अबयज़ ख़ान
इस तस्वीर को देखकर कुछ याद आया आपको... बुलंद भारत की बुलंद तस्वीर में इसका भी बड़ा योगदान है। छोटा परिवार, सुखी परिवार.. लड़का हो या लड़की बच्चे दो ही अच्छे... दो बच्चों के बाद बस करो.. नसबंदी कराओ गर्व से जियो... गाड़ियों से लेकर मौहल्ले भर की दीवारें इन नारों से पटी रहती थीं.. घर के छोटे बच्चे बिना कोई मतलब समझे इन्हें पढ़ते, और फिर घर में जाकर वहीं बात दोहराते। मां-बाप अगर बच्चों को अपने साथ लेकर बाहर जाते, तो उनको अपने पीछे छुपा लेते, कि कहीं बच्चे दीवार पर लिखे परिवार नियोजन के विज्ञापन को न पढ़ लें। 60 बरस हो गए देश को, सरकार के नारे पानी में बह गए और आबादी का विस्फोट जारी रहा। तस्वीर देखनी हो, तो सिर्फ दिल्ली दर्शन कर लीजिए। पैर रखने की जगह नहीं है इस शहर में। आबादी तकरीबन 1 करोड़ 50 लाख से भी ज्यादा। दिल्ली में तो इंसानों के साथ-साथ गाड़ियां भी इतनी हो गई हैं.. कि सड़क पर पैर रखना भी मुश्किल हो गया है। भला हो मेट्रो का.. लेकिन वो बेचारी भी क्या करे.. रोज़ बढ़ती जा रही इस आबादी के बोझ से कैसे निपटे।

अब ज़रा देश के हाल पर भी नज़र डाल लीजिए। 2009 में भारत की आबादी 119 करोड़ 80 लाख दर्ज की गई। 18 करोड़ से ज्यादा आबादी वाला यूपी ब्राज़ील के बराबर पहुंच गया है। आबादी महामानव की तरफ मुंह फैलाए खड़ी है.. खाने वाले ज्यादा हो गए हैं... उपज कम हो रही है, नतीजा महंगाई ने आम इँसान की नाक में नकेल डाल दी है। और शरद पवार को भी बहाना बनाने का एक और मौका मिल गया। लेकिन आबादी पर ब्रेक लगाने के मामले में सभी चुप हैं। सरकार की तमाम कोशिशें फेल हो गईं.. लेकिन पिछले दिनों दो बड़ी मस्त ख़बरें आईं...

पहली ख़बर भोपाल से आई...
-300 से ज्यादा नसबंदी कराने वाले व्यक्ति को परिवार कल्याण कार्यक्रम में सक्रिय योगदान देने के लिए नैनो कार दी जाएगी।
-200 अथवा उससे ज्यादा नसबंदी के आपरेशन कराने वाले व्यक्ति को मोपेड बतौर पुरस्कार में दी जाएगी। खास बात ये है कि भोपाल में इस सुनहरी घोषणा का ऐलान खुद वहां के कलेक्टर निकुंज श्रीवास्तव ने गांधी मेडिकल कालेज में किया था। अब कलेक्टर साहब को कौन बताए कि एक नैनो के लिए कोई भला 300 शिकार कहां से फांसकर लाएगा। वो भी सिर्फ नैनो के लिए.. इससे तो वो 3000 रुपये महीने की आसान किस्त पर वैसे ही नैनो ख़रीद लेगा। और भला 200 नसबंदी के लिए कौन भला मोपेड लेगा। अब सरकार को कौन बताए, कि आजकल मोपेड का नहीं, फर्राटेदार बाइक का ज़माना है। हां अब कोई नैनो के लिए काग़ज़ों में ही 300 शिकार फांस ले, तो अलग बात है।
दूसरी ख़बर भी मध्य प्रदेश से ही आई..
ख़बर सागर ज़िले से थी, जहां के कलेक्टर ने ऐलान किया कि अगर कोई 5 या उससे ज्यादा लोगों को नसबंदी के लिए प्रेरित करे, तो उसे बंदूक का लाइसेंस मिलेगा। जो लोग खुद से भी नसबंदी के लिए आएंगे उनको भी बंदूक के लाइसेंस में प्राथमिकता मिलेगी। इस ख़बर पर मेरे एक दोस्त ने ठहाका लगाया, कि ''भईया.. जब नसबंदी ही करा लेगा तो बंदूक से खाक निशाना लगाएगा और फिर अब शिकार करेगा भी तो किसका...''

नसबंदी वालों को इनाम का सरकारी ऐलान पहली बार नहीं हुआ है, इससे पहले भी नसबंदी कराने वालों को कभी कैश, तो कभी कुछ और छोटे-मोटे इनाम का लालच देकर नसबंदी कराई जाती थी.. इन छोटे-मोटे इनामों का फायदा छोटे-मोटे दलाल टाइप के लोग खूब उठाते थे। इनाम के लालच में कईयों की तो जबरन नसबंदी करा दी जाती थी। कई तो ऐसे लोग भी जाल में फंस जाते थे, जिनकी पहले ही नस बंद हो चुकी थी। नसबंदी के इनाम के लालच में कई बुढ्ढे भी इस जाल में फांस लिये जाते थे। इस चक्कर में कई ऐसे लोग भी शिकार हो जोते थे, जिनकी ज़िंदगी फुटपाथ पर बसर होती थी। अख़बारों में ख़बरें छपतीं, लेकिन कुछ दिन हो-हल्ला मचने के बाद सबकुछ शांत हो जाता था।

समझ नहीं आता कि सरकार आखिर ऐसी बेकार की स्कीमें बनाती क्यों है। क्या देश की आबादी पर लगाम लगाने के लिए यही एक सबसे अच्छा तरीका है। सरकार में हिम्मत है, तो कानून बनाए। 2 बच्चों के बाद कानूनन रोक लगाए। लेकिन ऐसा सरकार भला कैसे कर सकती है। ऐसा हुआ, तो नेताओं को वोट कैसे मिलेंगे। जब संसद में बैठे नेता ही 10-10 बच्चों के बाप होंगे, तो फिर देश की जनता का क्या कसूर। ये तो वही बात हो गई, कि शराब और सिगरेट पीना स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है। उसके बाद भी सरकार उसकी बिक्री पर रोक नहीं लगाती, क्योंकि उससे सरकार के ख़ज़ाने में सबसे ज्यादा पैसा आता है। ऐ हिंदुस्तान तेरे हाल पर रोना आया।