अबयज़ ख़ान
मां मेरी सूरत तेरी सूरत से अच्छी तो नहीं, लेकिन मुझे तेरे आंचल की तलाश है। तेरी गोद में सो जाने को जी चाहता है। लेकिन मां, मैं तो इतनी बदनसीब निकली, कि जन्म के बाद ही मुझे दर-दर की ठोंकरे खाने के लिए छोड़ दिया गया। आखिर मेरा क्या कसूर था। क्यों मैं अनाथों की तरह दूसरों के रहमो-करम पर जीती हूं... मां सुन लो मेरी भी फरियाद 

मैंने ज़मीन पर कदम रखा था, तो मां के नर्म आंचल का इंतज़ार किया था। मां की गोद में खेलने के सपने देखे थे। पापा की उंगली पकड़कर घर से निकलने का ख्वाब संजोया था। भाई के साथ घर के पिछवाड़े मिट्टी की गुड़िया बनाने का सपना देखा था। लेकिन इस दुनिया में तो आने के बाद सारे सपने ही चूर-चूर हो गये। मेरी किलकारी पर मुझे थपकी देना तो दूर, मां ने तो मेरे आने के बाद मुझे आंखे खोलने का मौका भी न दिया। घर के नर्म बिस्तर के बजाए मेरी आंख खुली, तो उस जगह जहां सिर्फ़ और सिर्फ़ अंधियारा था। मेरे जन्म पर खुश होने वाली मेरी मां मेरे जन्म पर समाज से नज़रें चुरा रही थी। मैं तमाशा बन चुकी थी, और सारे तमाशाई थे।



आखिर क्यों मां... तुम ऐसा क्यों करती हो। लोग अपनी बिटिया को लेकर कितने सपने संजोते हैं, तमाम अरमान मन में पाले रहते हैं। लेकिन मेरे साथ ऐसा ज़ुल्म क्यों। आखिर मुझे अधिकार क्यों नहीं है, तुम्हारे साथ जीने का। आखिर मुझे अपने नर्म हाथों की थपकी देकर सुलाने से तुम्हें परहेज़ क्यों है? आखिर कौन है वो मेरा बदनसीब बाप... जो मेरे आने से इतना शर्मिंदा है कि तुम्हें भी दर-दर की ठोकरें खाने को मजबूर कर गया है। आखिर क्यों नहीं है मुझे भी जीने का हक? मेरा तो कोई कसूर भी नहीं था, मैं तो आपके प्यार की निशानी थी। लेकिन मुझे तो लावारिसों की तरह छोड़ दिया गया। जहां मेरे लिए सांस लोना भी मुश्किल था। और जो लोग मेरे लिए हमदर्दी रखते थे, वो भी मेरे बारे में तमाम तरह की बातें कर रहे थे। आखिर क्यों ये समाज इतना बेदर्द है, जो मेरे जन्म पर नेग देने के बजाए आंसू बहाता है। आखिर मां, मैं भी तुम्हारा ही एक रूप हूं.. आज तुम जिस मुकाम पर खड़ी हो, कल वहीं मेरी भी मंजिल होगी। लेकिन मैं इतना तो मानती हूं... कि एक मां अपनी बेटी का गला नहीं घोट सकती। क्योंकि मां तो भगवान का दूसरा रूप होती है।
सच में मां का कद इतना बड़ा है कि दुनिया में हर कोई उसके सामने बौना नज़र आता है। मां के पैरों तले जन्नत है, ये तो सभी जानते हैं, लेकिन मां का दर्जा तो जन्नत से भी ऊपर है। हज़ार ख़ताओं को माफ़ करने का जज़्बा अगर किसी में है, तो वो मां ही है। शायद इसीलिये कहते हैं कि सबसे प्यारी मां... और मुझे भी तलाश है एक ऐसी ही मां की.. मां क्या तुम सुनोगी मेरी पुकार..
 
एक अभागी बेटी...
2 Responses
  1. शब्द नहीं मिल रहे टिप्पणी करने के लिए ...................


  2. bahut hi achhi rachna...