घर की मुंढेरें सिसक रही हैं, दरवाजे खुद को तन्हा महसूस कर रहे हैं, चौखटें किसी पहाड़ की तरह उदास हैं.. गांव की पगडंडियों को आज भी किसी अपने का इंतज़ार हैं, खेतों में अलसायी हुई पत्तियां किसी के कदमों को छू लेना चाहती हैं.. मगर शायद अब वो कभी नहीं आयेगा, जिसके आने भर से बुजुर्गों के चेहरों पर लाली आ जाती थी, गांव के बच्चे खिलखिलाने लगते थे, चौपाल पर रौनक लौट आती थी.. मगर अब नहीं आयेगा यादव जी का छोरा, अब नहीं आयेगा जगदीश का लड़का, अब नहीं आयेगा छुटकी का भाई, अब नहीं आयेगा बूढ़ी मां का हमेशा बच्चा रहने वाला जवान.. अब कभी नहीं आयेगा उसका सुहाग, जिसके इंतज़ार में उसकी कितनी शामें सूनी गुजर गईं..
अब कैसे जीतराम की विधवा अपनी छोटी सी उस बच्ची को संभालेगी जिसने अपने पिता का चेहरा तक नहीं देखा.. भगीरथी जी के 3 साल के उस बच्चे का क्या कुसूर था जिसने अपने पिता को मुखाग्नि दी. उनके पिता के आंसुओं को कैसे पोछेंगे.. उन गांव वालों को हम क्या जवाब देंगे जो अपने लाल के लिये आज फफक-फफक कर रो रहे हैं. कोटा के हेमराज मीणा की पत्नी को कौन समझाएगा जिसने अपने पति की शहादत की खबर मिलने के बाद अबतक अपनी मांग का सिन्दूर नहीं पोछा.. राजस्थान के रोहिताश की पत्नी सरस्वती को क्या जवाब देंगे, जिसने 2 महीने पहले ही एक बच्चे को जन्म दिया है, जिसको आखिरी बार देखने के बाद ही रोहिताश वापस ड्यूटी पर लौटे थे.. नारायण लाल के गांव विनोल में सन्नाटा है, हर आंख में आंसू है और दिल में गुस्सा है..उनके पिता को इस बार होली पर बेटे के घर आने का बेसब्री से इंतज़ार था, मगर आयी तो मनहूस खबर आई.
आगरा के करहई में कौशल कुमार की शहादत की खबर पहुंची तो पूरा गांव आंसुओं से ज़ार ज़ार हो उठा, 4 दिन पहले बेटे से मिलकर लौटे कौशल कुमार के लिये ये आखिरी मुलाकात साबित हुई.. उत्तरकाशी के रहने वाले शहीद मोहनलाल की बेटी गंगा कह रही है "मुझे तो बस पापा चाहिये" बताईये कौन लाकर देगा उसके पापा को ? श्याम बाबू का गांव गम और गुस्से में डूबा हुआ है, पत्नी को होशो हवास नहीं है, बूढ़ी मां के हाथ कांप रहे हैं.. श्याम बाबू का 4 साल का बेटा और 6 महीने की बच्ची है, मगर बच्ची की किलकारियों से गूंजने वाला घर अब चीत्कारों से गूंज रहा है..
वाराणसी, उन्नाव, मैनपुरी, गोरखपुर, चंदौली, महाजराजगंज, शामली कोई शहर ऐसा नहीं बचा जहां के जवान ने देश के लिये अपनी जान कुर्बान ना की हो.. कन्नौज के प्रदीप की बेटी ने अपने पिता को आखिरी विदाई थी, मगर उसके लबों पर यही था कि उसके "पापा कब आयेंगे".. है किसी के पास उसका जवाब ? चंदौली के अवधेश यादव को जब उनके 2 साल के बेटे ने आखिरी विदाई दी तो हर किसी का कलेजा मुंह को आ गया, उस नन्हें से बच्चे को शायद ये एहसास भी नहीं था कि कल जिसकी उंगली पकड़कर उसे जिंदगी के सबक सीखना थे, वो साया अब कभी उसके साथ नहीं होगा.. शामली के अमित 22 साल की उम्र में ही देश के लिये अपनी जान कुर्बान कर गये, जबकि शामली के ही प्रदीप छोटे छोटे बच्चों को छोड़कर हमेशा हमेशा के लिये इस दुनिया को अलविदा कह गये..
मोगा के शहीद जैमाल, तरनतारन के सुखजिंदर, गुरदासपुर के मनिन्दर और रोपड़ के कुलविंदर के घरवालों को हम क्या जवाब देंगे. उनके घरों में बिलखते बच्चे, उनकी मायें कैसे अब उनके पिता के बगैर उनके लिये सपने बुनेंगी.. कोई आखिरी बार अपने घर लोहिड़ी पर आया था, किसी को अगली बार होली पर आना था, किसी को अपने बच्चे से मिलना था, किसी को जिन्दगी के नये ख्वाब सजाने थे.. सुखजिंदर के घर में शादी के 8 साल बाद खुशियां आयीं थीं, मगर अपने 7 महीने के बच्चे को वो ठीक से देख भी नहीं पाये थे और मुल्क के लिये शहीद हो गये.. कुलविंदर की तो इसी साल शादी होने वाली थी, जिस बेटे के लिये मां-बाप सेहरे का ख्वाब देख रहे थे वो घर पर ताबूत में आया.
असम के शहीद जवान बासुमतारी की बेटी दीदमास्वरी को क्या जवाब देंगे जो मीडिया के कैमरों के सामने बिलख बिलख कर रो रही थी, कौन पोछेगा उस गरीब बाप के आंसू जिसकी जिन्दगी की लाठी बस उसका बेटा था.. बिहार के भोजपुर में जब शहीद मुकेश कुमार को उनके 3 साल के बेटे ने मुखाग्नि दी तो पूरा गांव दहाड़े मार मारकर रो रहा था, बूढ़ी मां को होशो हवास नहीं था और उनकी पत्नी अपनी 4 साल की नन्ही मासूम के इस सवाल का जवाब नहीं दे पा रही थीं कि उसके पापा ताबूत में सो क्यों रहे हैं ?
यूपी से लेकर राजस्थान तक, ओडिशा से केरल तक, कश्मीर से कर्नाटक तक, झारखंड, पंजाब, तमिलनाडु कोई ऐसा सूबा नहीं बचा, जहां के जवानों ने इस मुल्क के लिये शहादत ना दी हो.. उनमें ना कोई हिन्दू था ना कोई मुसलमाँ था वो तो बस हिन्दुस्तानी थे. मगर बदले में हम उन्हें क्या दे रहे हैं, 'नफरत' हम सोशल मीडिया पर ज़हर उगल रहे हैं, हिन्दू-मुसलमान कर रहे हैं. बिना कुछ सोचे समझे इंसानियत का खून कर रहे हैं.. कश्मीर से कन्याकुमारी तक हम खुद ही बंटवारा करने में लगे हैं.. जवानों की शहादत पर मातम मनाने के बजाय ज़हर फैलाकर हम उनकी शहादत का अपमान कर रहे हैं.. कुछ नहीं तो कम से कम हम उन जवानों से ही कुछ सीख लें जो एक साथ रहकर इस मुल्क के लिये शहीद हो गये..
उनके घर भले ही कच्चे थे, मगर उनके दिल सच्चे थे
जय जवान, जय हिंदुस्तान
©अबयज़
अब कैसे जीतराम की विधवा अपनी छोटी सी उस बच्ची को संभालेगी जिसने अपने पिता का चेहरा तक नहीं देखा.. भगीरथी जी के 3 साल के उस बच्चे का क्या कुसूर था जिसने अपने पिता को मुखाग्नि दी. उनके पिता के आंसुओं को कैसे पोछेंगे.. उन गांव वालों को हम क्या जवाब देंगे जो अपने लाल के लिये आज फफक-फफक कर रो रहे हैं. कोटा के हेमराज मीणा की पत्नी को कौन समझाएगा जिसने अपने पति की शहादत की खबर मिलने के बाद अबतक अपनी मांग का सिन्दूर नहीं पोछा.. राजस्थान के रोहिताश की पत्नी सरस्वती को क्या जवाब देंगे, जिसने 2 महीने पहले ही एक बच्चे को जन्म दिया है, जिसको आखिरी बार देखने के बाद ही रोहिताश वापस ड्यूटी पर लौटे थे.. नारायण लाल के गांव विनोल में सन्नाटा है, हर आंख में आंसू है और दिल में गुस्सा है..उनके पिता को इस बार होली पर बेटे के घर आने का बेसब्री से इंतज़ार था, मगर आयी तो मनहूस खबर आई.
आगरा के करहई में कौशल कुमार की शहादत की खबर पहुंची तो पूरा गांव आंसुओं से ज़ार ज़ार हो उठा, 4 दिन पहले बेटे से मिलकर लौटे कौशल कुमार के लिये ये आखिरी मुलाकात साबित हुई.. उत्तरकाशी के रहने वाले शहीद मोहनलाल की बेटी गंगा कह रही है "मुझे तो बस पापा चाहिये" बताईये कौन लाकर देगा उसके पापा को ? श्याम बाबू का गांव गम और गुस्से में डूबा हुआ है, पत्नी को होशो हवास नहीं है, बूढ़ी मां के हाथ कांप रहे हैं.. श्याम बाबू का 4 साल का बेटा और 6 महीने की बच्ची है, मगर बच्ची की किलकारियों से गूंजने वाला घर अब चीत्कारों से गूंज रहा है..
वाराणसी, उन्नाव, मैनपुरी, गोरखपुर, चंदौली, महाजराजगंज, शामली कोई शहर ऐसा नहीं बचा जहां के जवान ने देश के लिये अपनी जान कुर्बान ना की हो.. कन्नौज के प्रदीप की बेटी ने अपने पिता को आखिरी विदाई थी, मगर उसके लबों पर यही था कि उसके "पापा कब आयेंगे".. है किसी के पास उसका जवाब ? चंदौली के अवधेश यादव को जब उनके 2 साल के बेटे ने आखिरी विदाई दी तो हर किसी का कलेजा मुंह को आ गया, उस नन्हें से बच्चे को शायद ये एहसास भी नहीं था कि कल जिसकी उंगली पकड़कर उसे जिंदगी के सबक सीखना थे, वो साया अब कभी उसके साथ नहीं होगा.. शामली के अमित 22 साल की उम्र में ही देश के लिये अपनी जान कुर्बान कर गये, जबकि शामली के ही प्रदीप छोटे छोटे बच्चों को छोड़कर हमेशा हमेशा के लिये इस दुनिया को अलविदा कह गये..
मोगा के शहीद जैमाल, तरनतारन के सुखजिंदर, गुरदासपुर के मनिन्दर और रोपड़ के कुलविंदर के घरवालों को हम क्या जवाब देंगे. उनके घरों में बिलखते बच्चे, उनकी मायें कैसे अब उनके पिता के बगैर उनके लिये सपने बुनेंगी.. कोई आखिरी बार अपने घर लोहिड़ी पर आया था, किसी को अगली बार होली पर आना था, किसी को अपने बच्चे से मिलना था, किसी को जिन्दगी के नये ख्वाब सजाने थे.. सुखजिंदर के घर में शादी के 8 साल बाद खुशियां आयीं थीं, मगर अपने 7 महीने के बच्चे को वो ठीक से देख भी नहीं पाये थे और मुल्क के लिये शहीद हो गये.. कुलविंदर की तो इसी साल शादी होने वाली थी, जिस बेटे के लिये मां-बाप सेहरे का ख्वाब देख रहे थे वो घर पर ताबूत में आया.
असम के शहीद जवान बासुमतारी की बेटी दीदमास्वरी को क्या जवाब देंगे जो मीडिया के कैमरों के सामने बिलख बिलख कर रो रही थी, कौन पोछेगा उस गरीब बाप के आंसू जिसकी जिन्दगी की लाठी बस उसका बेटा था.. बिहार के भोजपुर में जब शहीद मुकेश कुमार को उनके 3 साल के बेटे ने मुखाग्नि दी तो पूरा गांव दहाड़े मार मारकर रो रहा था, बूढ़ी मां को होशो हवास नहीं था और उनकी पत्नी अपनी 4 साल की नन्ही मासूम के इस सवाल का जवाब नहीं दे पा रही थीं कि उसके पापा ताबूत में सो क्यों रहे हैं ?
यूपी से लेकर राजस्थान तक, ओडिशा से केरल तक, कश्मीर से कर्नाटक तक, झारखंड, पंजाब, तमिलनाडु कोई ऐसा सूबा नहीं बचा, जहां के जवानों ने इस मुल्क के लिये शहादत ना दी हो.. उनमें ना कोई हिन्दू था ना कोई मुसलमाँ था वो तो बस हिन्दुस्तानी थे. मगर बदले में हम उन्हें क्या दे रहे हैं, 'नफरत' हम सोशल मीडिया पर ज़हर उगल रहे हैं, हिन्दू-मुसलमान कर रहे हैं. बिना कुछ सोचे समझे इंसानियत का खून कर रहे हैं.. कश्मीर से कन्याकुमारी तक हम खुद ही बंटवारा करने में लगे हैं.. जवानों की शहादत पर मातम मनाने के बजाय ज़हर फैलाकर हम उनकी शहादत का अपमान कर रहे हैं.. कुछ नहीं तो कम से कम हम उन जवानों से ही कुछ सीख लें जो एक साथ रहकर इस मुल्क के लिये शहीद हो गये..
उनके घर भले ही कच्चे थे, मगर उनके दिल सच्चे थे
जय जवान, जय हिंदुस्तान
©अबयज़
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