अबयज़ ख़ान
सबसे पहले आप ये तस्वीर देख लीजिए.. और तस्वीर में इस बोर्ड पर जो लिखा है उसे भी गौर से पढ़ लीजिए... जी हां सबसे ऊंचा पेट्रोल पंप.. और सबसे ऊंचा सिर्फ हिंदुस्तान में ही नहीं, बल्कि दुनिया का सबसे ऊंचा पेट्रोल पंप.. या ये भी कह सकते हैं कि भारत-तिब्बत सीमा पर सबसे आखिरी पेट्रोल पंप... अगर यहां आकर आपकी गाड़ी में पेट्रोल ख़त्म हो गया.. तो समझो.. फिर तो आपकी गड्डी चलने से रही... हिंदुस्तान के इस अनूठे पेट्रोल पंप पर भी हम आपको ले चलेंगे.. लेकिन उससे पहले ये जान लेना ज़रूरी है, कि भारत का ये सबसे आखिरी और दुनिया का सबसे ऊंचा पेट्रोल पंप आखिर हैं कहां..? शिमला से करीब 425 किलोमीटर और समुद्रतल से 3800 मीटर ऊंचाई पर एक छोटा सा कस्बा है काज़ा... हिमाचल के लाहौल-स्पीति ज़िले में मौजूद इस कस्बे की खूबसूरती देखते ही बनती है...

वैसे तो पूरे लाहौल-स्पीति को ही बर्फीला रेगिस्तान कहा जाता है... लेकिन काज़ा की पहाड़ियों पर जमी बर्फ और हल्के काले बादल इसको और भी दिलकश बना देते हैं... लाहौल स्पीति की पूर्वी सीमा तिब्बत से मिलती है और तिब्बत की सीमा के पास ही मौजूद है काज़ा.. स्पीति नदी के किनारे पहाड़ी की चोटी पर बसे इस छोटे से कस्बे में कुछ होटल्स और रोज़मर्रा की ज़रूरतों के लिए छोटा सा बाज़ार भी है...हालांकि काज़ा के बारे में कहा जाता है कि यहां ऑक्सीजन की कमी की वजह से कई बार आपको सांस लेने में भी दिक्कत हो सकती है.. लेकिन यहां पहुंचने का रोमांच सारी थकावट को दूर कर देता है... काज़ा से कुछ ऊपर ही है रोहतांग दर्रा, जिसकी समुद्रतल से ऊंचाई तकरीबन 3980 मीटर है.. और रोहतांग जाने वाले काज़ा से होकर ही गुज़रते हैं...

मनाली से भी काज़ा के लिए आपको टैक्सियां मिल सकती हैं... लेकिन सर्दियों में जब बर्फ ज्यादा पड़ती है, तो काज़ा जाने वाले रास्ते भी कुछ वक्त के लिए बंद हो जाते हैं... कई बार तो बिजली की भी दिक्कत आने लगती है... काज़ा से करीब बीस किलोमीटर दूर है किब्बर गांव... काज़ा से किब्बर जाने वाले रास्ते में ही पड़ता है दुनिया का सबसे ऊंचा पेट्रोल पंप... छोटे से गांव किब्बर कि आबोहवा इतनी खुशनुमा है कि मन करता है, बस यहीं के होकर रह जाओ... यहां की चोटियों पर खड़े होकर लगता है कि आसमान अब और दूर नहीं है और अगर एक पत्थर भी तबियत से उछाला जाए, तो यकीनन आसमां में सुराख हो सकता है... काज़ा के पास ही इंडियन ऑयल ने बनाया है अनूठा रिकॉर्ड.. दुनिया का सबसे ऊंचा पेट्रोल पंप कायम करने का...

इस पेट्रोल पंप पर वो सभी सहूलियतें हैं जो किसी दूसरे पेट्रोल पंप पर होती हैं... पेट्रोल-डीज़ल के साथ ही, फर्स्ट एड तक... पहाड़ी पर मौजूद पेट्रोल पंप छोटा ज़रूर है, लेकिन आपके सफ़र में कभी रुकावट नहीं आने देता... पेट्रोल पंप के आस-पास सफेद चांदी जैसी बर्फ की चोटियां आपको बरबस ही अपने आगोश में ले लेती है... तिब्बत की सीमा से सटे इस पेट्रोल पंप पर जो भी आता है, वो खुद पर फख्र ज़रूर करता है... इस पेट्रोल पंप के कुछ लम्हों को अपने कैमरे में ज़रूर कैद करता है... खास बात ये है कि पेट्रोल पंप के बड़े से बोर्ड के नीचे सर्व शिक्षा अभियान का नारा भी लिखा है.. जो माता-पिता शिक्षित होंगे, संतान उसी की सुखी होगी... यानि इंडियन ऑयल का ये पंप, न सिर्फ पहाड़ की मुश्किल राहों को आसान बना रहा है, बल्कि सरकार के नेक काम में भी इसने भागीदारी निभाई है... वाकई लाजवाब है भारत का आखिरी और दुनिया का सबसे ऊंचा पेट्रोल पंप...
आखिर में काज़ा से जुड़ी एक और दिलचस्प बात.. जब मैंने ये पोस्ट पब्लिश की, उसके बाद मेरे पास आदर्श का फोन आया, आदर्श का कहना था, कि काज़ा वैसे तो एक टूरिस्ट प्लेस है ही, लेकिन जब किसी अधिकारी या कर्मचारी को सज़ा देना होती है, तो सरकार उसका ट्रांसफर काज़ा में कर देती है... है न दिलचस्प बात..
अबयज़ ख़ान
जब आपका कोई आपसे रूठ जाए तो आप क्या करते हैं... उसे मनाने की कोशिश करते हैं न..? लेकिन फिर भी कोई आपसे रूठा ही रहे तो आप क्या करेंगे.. उसे एक बार फिर से मनाने की कोशिश करेंगे... लेकिन अगर वो आपसे मिलना ही न चाहे तब आप क्या करेंगे... क्या कोई किसी से इस कदर भी रूठ सकता है, कि वो फिर उसे मनाने का मौका भी न दे... क्या कोई गुनाह इतना बड़ा भी हो सकता है, कि उसकी माफी नहीं हो सकती... इक छोटी सी बात क्या तमाम रिश्तों को ख़त्म कर देती है, क्या तमाम जज़्बात ख़त्म हो जाते हैं... क्यों तुम मेरे साथ खुद को भी सज़ा दे रहे हो... अगर कसूर मेरा है, तो सज़ा भी मुझे मिलनी चाहिए.. तुम बेवजह गुनाह में भागीदार क्यों बन रहे हो... तुम भले ही अपने दिल पर पत्थर रखकर उसे समझाने की कोशिश करो... लेकिन मैं ये अच्छी तरह जानता हूं, कि खुश तुम भी नहीं हो...

बेशक ख़ताओं की सज़ा दी जाए.. लेकिन एक बार ख़तावार की बात भी तो सुन लेना चाहिए... ये जानते हुए भी कि कुछ गलतफहमियां किसी की ज़िंदगी को ज़र्रा-ज़र्रा भी कर सकती हैं... फिर कुछ नादानियां किसी को उम्र भर की सज़ा कैसे दे सकती हैं... मुमकिन है कोई किसी को भुला देता हो, लेकिन उसकी यादों को मिटाना तो नामुमकिन है... तस्वीरें कमरे से हटाई जा सकती हैं... लेकिन जो यादें दिलों में बस गईं उनको कैसे मिटाया जा सकता है... अपनी तस्कीन के लिए हम किसी को भुलाने की कोशिश कर सकते हैं... लेकिन भुला तो नहीं सकते न... बंदूक की गोली के ज़ख्म मुकर्रर वक्त पर भर जाते हैं... लेकिन प्यार के अंजाम में मिला ये घाव तो उम्र भर के लिए तड़पने को मजबूर कर देता है...

ये कैसे मुमकिन है, कि दो प्यार करने वाले ही फिर एक-दूसरे से हमेशा-हमेशा नफ़रत करने लगें... शिकवा तो ये कि हमने कभी खुद को बदला ही नहीं... मिले भी हर किसी से, लेकिन अफ़सोस के अजनबी ही बने रहे... प्यार कैसे किसी के लिए सज़ा बन जाता है... बाद नफ़रत के फिर एक दर्द का सिलसिला सा शुरु हो जाता है... प्यार तो हज़ार गुनाहों को माफ करता है, लेकिन फिर यही प्यार कैसे नफ़रत की वजह बन जाता है... कैसे शबनम शोलो में बदल जाती है... कैसे रुखसार पर ढलकने वाले आंसुओं का मतलब बदल जाता है... बेशक प्यार कभी कुछ जानकर नहीं होता... लेकिन एहसास तो हो ही जाता है... ज़रूरी तो नहीं कि प्यार जताने के लिए इज़हार की ज़रूरत ही पड़े...

प्यार तो आंखो की जुबां समझता है... जज़्बातों को पढ़ लेता है... कई बार तो लगता है कितनी आसान थी वो ज़िंदगी, जब हमारी सिर्फ खुशी से दोस्ती थी...अब लगता है कितनी अजीब है ज़िंदगी किसी को प्यार नहीं मिलता, तो किसी को मिलकर भी नहीं मिलता... लेकिन हमें तो कुछ पल की मोहलत भी न मिली...न तो वक्त ने हम पर रहम किया और न ज़माने ने... उनकी नज़रों ने हमें पल भर में ही रुसवा कर दिया... न हम सच्चे प्यार के काबिल रहे और न उन्होंने ही हमें एतबार के काबिल समझा... जिसके लिए रास्ते की तमाम बंदिशों को तोड़ा, एक दिन वही साथ छोड़कर चला जाता है.. बिना कुछ कहे, बिना कुछ बताए, बिना कुछ सुने... इक सज़ा दे जाता है... उम्र भर भुगतने के लिए...

कुछ तबीयत ही मिली थी ऐसी, चैन से जीने की सूरत ना हुई
जिसे चाहा उसे अपना ना सके जो मिला उससे मुहब्बत ना हुई
अबयज़ ख़ान
जुगाड़.. नाम सुनकर आपको कुछ अटपटा ज़रूर लगेगा.. लेकिन जनाब चौंकिए मत.. इस जुगाड़ पर तो आपकी और हमारी पूरी ज़िंदगी चल रही है.. ताज़ा-ताज़ा जुगाड़ आजकल झारखंड में चल रहा है.. क्या जुगाड़ लगाया, बीजेपी ने.. उन्हीं सोरेन साहब को पटा लिया, जिन्हें वो पानी पी-पीकर कोसती थी... लेकिन ये तो कुछ भी नहीं है.. जुगाड़ तो 1999 में हुआ था.. जब अटल जी एनडीए के 13 पहियों के रथ पर सवार होकर आए थे... बाद में उसमें कितने और जुड़े थे, अब तो ठीक से याद भी नहीं... लेकिन जुगाड़ का वो फार्मूला पूरे पांच साल चला था। लेकिन बात अब असली जुगाड़ की... असल में मेरा मकसद आपको जुगाड़ की यात्रा कराना था..

जनवरी के पहले हफ्ते की बात है.. मेरे चाचा और चाची हज से लौटकर आए, लिहाज़ा उनसे मिलने जाना भी ज़रूरी था... दिल्ली से खतौली तक का सफ़र तो बस से पूरा हो गया.. लेकिन खतौली से आगे उनके गांव फुलत तक जाने के लिए न तो बस थी, और न ही कोई ट्रेन... गांव तक जाने के लिए बस एक ही साधन था... जुगाड़.. क्या कमाल की गाड़ी है.. रतन टाटा देख लें तो शर्मा जाएं... उनकी लाख टके की नैनो तो जुगाड़ के आगे पानी भरती नज़र आए.. नैनो में कहां चार लोग ही बैठ सकते हैं... ज़रा वज़न ज्यादा हुआ, तो क्या भरोसा नैनो चलने से मना कर दे... लेकिन अपना जुगाड़ मस्त है... एक ही खेप में इंसान और जानवर एक साथ उसपर सवारी करते हैं... फिर भी जगह बाकी है, तो कुछ बोझा भी लाद लो... लेकिन अपना जुगाड़ उफ़ तक नहीं करता...

सड़क चाहें कैसी भी हो, ऊबड़-खाबड़ हो... पथरीली हो या रपटीली हो... जुगाड़ जब चलता है तो मस्त चलता है... उड़नखटोले जैसी दिखने वाली इस गाड़ी की डिज़ाइनिंग भी ऐसी लाजवाब कि अच्छे-अच्छे इंजीनियर भी चकरा जाएं... दुनिया में चार पहियों की इससे सस्ती गाड़ी तो शायद अबतक नहीं बनी होगी... क्या कमाल का जुगाड़ है... सबसे पहले डीज़ल इंजन के पुराने जनसैट का जुगाड़ किया... फिर कहीं से जीप का स्टैयिरंग लिया और उसमें ट्रैक्टर का गियर बॉक्स लगा दिया... एक्सीलेटर, क्लच और ब्रेक भी ट्रैक्टर के पुराने पुर्ज़ों से जुगाड़ लिये... लो जी आधी गाड़ी तो तैयार... लेकिन पहिए अभी बाकी हैं... सो पुरानी जीप और पुराने ट्रैक्टर से ये प्रॉब्लम भी सॉल्व हो गई...

इसके बाद कहीं से लकड़ी के कुछ पटले जुगाड़े और उन्हें मैकेनिक के यहां ले जाकर एक जुगाड़ वाली बॉडी बनवा ली.. फिर उसे फिट करा लिया... लो हो गया तैयार जुगाड़... न हींग लगी और न फिटकरी और रंग भी चोखा हो गया... अब चाहें इस पर खेत-खलिहान का बोझा लादो, या दरोगा जी की नाक के नीचे सवारियां भरो.. हाईवे पर दौड़ाओ या खेतों में, अपना जुगाड़ मस्त है... न रजिस्ट्रेशन का झंझट, न ड्राइविंग लाईसेंस की चिकचिक.. आखिर पूछता कौन है... बच्चे चलाएं या बूढ़े... जुगाड़ चलता जाता है... बिना किसी की परवाह किये... हिचकोले खाता.. हवा से बातें करता.. अपना जुगाड़ दौड़ता जाता है...

लेकिन जुगाड़ का भी एक दर्द है, देश की आधी आबादी उसके भरोसे टिकी है.. सैकड़ो गांव तो ऐसे हैं, जहां अगर जुगाड़ न हो, तो शायद वहां के लोग शहर का मुंह भी न देख पाएं... लेकिन फिर भी इस जुगाड़ की कोई कद्र ही नहीं... सब उसे बड़ी हिकारत की नज़र से देखते हैं... जनता के लिए बिजली सड़क पानी का दावा करने वाली सरकारों को तो शायद मालूम भी नहीं होगा, कि मुल्क में करीब आधी आबादी आज भी जुगाड़ पर टिकी है... और बाकी लोग भी देख रहे हैं, कि उनका देश भी जुगाड़ से ही चल रहा है... सरकारें ही जब जुगाड़ पर टिकी हों, तो ज़मीन पर रहने वालों को पूछता ही कौन है... सब्र कर जुगाड़ एक दिन तेरे भी पूछ होगी, जब अमेरिका चुपके से जुगाड़ का भी पेटेंट करा लेगा और फिर हम इंपोर्टेड जुगाड़ पर सफर करके बड़ा फख्र महसूस करेंगे...