ख़िलाफ़त... वैसे तो ये लफ्ज़ कोई नया नहीं लेकिन इसके इस्तेमाल पर लोगों में काफ़ी कन्फ्यूज़न रहता है। ख़िलाफ़त का मतलब होता है किसी को अपना ख़लीफ़ा मान लेना... लेकिन बहुत से लोग इसका मतलब मुख़ालफ़त से निकलते हैं। जिसका मतलब विरोध करना होता है। लेकिन उर्दू के इन दोनों अल्फ़ाज़ का लोग कई बार इतना ग़लत इस्तेमाल करते हैं, कि बात का मतलब ही बदल जाता है। अभी हाल ही में लेफ्ट-यूपीए के टकराव पर सभी बड़े चैनल इस ख़बर पर नज़र बनाये हुए थे। मैं हिंदी के एक बड़े चैनल पर इस ख़बर को देख रहा था, जिसका थोड़ा बहुत झुकाव लेफ्ट की तरफ़ देखा जाता है। न्यूक डील को लेकर लेफ्ट लगातार सरकार के विरोध में था। लेकिन चैनल पर जो एंकर मौजूद थे, उन्होने इस ख़बर को जिस तरह बताया उससे पूरी ख़बर का मतलब ही बदल गया। चैनल पर एंकर ने बताया कि "लेफ्ट न्यूक डील पर सरकार की ख़िलाफ़त करेगा" अब जो कोई ख़िलाफत का मतलब जानता होगा, वो तो यही समझेगा कि लेफ्ट न्यूक डील पर सरकार से सहमत है और वो सरकार का समर्थन करेगा। ये हाल सिर्फ़ अकेले एक चैनल का नहीं था, सभी मुख़ालफ़त को अपने-अपने हिसाब से समझा रहे थे। दरअसल ख़िलाफ़त लफ्ज़ को इस्लाम की देन माना जाता है। सन 632 में इस्लाम के आखिरी पैगंबर हज़रत मौहम्मद साहब के इंतेकाल के बाद उनके उत्तराधिकारी को लेकर काफ़ी संकट पैदा हो गया। आने वाले वक्त में इस तरह के संकट से निपटने के लिए पैगंबर साहब ने पहले ही चार लोगों को भविष्य का खलीफ़ा नियुक्त कर दिया। जिन्होनें बारी-बारी आगे तक इस सिलसिले को चलाया। ऐसा नहीं है कि ख़िलाफ़त को लेकर ये कन्फ्यूज़न सिर्फ़ एक ख़ास चैनल में ही नहीं था, मैं जिस ऑर्गनाइज़ेशन में काम करता हूं वहां भी इस लफ्ज़ को लेकर लोगों में काफ़ी कंफ्यूज़न की हालत रहती है। किसी ख़बर में अगर विरोध की बात आती है, तो कई एंकर और रिपोटर्स को इस मुख़ालफ़त की जगह खिलाफ़त का इस्तेमाल करते हुए देखा गया है।
सर मैंने पहली मुलाकात में ही ये अंदाज़ा लगा लिया था कि आप एक अच्छे लेखक हैं। आज यूं ही बैठा था तो आपका नाम डाल कर आपका ब्लाग ढूंढने लगा। गूगल बाबा की मदद से तुरंत मिला, मैंने कविताएं पढ़ीं, बेहतरीन हैं, आगे भी लगातार लिखते रहें,
शुभकामनाएं
अच्छी और उपयोगी पोस्ट है... भाषा के लिहाज से ये टोका-टोकी जरूरते है इस दौर की...