तुमने तमाम उम्र साथ रहने का वादा तो नहीं किया था.. लेकिन तुम मेरी ज़िंदगी में बहुत आहिस्ता से दाखिल हो गये थे.. मुझे एहसास भी नहीं हुआ. और तुमने मेरे दिल पर हुकुमत कर ली.. मैं तुम्हारी हर अदा और हर इशारे का गुलाम हो गया... हर आहट पर जान देने को तैयार.. हर आह पर मर-मिटने को तैयार... तुममें कुछ तो ऐसा था.. जिसने मुझे मदहोश किया था... कोई तो ऐसी बात थी.. जिसने मुझे दीवाना बना दिया था... सुबह से लेकर शाम तक... हर आहट पर लगता था, कि तुम हो... फिज़ा चलती थी.. तो लगता था, कि तुम हो... पानी में अठखेलियां करते बच्चे हों, या शरारत भरी तुम्हारी कोई मुस्कुराहट... मेरे चारों तरफ़ शायद तुम्हारा एक घेरा बन चुका था... मेरी ज़िंदगी का शायद तुम एक हिस्सा बन चुके थे..
हम एक जान दो जिस्म तो नहीं थे, लेकिन हम हर जज्बात के साथी थे.. हम हर दर्द के साथी थे.. हम हर दुख के साथी थे... हमने हर कदम साथ चलने का वादा तो नहीं किया था.. लेकिन हमने राह में कदम ज़रूर साथ बढ़ाए थे... उसी रास्ते पर जहां हमसे पहले तमाम लोग चलकर निकल गये... ये रास्ता मुश्किलों भरा ज़रूर था.. लेकिन इतना कठिन भी नहीं... हर सुबह की शुरुआत में क्यों लगता था.. जैसे कोई मेरी आंखों पर हाथ रखकर कहता हो... उठो सुबह हो चुकी है.. जागो.. सवेरा हो गया है.. देखो सूरज कितना चढ़ आया है...ऐसा लगता था, जैसे कोई कहता हो, कि देखो तुम अपना ख्याल नहीं रखते हो.. तुम सर्दी में ऐसे ही चले आते हो... तुम कभी अपने बारे में भी सोचा करो...
जाने क्यों ऐसा लगता है जैसे तुमने मुझे शरारतन हल्की सी चपत लगाई हो और कहते हो, कि जाओ मुझे तुमसे बात नहीं करना.. तुमने कबसे मुझे फोन ही नहीं किया... तुम्हारे पास मुझसे साझा करने के लिए दो अल्फ़ाज़ भी नहीं हैं... आखिर ऐसा क्या हुआ था.. कि अचानक तुम मेरी ज़िंदगी में चुपचाप से दाखिल हो गये.. बिना कोई आहट किये... दिल के दरवाज़े पर कोई दस्तक भी न हुई... और तुम पहरेदार बन गये... मेरे एक-एक पल का हिसाब रखने लगे... मेरी हर घड़ी पर नज़र रखने लगे...दिल की धड़कनों ने भी अब तुम्हारे हिसाब से अपनी रफ्तार तय कर ली... मेरी रफ्तार भी अब तुम्हारी रफ्तार की साझा हो गई... हर कदम उसी रास्ते पर पड़ता, जहां तुम्हारी कदमबोसी हुई थी...
ऐसा क्यों लगता था, जैसे मेरा सबकुछ तुम्हारा हो चुका है... तुम्हारा सबकुछ मेरा हो चुका है... तुम्हारे लिए मेरा ईमान भी मुझसे बेईमानी करने लगा... क्यों मेरा मन कहता था, कि मेरी उम्र भी तुम्हे लग जाए... क्यों दुआओं में सिर्फ़ तुम्हारा ही नाम आता था... क्यों तुम्हारी पसंद मेरी पसंद बन चुकी थी... तुम्हारी किताबों में मुझे अपनी ही इबारत नज़र आती थी.. तुम्हारा होले से मेरे पास आकर मुझे चिढ़ा जाना या मुझसे चुटकी लेकर निकल जाना...क्या ये सब अनजाने में था.. क्यों मुझे लगता है कि तुम मेरा मुस्तकबिल थे.. तुम मेरा मुकद्दर थे... तुम मेरे लिए ज़िंदगी जीने की वजह थे.. तुम मेरे लिए जज्बा थे... तुम मेरा हौसला थे...
मेरी नस-नस ये कहती है, कि तुम्हारे आने के बाद जीने की एक वजह मिल गई थी... तुम्हारी आंख से निकले मोती, क्यों मेरी बेचेनी की वजह बन जाते थे... क्यों मेरा एक दिन गायब हो जाना, तुम्हें बेकरार कर देता था... क्यों एक-दूसरे को देखे बिना हमारा दिन गुज़रता नहीं था... लेकिन न जाने क्यों मुझे आज भी समझ नहीं आता... कि कैसे कोई अजनबी किसी का हो जाता है... फिर कैसे उसी से रूठ जाता है... लेकिन ये भी सच है कि तुम्हारी हया तुम्हारा गहना है... और शायद यही वो वजह थी... जिसने मुझे तुम्हारी सादगी पर फिदा कर दिया... न जाने क्यों मुझे आज भी लगता है, कि तुम आओगे.. फिर से.. ज़रूर आओगे... और होले से एक चपत लगाकर कहोगे, कि तुम्हारा दिमाग ख़राब है.. जो बात-बात पर रूठ जाते हो...चलो मुझे भी तुमसे बात नहीं करना...
हम एक जान दो जिस्म तो नहीं थे, लेकिन हम हर जज्बात के साथी थे.. हम हर दर्द के साथी थे.. हम हर दुख के साथी थे... हमने हर कदम साथ चलने का वादा तो नहीं किया था.. लेकिन हमने राह में कदम ज़रूर साथ बढ़ाए थे... उसी रास्ते पर जहां हमसे पहले तमाम लोग चलकर निकल गये... ये रास्ता मुश्किलों भरा ज़रूर था.. लेकिन इतना कठिन भी नहीं... हर सुबह की शुरुआत में क्यों लगता था.. जैसे कोई मेरी आंखों पर हाथ रखकर कहता हो... उठो सुबह हो चुकी है.. जागो.. सवेरा हो गया है.. देखो सूरज कितना चढ़ आया है...ऐसा लगता था, जैसे कोई कहता हो, कि देखो तुम अपना ख्याल नहीं रखते हो.. तुम सर्दी में ऐसे ही चले आते हो... तुम कभी अपने बारे में भी सोचा करो...
जाने क्यों ऐसा लगता है जैसे तुमने मुझे शरारतन हल्की सी चपत लगाई हो और कहते हो, कि जाओ मुझे तुमसे बात नहीं करना.. तुमने कबसे मुझे फोन ही नहीं किया... तुम्हारे पास मुझसे साझा करने के लिए दो अल्फ़ाज़ भी नहीं हैं... आखिर ऐसा क्या हुआ था.. कि अचानक तुम मेरी ज़िंदगी में चुपचाप से दाखिल हो गये.. बिना कोई आहट किये... दिल के दरवाज़े पर कोई दस्तक भी न हुई... और तुम पहरेदार बन गये... मेरे एक-एक पल का हिसाब रखने लगे... मेरी हर घड़ी पर नज़र रखने लगे...दिल की धड़कनों ने भी अब तुम्हारे हिसाब से अपनी रफ्तार तय कर ली... मेरी रफ्तार भी अब तुम्हारी रफ्तार की साझा हो गई... हर कदम उसी रास्ते पर पड़ता, जहां तुम्हारी कदमबोसी हुई थी...
ऐसा क्यों लगता था, जैसे मेरा सबकुछ तुम्हारा हो चुका है... तुम्हारा सबकुछ मेरा हो चुका है... तुम्हारे लिए मेरा ईमान भी मुझसे बेईमानी करने लगा... क्यों मेरा मन कहता था, कि मेरी उम्र भी तुम्हे लग जाए... क्यों दुआओं में सिर्फ़ तुम्हारा ही नाम आता था... क्यों तुम्हारी पसंद मेरी पसंद बन चुकी थी... तुम्हारी किताबों में मुझे अपनी ही इबारत नज़र आती थी.. तुम्हारा होले से मेरे पास आकर मुझे चिढ़ा जाना या मुझसे चुटकी लेकर निकल जाना...क्या ये सब अनजाने में था.. क्यों मुझे लगता है कि तुम मेरा मुस्तकबिल थे.. तुम मेरा मुकद्दर थे... तुम मेरे लिए ज़िंदगी जीने की वजह थे.. तुम मेरे लिए जज्बा थे... तुम मेरा हौसला थे...
मेरी नस-नस ये कहती है, कि तुम्हारे आने के बाद जीने की एक वजह मिल गई थी... तुम्हारी आंख से निकले मोती, क्यों मेरी बेचेनी की वजह बन जाते थे... क्यों मेरा एक दिन गायब हो जाना, तुम्हें बेकरार कर देता था... क्यों एक-दूसरे को देखे बिना हमारा दिन गुज़रता नहीं था... लेकिन न जाने क्यों मुझे आज भी समझ नहीं आता... कि कैसे कोई अजनबी किसी का हो जाता है... फिर कैसे उसी से रूठ जाता है... लेकिन ये भी सच है कि तुम्हारी हया तुम्हारा गहना है... और शायद यही वो वजह थी... जिसने मुझे तुम्हारी सादगी पर फिदा कर दिया... न जाने क्यों मुझे आज भी लगता है, कि तुम आओगे.. फिर से.. ज़रूर आओगे... और होले से एक चपत लगाकर कहोगे, कि तुम्हारा दिमाग ख़राब है.. जो बात-बात पर रूठ जाते हो...चलो मुझे भी तुमसे बात नहीं करना...
बेहद दिल को छू लेने वाले भाव के साथ लिखी गई ....बहुत ही खूबसूरत रचना......
दिल को छू गई.....अंत तक बाँध रखा ..... ग्रेट वर्क .....
क्या बात है भाई , बहुत खूब , दिल को छु लिया आपकी इस रचना नें ।
इसे पढ़ा नहीं..महसूस किया...
बहुत प्रवाहमयी दिल को छूती पोस्ट!!
इश्क़....!!
अहा...! भावनाओं का इतना खूबसूरत चित्रण लंबे समय बाद कहीं पढ़ने को मिला है...। एक-एक शब्द हृदय से निकला हुआ है...। कहीं पर भी कृत्रिमता नहीं...।
दिल को छुने वाले भाव मैने इससे पहले कभी नहीं पढ़े...लेकिन मुझे तो पूरी बात समझ में आ गई है...M I RIGHT.....
दिल को छुने वाले भाव मैने इससे पहले कभी नहीं पढ़े...लेकिन मुझे तो पूरी बात समझ में आ गई है...M I RIGHT.....
दिल को छुने वाले भाव मैने इससे पहले कभी नहीं पढ़े...लेकिन मुझे तो पूरी बात समझ में आ गई है...M I RIGHT.....
दिल को छुने वाले भाव मैने इससे पहले कभी नहीं पढ़े...लेकिन मुझे तो पूरी बात समझ में आ गई है...M I RIGHT.....
read.... और कुछ मालूम चला..वो जो शायद तुम गोलमोल कर गये...अफसोस कि तुमने छिपाया..पर जो भी है आपकी ये रचना उतनी ही खूबसूरत हो जितना आपका एहसास. इस एहसास को यूंही बरकरार रखना.. बहुत किस्मतवाले होते हैं वो जिन्हें ये एहसास मिलता है...ur. friend...