अबयज़ ख़ान
बहुत अरसे के बाद आज बारिश की पहली बूंद गिरी
भीग गया फिर सारा तन-मन, और
घर से दूर परदेस में मुझे याद आई उसकी
जिसने मेरे साथ तमाम उम्र रहने का वादा किया था
उसके इस वादे को मैंने एक बार फिर आज़माना चाहा
कलम उठाकर बरसात का पहला ख़त लिख डाला
मेरे महबूब, बरसात की पहली बारिश में
अब तुम्हारे बिना मन नहीं लगता।
कम से कम इसी बहाने
एक बार मुलाकात का मौका दे दो
इस मुलाकात के बाद हमारी कोशिश होगी
दोबारा कभी एक-दूसरे से बिछड़ न पाएं
मगर जवाबे ख़त कुछ इस तरह था
मेरे महबूब मुझे डर नहीं बारिश की बूंद का
या मुझे डर नहीं बरसात का
मुझे तो डर सिर्फ़ इस बात का है
कि उसके बाद जो सैलाब आयेगा, उससे
हम दोनों का वुजूद ख़तरे में पड़ जाएगा
और मैं नहीं चाहती
कि बरसात की पहली बारिश के सैलाब में
मेरी वजह से तुम्हें 'देगोश' होना पड़े
क्योंकि तुमसे ज़िंदा मैं हूं
और मुझसे ज़िंदा तुम।।
(देगोश का मतलब मुश्किल में पड़ना)
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