अबयज़ ख़ान
मैं ज़िंदगी भर तुमसे रूठा रहूं तो तुम क्या करोगे
मेरी जां मुझे मनाओगे या मुझ पे हंसा करोगे

खिलौना समझ के लोगों ने की दिल्लगी हमसे
दिल को रखोगे दिल में या तुम भी दिल्लगी करोगे

अनमोल आंसू जो रातों को भिगो गये दुपट्टे को
उन मोतियों का तुम संग दिल एहसास क्या करोगे

गुज़र गया है अपना वक्त और गुज़र भी जाएगा
अफ़सोस तो ये है जाना अब तुम कैसे जिया करोगे

जब जानोगे 'अबयज़' को तो बहुत हैरत होगी तुमको
कभी कोसेगे किस्मत को, कभी ख़ुद पे हंसा करोगे।।
1 Response
  1. किससे रूठ गए हो भाई जिंदगी भर के लिए... ये कविता किसके लिए है... उनका कमेंट तो मंगा लो... अगर मिल जाए तो पोस्ट के साथ भी डाल देना... हम भी तो देखें वो हसीना कौन है... जिसने आपको निकम्मा बना दिया।