अबयज़ ख़ान
बचपन में सबसे ज्यादा जिस चीज का बेसब्री से इंतजार होता था.. वो गर्मियों की छुट्टियां होती थीं.. पूरे एक महीने तक मौजमस्ती के सिवा कुछ नहीं... इधर स्कूल में छुट्टियों का ऐलान हुआ, उधर अम्मी ने नानी के घर जाने के लिए सारे सामान की पैकिंग शुरु कर दी... और अगली सुबह यूपी रोडवेज की खटारा सी बस से रामपुर से पहुंच जाते थे बरेली... नानी के घर... नानी के घर छुट्टियां बिताने का एक अलग ही लुत्फ होता था.. मन में जितनी भी फरमाइशें होती थीं सब नानी के आगे रख दी जाती थीं... इन नानी जी के घर कई कैरेक्टर बसते थे... नाना, खाला और कई सारी मामियां भी होती थीं... हमारे भी चार मामू थे... तीन बीवी-बच्चों वाले थे... एक अभी तक कुंवारे थे... लिहाजा सारे नाज-नखरे वो ही उठाते थे... सुबह उठते ही मामू एक चवन्नी देते थे... दो-तीन चवन्नी इकट्ठी करने के बाद कभी कुलफी लेकर खाते थे... तो कभी बर्फ का गोला... अम्मी लाख मना करें कि बेटा बर्फ मत खाओ, तुम्हारे अब्बू से शिकायत कर दूंगी... लेकिन हम कहां मानने वाले थे भला... फिर चवन्नी भी तो मामू की थी... मामू की चवन्नी में आइसक्रीम खाने का मजा ही अलग होता था... जैसे-जैसे छुट्टियां खत्म होती थीं घर वापसी की तैयारी शुरु हो जाती थी... और हम मामू की तारीफ में कसीदे पढ़ते हुए वापस आते थे... अपने मामू को ढेर सारी दुआएं देते थे... अल्ला से दुआ करते थे, ऐ अल्लाह अगली बार जब हम आएं, तो मामू हमें अठ्ठनी दें.. कुछ तो तरक्की हो.... खैर ये सिलसिला तो लंबे वक्त तक चला... बड़े हुए तो मामू से मुलाकातें भी कम होने लगीं... पढ़ाई खत्म होने के बाद आगे की पढ़ाई के लिए रामपुर से दिल्ली आ गये... कोर्स खत्म होने के बाद नौकरी लग गई.. पहली नौकरी के बाद दोस्तों के साथ दिल्ली के एक सिनेमाघर पहुंच गये... किसी नये हीरो की फिल्म थी... नाम शायद फुटपाथ था... रिजवान हाशमी नाम का कोई लड़का इस फिल्म का हीरो था... (असली नाम तो सभी जानते हैं) देखने में तो हीरो के माफिक नहीं लगता... कई सारी फिल्में की उसने... अपनी हर फिल्म में उसका एक ही काम है.. एक प्यारी सी सुन्दर सी लड़की को किस करना... इसलिये उसका नाम भी सीरियल किसर पड़ गया... अब हमारी आंखों के सामने कोई लड़का किसी लड़की को किस करे, तो भला लड़का जात को ये कैसे बर्दाश्त हो... सो हमारे तन-बदन में भी आग लग जाती थी.. और हम फिल्म को बीच में ही छोड़कर उठ जाते थे... अब हमने फिल्म देखने के बजाय इस बात पर दिमाग के घौड़े दौड़ाने शुरु कर दिये, कि इस मुए को फिल्म में काम कौन देता है.. यार दोस्तों ने बताया कि रमेश हट्ट नाम का उसका एक मामू फिल्म इंड्स्ट्री में है... मामू ने कसम खाई है, कि मेरा भांजा एक्टिंग करे या न करे, साले को सारी हीरोइन्स का किस तो करवा ही दूंगा... वाकई में लाजवाब मामू है.. एक हमारे मामू हैं चवन्नी से तरक्की करके एक रुपये पर अटक गये थे, और एक इस हाशमी का मामू है, किस कराने से लेकर सुबह तक डसने की छूट भी देता है... वाह रे मामू, हमारे मामू कब बनोगे...? सुबह तक डसने का मौका मत देना, फिल्म में काम भी मत देना, मगर एक किस तो जरूर दिलवा देना मामू.....
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