जुगाड़.. नाम सुनकर आपको कुछ अटपटा ज़रूर लगेगा.. लेकिन जनाब चौंकिए मत.. इस जुगाड़ पर तो आपकी और हमारी पूरी ज़िंदगी चल रही है.. ताज़ा-ताज़ा जुगाड़ आजकल झारखंड में चल रहा है.. क्या जुगाड़ लगाया, बीजेपी ने.. उन्हीं सोरेन साहब को पटा लिया, जिन्हें वो पानी पी-पीकर कोसती थी... लेकिन ये तो कुछ भी नहीं है.. जुगाड़ तो 1999 में हुआ था.. जब अटल जी एनडीए के 13 पहियों के रथ पर सवार होकर आए थे... बाद में उसमें कितने और जुड़े थे, अब तो ठीक से याद भी नहीं... लेकिन जुगाड़ का वो फार्मूला पूरे पांच साल चला था। लेकिन बात अब असली जुगाड़ की... असल में मेरा मकसद आपको जुगाड़ की यात्रा कराना था..
जनवरी के पहले हफ्ते की बात है.. मेरे चाचा और चाची हज से लौटकर आए, लिहाज़ा उनसे मिलने जाना भी ज़रूरी था... दिल्ली से खतौली तक का सफ़र तो बस से पूरा हो गया.. लेकिन खतौली से आगे उनके गांव फुलत तक जाने के लिए न तो बस थी, और न ही कोई ट्रेन... गांव तक जाने के लिए बस एक ही साधन था... जुगाड़.. क्या कमाल की गाड़ी है.. रतन टाटा देख लें तो शर्मा जाएं... उनकी लाख टके की नैनो तो जुगाड़ के आगे पानी भरती नज़र आए.. नैनो में कहां चार लोग ही बैठ सकते हैं... ज़रा वज़न ज्यादा हुआ, तो क्या भरोसा नैनो चलने से मना कर दे... लेकिन अपना जुगाड़ मस्त है... एक ही खेप में इंसान और जानवर एक साथ उसपर सवारी करते हैं... फिर भी जगह बाकी है, तो कुछ बोझा भी लाद लो... लेकिन अपना जुगाड़ उफ़ तक नहीं करता...
सड़क चाहें कैसी भी हो, ऊबड़-खाबड़ हो... पथरीली हो या रपटीली हो... जुगाड़ जब चलता है तो मस्त चलता है... उड़नखटोले जैसी दिखने वाली इस गाड़ी की डिज़ाइनिंग भी ऐसी लाजवाब कि अच्छे-अच्छे इंजीनियर भी चकरा जाएं... दुनिया में चार पहियों की इससे सस्ती गाड़ी तो शायद अबतक नहीं बनी होगी... क्या कमाल का जुगाड़ है... सबसे पहले डीज़ल इंजन के पुराने जनसैट का जुगाड़ किया... फिर कहीं से जीप का स्टैयिरंग लिया और उसमें ट्रैक्टर का गियर बॉक्स लगा दिया... एक्सीलेटर, क्लच और ब्रेक भी ट्रैक्टर के पुराने पुर्ज़ों से जुगाड़ लिये... लो जी आधी गाड़ी तो तैयार... लेकिन पहिए अभी बाकी हैं... सो पुरानी जीप और पुराने ट्रैक्टर से ये प्रॉब्लम भी सॉल्व हो गई...
इसके बाद कहीं से लकड़ी के कुछ पटले जुगाड़े और उन्हें मैकेनिक के यहां ले जाकर एक जुगाड़ वाली बॉडी बनवा ली.. फिर उसे फिट करा लिया... लो हो गया तैयार जुगाड़... न हींग लगी और न फिटकरी और रंग भी चोखा हो गया... अब चाहें इस पर खेत-खलिहान का बोझा लादो, या दरोगा जी की नाक के नीचे सवारियां भरो.. हाईवे पर दौड़ाओ या खेतों में, अपना जुगाड़ मस्त है... न रजिस्ट्रेशन का झंझट, न ड्राइविंग लाईसेंस की चिकचिक.. आखिर पूछता कौन है... बच्चे चलाएं या बूढ़े... जुगाड़ चलता जाता है... बिना किसी की परवाह किये... हिचकोले खाता.. हवा से बातें करता.. अपना जुगाड़ दौड़ता जाता है...
लेकिन जुगाड़ का भी एक दर्द है, देश की आधी आबादी उसके भरोसे टिकी है.. सैकड़ो गांव तो ऐसे हैं, जहां अगर जुगाड़ न हो, तो शायद वहां के लोग शहर का मुंह भी न देख पाएं... लेकिन फिर भी इस जुगाड़ की कोई कद्र ही नहीं... सब उसे बड़ी हिकारत की नज़र से देखते हैं... जनता के लिए बिजली सड़क पानी का दावा करने वाली सरकारों को तो शायद मालूम भी नहीं होगा, कि मुल्क में करीब आधी आबादी आज भी जुगाड़ पर टिकी है... और बाकी लोग भी देख रहे हैं, कि उनका देश भी जुगाड़ से ही चल रहा है... सरकारें ही जब जुगाड़ पर टिकी हों, तो ज़मीन पर रहने वालों को पूछता ही कौन है... सब्र कर जुगाड़ एक दिन तेरे भी पूछ होगी, जब अमेरिका चुपके से जुगाड़ का भी पेटेंट करा लेगा और फिर हम इंपोर्टेड जुगाड़ पर सफर करके बड़ा फख्र महसूस करेंगे...
जनवरी के पहले हफ्ते की बात है.. मेरे चाचा और चाची हज से लौटकर आए, लिहाज़ा उनसे मिलने जाना भी ज़रूरी था... दिल्ली से खतौली तक का सफ़र तो बस से पूरा हो गया.. लेकिन खतौली से आगे उनके गांव फुलत तक जाने के लिए न तो बस थी, और न ही कोई ट्रेन... गांव तक जाने के लिए बस एक ही साधन था... जुगाड़.. क्या कमाल की गाड़ी है.. रतन टाटा देख लें तो शर्मा जाएं... उनकी लाख टके की नैनो तो जुगाड़ के आगे पानी भरती नज़र आए.. नैनो में कहां चार लोग ही बैठ सकते हैं... ज़रा वज़न ज्यादा हुआ, तो क्या भरोसा नैनो चलने से मना कर दे... लेकिन अपना जुगाड़ मस्त है... एक ही खेप में इंसान और जानवर एक साथ उसपर सवारी करते हैं... फिर भी जगह बाकी है, तो कुछ बोझा भी लाद लो... लेकिन अपना जुगाड़ उफ़ तक नहीं करता...
सड़क चाहें कैसी भी हो, ऊबड़-खाबड़ हो... पथरीली हो या रपटीली हो... जुगाड़ जब चलता है तो मस्त चलता है... उड़नखटोले जैसी दिखने वाली इस गाड़ी की डिज़ाइनिंग भी ऐसी लाजवाब कि अच्छे-अच्छे इंजीनियर भी चकरा जाएं... दुनिया में चार पहियों की इससे सस्ती गाड़ी तो शायद अबतक नहीं बनी होगी... क्या कमाल का जुगाड़ है... सबसे पहले डीज़ल इंजन के पुराने जनसैट का जुगाड़ किया... फिर कहीं से जीप का स्टैयिरंग लिया और उसमें ट्रैक्टर का गियर बॉक्स लगा दिया... एक्सीलेटर, क्लच और ब्रेक भी ट्रैक्टर के पुराने पुर्ज़ों से जुगाड़ लिये... लो जी आधी गाड़ी तो तैयार... लेकिन पहिए अभी बाकी हैं... सो पुरानी जीप और पुराने ट्रैक्टर से ये प्रॉब्लम भी सॉल्व हो गई...
इसके बाद कहीं से लकड़ी के कुछ पटले जुगाड़े और उन्हें मैकेनिक के यहां ले जाकर एक जुगाड़ वाली बॉडी बनवा ली.. फिर उसे फिट करा लिया... लो हो गया तैयार जुगाड़... न हींग लगी और न फिटकरी और रंग भी चोखा हो गया... अब चाहें इस पर खेत-खलिहान का बोझा लादो, या दरोगा जी की नाक के नीचे सवारियां भरो.. हाईवे पर दौड़ाओ या खेतों में, अपना जुगाड़ मस्त है... न रजिस्ट्रेशन का झंझट, न ड्राइविंग लाईसेंस की चिकचिक.. आखिर पूछता कौन है... बच्चे चलाएं या बूढ़े... जुगाड़ चलता जाता है... बिना किसी की परवाह किये... हिचकोले खाता.. हवा से बातें करता.. अपना जुगाड़ दौड़ता जाता है...
लेकिन जुगाड़ का भी एक दर्द है, देश की आधी आबादी उसके भरोसे टिकी है.. सैकड़ो गांव तो ऐसे हैं, जहां अगर जुगाड़ न हो, तो शायद वहां के लोग शहर का मुंह भी न देख पाएं... लेकिन फिर भी इस जुगाड़ की कोई कद्र ही नहीं... सब उसे बड़ी हिकारत की नज़र से देखते हैं... जनता के लिए बिजली सड़क पानी का दावा करने वाली सरकारों को तो शायद मालूम भी नहीं होगा, कि मुल्क में करीब आधी आबादी आज भी जुगाड़ पर टिकी है... और बाकी लोग भी देख रहे हैं, कि उनका देश भी जुगाड़ से ही चल रहा है... सरकारें ही जब जुगाड़ पर टिकी हों, तो ज़मीन पर रहने वालों को पूछता ही कौन है... सब्र कर जुगाड़ एक दिन तेरे भी पूछ होगी, जब अमेरिका चुपके से जुगाड़ का भी पेटेंट करा लेगा और फिर हम इंपोर्टेड जुगाड़ पर सफर करके बड़ा फख्र महसूस करेंगे...
सटीक जुगाड़.
फिक्र करने की ज़रूरत नहीं...हम पेटेंट जुगाड़ में से भी जुगाड़ निकाल लेंगे...क्योंकि जुगाड़ सिर्फ एक नाम नहीं... एक हैबिट है... मैंने तो देखा है... मेरे कई दोस्त जुगाड़ को अपनी लाइफ स्टाइल का वैसा ही हिस्सा बना चुके हैं... जैसे ब्लागिंग के लिए ब्लागर या वर्डप्रेस साफ्टवेयर का इस्तेमाल होता है...
अच्छी पोस्ट है...मजा आया पढ़ कर... आगे और उम्मीद की जानी चाहिए...
सियासत और सड़क...अपने मुल्क में सबकुछ जुगाड़ से हो रहा है। फ़िक्र नॉट बिरादर...अमेरिका अगर इसका पेटेंट करा लेगा, तो हम जुगाड़ से इसे फिर से अपने यहां ट्रांसफर करा लेंगे. मस्त लिखा. रसदार-धारदार. लिखते रहें. बधाई.
अब्यज जी ये जुगाड़ ही है जो गांव में सफर का सबसे सही साधन है। नहीं तो हमारे गांवों के रास्तों पर तो मर्सीडीज़ भी खच्चड मारुती 800 बनने में देर नहीं लगेगी। ऐसे में भारत का सबसे बेहतरीन आविष्कार जुगाड़ ही जुगाडियों का उड़न खटोला है
यह वाकई आश्चर्य जनक गाड़ी है , जो पश्चिम उत्तर प्रदेश में लगभग हर कसबे में देखी जा सकती है, आवश्यकता आविष्कार की जननी है , आर्थिक अभाव से ग्रस्त हमारे साधारण किसान ने यह गाड़ी बना कर अपनी बहुत बड़ी समस्या पूरी कर ली !
ट्रांसपोर्ट डिपार्टमेंट के अधिकारी इस पर अपना कानून लागून करने में चकरा जाते हैं कि इसे मोटर वहिकल एक्ट की परिधि में कैसे लायें ?
बहुतों के लिए ( जिन्होंने गाँव सिर्फ चौकी धानी या दिल्ली हाट में देखा होगा ) यह एक विचित्र चीज साबित होगी !
शुभकामनायें !
हरियाणा,राजस्थान में तो लगभग हरेक कस्बे, गाँव में ऎसे जुगाड मिलेंगें...जिसके अन्दर जितनी सवारियाँ, उससे चार गुणा बाहर लटकती हुई...
वैसे भी ये देश जुगाडों के सहारे ही तो चल रहा है :)
" ek acchi post ..aapne jugaad is aapki post se sarkar ko aur aaj ke halat per bahut kuch sacchai se bhare alfaz kahe diye baut khub ...accchi post "
----- eksacchai { AAWAZ }
http://eksacchai.blogspot.com
Jugaad - ek perfect article - title se lekar language and vyangya... sabhi mazedar tha :)
Aise hi likhte rahiye... !!!!
Jai Jugaad!
Abyaz Bhai, ghar ki yad dila di! Behad kam sansadhano mein kam chalane ka nam jugaad hai!
अरे ! वाह! जुगाड़ के ऊपर यह लेख बहुत अच्छा लगा..... मज़ा आ गया पढ़ कर.... इससे यह पता चलता है कि हम हिन्दुस्तानियों के आगे अच्छे अच्छे पानी भरते हैं..... बहुत ही बढ़िया पोस्ट....
kal ek jugaad dekha... aapke article ki yaad aa gayi... sach pehle kabhi gaur hi nahi kiya tha... gaur bhi kiya ho per naam nahi pata tha ... samajh nahi aata ise kya kahein... :)
वाह आपने comment लिकने का जुगाड़ कर ही लिया|हमारे यंहा भी अईय www.vijaypalkurdiua.tk