सभी दोस्तों से ये पुरखुलूस गुज़ारिश है, कि एक बार इस ग़ज़ल को पढ़ने की ज़हमत ज़रूर करें। बड़े अरसे बाद क़लम उठाई है, शायद ग़लतियां भी बहुत हों। ग़ज़ल कभी बहुत ज्यादा लिखी नहीं। कभी-कभार काग़ज़ पर अल्फ़ाज़ उकेरने की गुस्ताखियां की हैं। इस बार भी शायद कुछ ऐसा ही है। लिखने की कोशिश तो बहुत की, लेकिन किसी पैमाने पर उतरने वाली ग़ज़ल बन नहीं पाई। मीटर और पैरामीटर से अपना दूर तक भी वास्ता नहीं है। लिहाज़ा उसके लिए तो ज़रूर माफ़ करें। अगर आपको पसंद आ जाए तो इस अदीब की इसलाह ज़रूर करें।
जब से उसकी टेढ़ी नज़र हो गई।
दोस्तों जिंदगी दर-बदर हो गई।।
वो क्या गए हमसे रूठकर यारों।
महफिले और मुख़्तसर हो गईं।।
नफ़रतों के दायरे जब से बढ़ने लगे।
दिल की गलियां भी और तंग हो गईं।।
संगदिल के संग रहना ही ज़ेरेनसीब था।
जीती बाज़ी हारना अब किस्मत हो गई।।
उजले लिबास में लोग दिल के काले हैं।
मसीहाओं की अब यही पहचान हो गई।।
प्यार की बस्ती में धोखा ही धोखा है।
रंग बदलना लोगों की फितरत हो गई।।
प्यार, नफ़रत, ग़म, गुस्सा और फरेब।
ज़िंदगी की अब यही कहानी हो गई।।
उजले लिबास में लोग दिल के काले हैं।
मसीहाओं की अब यही पहचान हो गई।।
vaah!! kyaa baat hai.....sahi kahaa...
अबयज़......... अबयज़......... अबयज़...........
वाह! वाह! वाह!
बेहद खूबसूरत!
एक वाहियात इंटरप्रेटेशन मेरा भी......
दिलजलों की फ़ौज में हम भी शामिल हो गये!
जब से यारों छोड़ कर हमको हमारे 'वो' गए!!
दोस्त चिढाते थे, कहते थे 'हाफ मैरिड' हूँ मैं!
अब वो 'फुल्ली मैरिड' हैं, हम फिर से 'सिंगल' हो गए!!
हा हा हा हा हा!!!!!
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फिल्लौर फ़िल्म फेस्टिवल!!!!! तशरीफ़ लायें!
नफ़रतों के दायरे जब से बढ़ने लगे।
दिल की गलियां भी और तंग हो गईं।।
-बहुत सही!
सुंदर भाव हैं.
bahut khub.bahut khub bahut khub aapne to apni bat gajlon ke madhyam se kah diye.
जब पहले ही आपने कह दिया कि गज़ल की ग्रामर पर न जाएं तो फिर अच्छा कहने के सिवा कुछ चारा नहीं बचता....आप और लिखते रहें...यही दुआ है,,,,
अबयज़ ख़ान जी
अच्छा ब्लॉग है आपका ।
… और बढ़िया रचनाएं हैं ।
उजले लिबास में लोग दिल के काले हैं।
मसीहाओं की अब यही पहचान हो गई।।
अच्छा , व्यंग्य का स्पर्श है …
वैसे आपने दुरूस्त फ़रमाया
ग़ज़ल पढ़ें ज़्यादा , और जानकार दानिशमंद से सलाह - मशविरा लें ।
शुभकामनाओं सहित
- राजेन्द्र स्वर्णकार
Anyway... live at its fullest...
Fine...
संगदिल के संग रहना ही ज़ेरेनसीब था।
जीती बाज़ी हारना अब किस्मत हो गई।।
उजले लिबास में लोग दिल के काले हैं।
मसीहाओं की अब यही पहचान हो गई।।
content ke lihaz se ye donoN she'r jame.
मज़ा आ गया...
प्यार, नफ़रत, ग़म, गुस्सा और फरेब।
ज़िंदगी की अब यही कहानी हो गई।।
अपनी बात करूं तो इस पंक्तियों से प्यार हटा दिया जाना चाहिए
abyaz bhai bahut hi behtareen rachna hai dil ko chu lene wali isi tarah likhte raho mere bhai
डर लगता है हमें उस नाम से यारो |
कहती है ये दुनिया जिसे दोस्ती ||
कभी तो लिखी जाती है इतिहास के पन्नो में |
कभी मिटा देती है किसी की हस्ती ||
बहुत खूबसूरत गज़ल ...
मीटर और पैरामीटर तो हमें भी नहीं पता मगर रचना पसन्द आयी।
abyaz bhai...bahut accha likhtein hain aap....isi bahane aapko dhoond heen nikala
urs brotherly,
Manoj Tripathi
manoj_dj2001@yahaoo.co.in
खूबसूरत खूबसूरत गज़ल