अबयज़ ख़ान
पापा आज आप बहुत याद आ रहे हो, बहुत याद आ रही है। आपके बिना जिंदगी बहुत मुश्किल हो गई है। मेरे पापा की एक बहुत खूबसूरत ग़ज़ल आप लोगों के साथ शेयर कर रहा हूं... और कुछ लिखने की हिम्मत नहीं है।
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कुछ इस तरह से हमने गुजारी किसी के साथ
जैसे के अजनबी हो कोई अजनबी के साथ

कैसा मज़ाक था, ये मेरी जिंदगी के साथ
जलता गया वजूद मेरा, रौशनी के साथ

कुछ दोस्ती के साथ हैं, कुछ दुश्मनी के साथ
रिश्ते बड़े अजीब हैं, तेरी गली के साथ

उसने भी हमसे प्यार किया था, हजार बार
दिल की लगी के साथ नहीं, दिल्लगी के साथ

उसके सितम का कोई भी पहलू बुरा नहीं
तरके-ताल्लुकात भी हैं सादगी के साथ

ए दिल बड़ा अजीब है अपना भी मामला
जीना उसी के साथ है, मरना उसी के साथ

'क़ासिम' तेरे ख्याले परेशां का क्या हुआ
क्यों तूने उसको छोड़ दिया बेदिली के साथ