अबयज़ ख़ान
पप्पा.. अब भी पहले जैसे ही थे.. दिन बदल गए थे.. पप्पा नहीं बदले। उम्र की थकान उनके चेहरे से ज़ाहिर हो जाती है। लेकिन बच्चों की ख़ातिर वो आज भी उफ़ तक नहीं करते। मेरे लिए दुनिया में अगर कोई सबसे ज्यादा प्यारा है, तो मेरे पप्पा ही हैं। मां ने मुझे जन्म दिया है.. लेकिन पप्पा ने तो ज़िंदगी का ककहरा सिखाया है। एक हमारे पप्पा ही तो हैं, जिनके कंधो पर हम छोटी सी उम्र से ही ढेरों सपने संजो लेते हैं। होश संभालने के बाद पापा के सामने ही तो सबसे पहले हाथ फैलाया था। और पप्पा ने जेब से एक चवन्नी निकाल कर हाथ पर रख दी थी। उसके बाद तो ये सिलसिला सा चल निकला था। जब भी किसी चीज़ की ज़रूरत होती.. पप्पा के पास पहुंच जाते। दुनिया की तमाम मुश्किलें आ जाएं.. बस फिक्र क्या करना.. आखिर मेरे पप्पा जो हैं। सुबह क्लीनिक जाने वाले पप्पा जब शाम को थके-हारे घर लौटते थे.. तब झट से उनकी गोदी में चढ़ जाते थे। निगाहें कुछ खोजती थीं... शायद पप्पा बाज़ार से कोई चीज़ लाए हैं। कुछ खाने की चीज़... और पप्पा अपने बच्चों के मन की बात समझ जाते थे... घर लौटते वक्त उनके हाथ में कुछ न कुछ ज़रूर होता था। और पप्पा का लाड़ तो पूछिए मत। उनका बस चलता.. तो आसमान से तारे भी तोड़कर ले आते। झुलसती गर्मी हो, कड़कड़ाती सर्दी हो, या फिर बरसात.. कड़ी धूप में मीलों का सफ़र... टपकती हुई किराए के घर की छत...दीवारों में सीलन.. तमाम दुश्वारियां सामने थीं.. लेकिन पप्पा ने कभी हार नहीं मानी। उंगली पकड़कर साथ चलने वाले पप्पा हमारी खातिर कुछ भी करने के लिए तैयार रहते थे।

जैसे-जैसे हम बड़े हो रहे थे.. पप्पा के सामने फ़रमाइशों की झोली बढ़ती जा रही थी। मुश्किलों के उस दौर में भी प्यारे पप्पा ने कभी हार नहीं मानी। हमें पालने और पढ़ाने के लिए अपना सबकुछ कुर्बान कर दिया। अपनी ऐशो-आराम की उम्र उन्होंने हमारा मुस्तकबिल बनाने में गुज़ार दी। वक्त के साथ हम बढ़े होने लगे। कभी पापा की उंगली पकड़कर चलने वाले हम अब उनके कंधे से उचकने की कोशिश करने लगे। हम ये सोचकर कितने खुश होते थे.. कि हम पप्पा से बड़े हो रहे हैं। बार-बार पप्पा के बराबर खड़े होकर उनकी लंबाई से ऊपर जाने की कोशिश करते। लेकिन पप्पा अपने बच्चों के बड़े होने पर हमसे भी ज्यादा खुश होते थे। बेशक उनकी ज़िम्मेदारियां बढ़ रही थीं। फिर स्कूल से निकलकर कॉलेज का ज़माना आया। अब बारी थी.. घर से दूर दूसरे शहर में जाने की। लेकिन पप्पा अब भी खुश थे.. कि उनके बच्चे बड़े हो रहे हैं। लेकिन बच्चे तो अपनी ही दुनिया में मस्त थे। चवन्नी या एक रुपये से अब काम नहीं चलता था। अब पप्पा के सामने जेब खर्च की मोटी फ़रमाइश होती थी। फिर कॉलेज के बाद बारी आई नौकरी की। छोटे शहर से बड़े शहर का रुख हुआ। हम अब भी खुश थे.. बड़े शहर की चकाचौंध और नौकरी में पूरी तरह खो गए थे। पप्पा की गोद में सोने वाले अब पप्पा से मीलों दूर थे। पप्पा अब भी खुश थे.. लेकिन अब उनकी आंखे नम थीं.. क्योंकि बच्चे अब सचमुच बड़े हो गए थे... और उनसे बहुत दूर भी हो गए थे। और मेरे प्यारे पप्पा फिर से अकले हो गए।
अबयज़ ख़ान

ये ख़बर किसी का भी दिल दहला सकती है। हो सकता है इसको पढ़ने के बाद आपके रोएं भी खड़े हो जाएं.. लेकिन ये ख़बर एकदम सच है.. इसी ज़मीन पर एक मुल्क ऐसा भी है, जहां लोग मिनटों में एक हाथी को चट कर गए। सुनकर अटपटा लग रहा है न आपको.. लेकिन ये एकदम सच है.. इंसान ने हैवान का रूप इख्तियार कर एक हाथी को चट कर दिया। एक हुजूम देखते ही देखते विशालकाय हाथी को हज़म कर गया.. और किसी को डकार भी नहीं आई। छह हज़ार किलो का हाथी, डेढ़ घंटे से भी कम वक्त में ख़त्म हो गया.. देखते ही देखते हाथी की बोटी-बोटी कर दी गईं... और मैदान में कुछ बचा, तो सिर्फ़ हाथी का कंकाल..अगर आपको अब भी यकीन नहीं है, तो ये तस्वीरें देख लीजिए... जो इस कहानी को खुद-ब-खुद बयां कर रही हैं। क्योंकि तस्वीरें कभी झूठ नही बोलतीं...


हाथी का गोश्त खाने के शौकीन इन लोगों ने भालों और नुकीले हथियारों से उसका काम तमाम कर दिया। इन लोगों ने तो दरिंदगी की इंतिहा पार कर दी...जंगल में बीमारी से तड़प-तड़प कर हाथी मौत की नींद सो गया.. और उसे बचाने वाले हाथ उसकी मौत पर जश्न मनाने में जुटे थे। मामला जिम्बाब्वे के गोरालिज़ू नेशनल पार्क का है. जहां बीमारी की वजह से एक हाथी की मौत हो गई.. जैसे ही ये ख़बर इलाके में आम हुई.. एक हुजूम हाथी की तरफ़ उमड़ पड़ा... मरे हुए हाथी को देखते ही लोगों ने आव देखा न ताव.. भीड़ में जिसको भी मौका मिला.. वो हाथी का गोश्त खाने के लिए पागल हो गया... भूखी भीड़ मरे हुए हाथी पर टूट पड़ी। दरिंदगी की हद पार करते हुए लोगों ने उसकी बोटी-बोटी कर डाली... भूखे भेड़ियों की तरह लोगों ने उसके जिस्म से गोश्त के पारचे उतारना शुरु कर दिये। जिसको जो मिला, उसने मरे हुए हाथी पर वही आज़माया। तीर-तलवारों से लेकर छोटे-छोटे भालाओं तक, हाथी पर हर तरह के हथियार का इस्तेमाल किया गया... बच्चों से लेकर बड़े तक सब इस जश्न में शामिल थे...


गांव-गांव से लोग हाथी का गोश्त खाने के लिए उमड़ पड़े... हाथी के दोश्त की दावत आम हो गई... लोग बोरे और बर्तनों में भरकर गोश्त अपने घर ले गए.. लेकिन कुछ लोग तो ऐसे थे, जो हाथी के गोश्त को कच्चा ही चबा गए... गोश्त को झपटने के लिए हालत ये थी, कि लोग एक दूसरे से गुत्थमगुत्था भी हो गए... देखते ही देखते मिनटों में ही छह हज़ार किलो का हाथी कंकाल में बदल गया.. हालांकि इस घटना के बाद इंसान और जानवर में फर्क करना ज़रा मुश्किल हो रहा है... लेकिन इंसान अपना काम तमाम कर चुका था.. अब बारी जानवरों की थी... और इंसान के बाद वहां कुत्ते भी अपने लिए बोटी-हड्डी की तलाश में मंडराने लगे.. पापी पेट के लिए इंसान सचमुच हैवान बन गया.. एक मरे हुए हाथी के लिए इससे बुरा क्या होगा, कि उसकी मौत पर मातम मनाने के बजाए, लोग उसके मातम का जश्न मना रहे थे...