अबयज़ ख़ान
कभी बचपन के दोस्त को भी सीने से लगाकर देखो
कभी आईने के सामने खुद को भी सजाकर देखो।
अब तो रातों को देर तलक नींद भी न आयेगी,
तुम कभी अपने दिल से मेरा नाम मिटाकर देखो।।

यूं तो चाहने वाले मिलते हैं सभी को मिलते भी रहेंगे
कभी बचपन के दोस्त को भी सीने से लगाकर देखो।
तमाम उम्र गुज़र गई बस तुम्हारे ही ख्यालों में,
तुम कभी अपने ख्वाबों में मुझको भी बसाकर देखो।।

जाने वाले कभी लौटकर वापस नहीं आते
तुम कभी एक बार तो मुझको पास बुलाकर देखो।
पुराने ज़ख्म तुम्हारे फिर से हरे हो जाएंगे,
कभी ज़ख्मों की पुरवाई से मुलाकात कराकर देखो।।

उम्रभर के साथी कभी अपनो से रूठा नहीं करते
तुम कभी एक बार तो मुझको भी मनाकर देखो।
अपनी गलती का एहसास भी हो जाएगा तुम्हें,
कभी दुखती हुई नब्ज़ को और दुखाकर देखो।।
अबयज़

1 Response
  1. उम्दा......मुझे लगता है कि इस ब्लॉग पर और भी अच्छी चीजें पढ़ने को मिलेगी....तबयत से लिखा है इसलिए तबयत खुश हो गई.....