन जनाब बच्चे तो अपने हिंदुस्तान के भी कम नहीं है। अब चाहें आप तहज़ीब की कितनी दुहाई देते फिरें, बच्चे तो अपनी उम्र से ज्यादा बड़े हो गये हैं। टीवी पर आने वाले सीरियल्स देखें, तो बच्चों का अंदाज़-ए-बयां किसी से कम नहीं होता। बच्चों की फ़रमाइशें बदल गई हैं, तो उनके शौक भी बदल गये हैं। लेकिन हम समझना ही नहीं चाहते। कलर्स टीवी पर आने वाला बच्चों का हंसी का कॉमेडी प्रोग्राम जंग नन्हें हंसगुल्लों की अपनी टीआरपी की वजह से तालियां बटोर रहा है। लेकिन छोटे बच्चों के चुटकले अगर हंसने पर मजबूर कर देते हैं, तो एक-बारगी ये भी सोचना पड़ता है कि ये बच्चे ज्यादा समझदार हो गये हैं, या फिर इनको आज के युग ने ज़रुरत से ज्यादा एडवांस बना दिया है।


पुणे की रहने वाली सलोनी की उम्र तो महज छह साल है, लेकिन उसने जो चुटकुला सुनाया, उसने न सिर्फ़ हंसने पर मजबूर कर दिया, बल्कि बच्चों की उम्र भी बता दी। ज़रा आप भी सुनिए सलोनी का चुटकुला। सलोनी कहती है कि उसकी मम्मी उसे बिल्कुल भी प्यार नहीं करतीं, जबकि उसके पापा उसे बहुत प्यार करते हैं। मम्मी उसे बाहर खेलने भी नहीं जाने देतीं। जबकि पापा की छुट्टी होती है, तो वो उसे चॉकलेट के लिए पैसे देते हैं, और कहते हैं कि जाओ बेटा खेलने जाओ, और हां एक घंटे से पहले वापस मत आना। अब इसको सुनकर हंसी तो आई, लेकिन फिर माथा भी ठनका, कि अरे बाबा इन बच्चों को आखिर कैसे पता कि उनके पापा उन्हें खेलने क्यों भेज देते हैं। ये वो बातें हैं, जो हमारी पीढ़ी के लोग अपने बचपन में सोच भी नहीं सकते थे। और अगर हमारे मुंह से बचपन में कोई ये बात सुन भी लेता, तो इतनी पिटाई लगती कि डर के मारे रूह कांप जाती। लेकिन सलोनी जैसे और भी बच्चे हैं, जो ऐसी-ऐसी बातें सुना जाते हैं कि हम अपनी फैमली के सामने आज भी सुन लें, तो झेंप भी न मिटाई जाए। लेकिन जनाब नई पीढ़ी के बच्चे बहुत बड़े हो गये हैं। छोटी उम्र के बच्चे प्यार की वो एबीसीडी भी सीख गये हैं, जिसके बारे में सोचते ही हम शर्म से पानी-पानी हो जाते थे। आज के बच्चे तो न सिर्फ़ गर्लफ्रेंड और ब्वायफ्रेंड बनाते हैं, बल्कि उनके मां-बाप भी इसे मंज़ूरी देते हैं। छोटे परदे के सबसे बिकाऊ सीरियल बालिका वधु को कौन नहीं जानता। नन्हीं अविका यानि आनंदी का एक छोटा सा दूल्हा है, जिसकी ज़ालिम दादीसास उसे सताती रहती हैं। लेकिन जब वही बच्ची टीवी चैनलों पर लाइव देती है, तो साफ़ कहती है कि वो तो जगदीशिया से कतई शादी नहीं करेगी। बल्कि उसका दूल्हा तो उसकी पसंद का ही होगा। नन्हें-नन्हें बच्चे टीवी पर ही एक-दूसरे को प्रपोज़ कर जाते हैं। अब आप इसके लिए टीवी और नेट को लाख दोष देते फिरें, लेकिन जनाब आपके बच्चे आपसे भी ज्यादा बड़े हो गये हैं।