अबयज़ ख़ान
जंगल में आग लगी.. चारों तरफ़ हाहाकार मचा था.. आग की लपटें आसमान को छू रही थीं। जंगल से निकलकर धुआं बस्ती की फिज़ा में दम घोंटने लगा। आग इतनी भयानक हो चुकी थी, मानो पल भर में ही जंगल को राख कर देगी। तपिश ऐसी कि वहां एक पल भी रुकना नामुमकिन हो चुका था। बेबस जानवर जंगल से जानवर शहर की तरफ भाग रहे थे। जिंदगी बचाने के लिए उनके पास इसके सिवा शायद कोई ज़रिया नहीं था। चंद आतिश परस्तों ने कुछ रंग-बिरंगे काग़ज़ के टुकड़ों के लिए हरे-भरे जंगल को आग के हवाले कर दिया था।

बेज़ुबान जानवर बेबस थे.. उनका घर जल रहा था.. लेकिन कोई आग बुझाने वाला नहीं था। जानवरों की बस्ती में कुछ आतिशी इंसानों ने शोलों को हवा दे दी थी। कुछ बेज़ुबान तो इस आग में जलकर खाक हो गए, तो कुछ दम घुटने से ही इस दुनिया से रुखसत हो गए। जंगल जल रहा था, लेकिन पास की इंसानी बस्ती में किसी को भी अपना फर्ज़ याद नहीं आया.. जंगल से निकलकर जानवर बस्ती में पहुंचने लगे.. तो तमाशबीनों की भीड़ ने उन्हें घेर लिया.. किसी ने दौड़ा-दौड़ाकर शेर को मार डाला.. तो कोई हाथियों पर पत्थरों की बरसात करने लगा।

अपना घर छोड़कर बेघर हुए इन जानवरों की सुध लेने वाला कोई नहीं था। शहर में इंसानी भेष में जानवर थे.. जो उनकी हालत पर तरस खाने के बजाए बेज़ुबानों पर ज़ुल्म कर रहे थे। इधर जंगल में आग भड़कती ही जा रही थी। मीलों में फैला जंगल आहिस्ता-आहिस्ता आग के आगोश में समाता जा रहा था। लेकिन किसी में इतनी ताकत नहीं थी, जो उस जंगल को आग से बचा ले। जंगल में बड़े से पीपल के पेड़ पर एक चिड़िया भी रहती थी.. इस आग में उसका घर भी छूटने वाला था... उसकी आंखो में आंसू थे.. उसे गम था अपना आशियाना छिन जाने का।

लेकिन चिड़िया से जंगल की आग देखी न गई। अचानक वो घोंसले से बाहर आई और कुछ दूर एक छोटे से तालाब पर पहुंची, वहां से उसने अपनी चोंच में दो बूंद पानी लिया, और लाकर उसे जंगल के ऊपर छिड़क दिया। इसके बाद वो फिर तालाब पर गई, दो बूंद पानी लाई और उसे जंगल पर छिड़क दिया। इसी तरह उसने दस-बारह बार किया। जब वो ऐसा करके थक गई तो अपने घोंसले में बैठकर सुस्ताने लगी। तभी सामने वाले पेड़ पर मौजूद अजगर ने उसकी तरफ देखा और बोला तुझे क्या लगता था, कि तेरी चोंच में पानी लाने से जंगल की आग बुझ जाएगी। तू क्यूं इतनी मेहनत कर रही थी। चिड़िया ने जवाब दिया। मैं भी जानती हूं कि मेरे चोंच में पानी लाने से जंगल की आग नहीं बुझने वाली। लेकिन कल जब इस जंगल का इतिहास लिखा जाएगा, तो मेरा नाम आग लगाने वालों में नहीं, बल्कि आग बुझाने वाले में लिखा जाएगा।
7 Responses
  1. Smart Indian Says:

    सुन्दर बोधकथा।


  2. मुझे लगता है यह आज कि बेहतरीन पोस्ट में से एक होनी चाहिए अबयज खान !
    बहुत दिन बाद पढ़ पाया आपको आपका ब्लाग फालो करता हूँ ....
    काश हम इससे कुछ समझ पायें ...
    हाय हमारे देश की भीड़ चाल और हम अनपढ़ों की बेबसी ..


  3. सतीश जी, पता नहीं क्यों बहुत दिन से ब्लॉग पर कुछ लिख नहीं पाया। आपकी इतनी तारीफ ने हौसला और भी बढ़ा दिया।


  4. डियर अबयज़,
    आदाब!
    सबसे पहले तो खुशामदीद, खैरमकदम, वापस आने पर!
    कहाँ रहे इतने दिन?
    अब पोस्ट: बेहतरीन और बेहतरीन!
    एक डाऊट है वैसे, इससे मिलते-जुलते भाव की कथा रामायण का भी हिस्सा है.... उसमे आग बुझाने की नहीं सीता को रावण से बचाने की जद्दो-जहद है.
    (डिस्क्लेमर: केवल डाऊट है भैय्या.... हम कोन्हों धर्म के जानकार नाहीं, जो पुख्ता तौर पर कहें)
    वैसे हमें भी आग बुझाने वालों में काउंट करना भाईजान.
    आशीष
    ---
    पहला ख़ुमार और फिर उतरा बुखार!!!


  5. आशीष भाई आपका बहुत बहुत शुक्रिया.. अरे हमने कब कहा कि इस कहानी के रचियता हम हैं। वैसे ये रामायण का हिस्सा नहीं है। मैंने किसी मुशायरे में एक शायर के मुंह से सुनी, दिल को छू गई तो आप सब के लिए ब्लॉग पर लिख दी।


  6. Shah Nawaz Says:

    वाह! बहुत बढ़िया!


  7. jnaaab jngl ki aag bhut khub nye andaaz men likhaa he mubark ho bhaayi . akhtar khan akela kota rajasthan