अजब पागल सी लड़की है........
मुझे हर ख़त में लिखती है
मुझे तुम याद आते हो
तुम्हें मैं याद आती हूं
मेरी बातें सताती हैं
मेरी नींदें जगाती हैं
मेरी आंखें रुलाती हैं
सावन की सुनहरी धूप में
तुम अब भी टहलते हो
किसी खामोश रस्ते से कोई आवाज़ आती है
ठहरती सर्द रातों में
तुम अब भी छत पे जाते हो
फलक के सब सितारों को मेरी बातें सुनाते हो
किताबों से तुम्हारे इश्क में कोई कमी आई?
या मेरी याद की शिद्दत से आंखों में नमी आई?
अजब पागल सी लड़की है....
मुझे हर ख़त में लिखती है
जवाब मैं भी लिखता हूं-
...मेरी मसरूफियत देखो
सुबह से शाम आफिस में
चराग़े उम्र जलता है
फिर उसके बाद दुनिया की
कई मजबूरियां पांवों में
बेड़िया डाले रखती हैं
मुझे बेफिक्र चाहत से भरे सपने नहीं दिखते
टहलने, जागने, रोने की मोहलत नहीं मिलती
सितारों से मिले अब अर्सा हुआ... नाराज़ हों शायद
किताबों से ताल्लुक़ मेरा... अभी वैसे ही क़ायम है
फर्क इतना पड़ा है अब उन्हें अर्से में पढ़ता हूं
तुम्हें किसने कहा पगली....
तुम्हें मैं याद करता हूं
कि मैं खुद को भुलाने की
मुसलसल जुस्तजू में हूं
तुम्हें ना याद आने की
मुसलसल जुस्तजू में हूं
मगर ये जुस्तजू मेरी
बहुत नाकाम रहती है
मेरे दिन रात में अब भी
तुम्हारी शाम रहती है
मेरे लफ्जों की हर माला
तुम्हारे नाम रहती है
तुम्हें किसने कहा पगली......
तुम्हें मैं याद करता हूं..
पुरानी बात है जो लोग
अक्सर गुनगुनाते हैं
’उन्हें हम याद करते हैं
जिन्हें हम भूल जाते हैं’
अजब पागल सी लड़की है....
मेरी मसरूफियत देखो
तुम्हें दिल से भुलाऊं तो
तुम्हारी याद आती है
तुम्हें दिल से भुलाने की
मुझे फुर्सत नहीं मिलती
और इस मसरूफ जीवन में
तुम्हारे ख़त का इक जुमला
’तुम्हें मैं याद आती हूं?
मेरी चाहत की शिद्दत में
कमी होने नहीं देता
बहुत रातें जगाता है
मुझे सोने नहीं देता
सो अगली बार खत में
ये जुमला ही नहीं लिखना
अजब पागल सी लड़की है....
मुझे फिर भी ये लिखती है
मुझे तुम याद करते हो?
तुम्हें मैं याद आती हूं?
किसी मैगज़ीन में मैंने ये कविता पढ़ी थी, ये लाइनें मेरे दिल को छू गईं, उम्मीद है आप को भी पसंद आयेंगी।
मुझे हर ख़त में लिखती है
मुझे तुम याद आते हो
तुम्हें मैं याद आती हूं
मेरी बातें सताती हैं
मेरी नींदें जगाती हैं
मेरी आंखें रुलाती हैं
सावन की सुनहरी धूप में
तुम अब भी टहलते हो
किसी खामोश रस्ते से कोई आवाज़ आती है
ठहरती सर्द रातों में
तुम अब भी छत पे जाते हो
फलक के सब सितारों को मेरी बातें सुनाते हो
किताबों से तुम्हारे इश्क में कोई कमी आई?
या मेरी याद की शिद्दत से आंखों में नमी आई?
अजब पागल सी लड़की है....
मुझे हर ख़त में लिखती है
जवाब मैं भी लिखता हूं-
...मेरी मसरूफियत देखो
सुबह से शाम आफिस में
चराग़े उम्र जलता है
फिर उसके बाद दुनिया की
कई मजबूरियां पांवों में
बेड़िया डाले रखती हैं
मुझे बेफिक्र चाहत से भरे सपने नहीं दिखते
टहलने, जागने, रोने की मोहलत नहीं मिलती
सितारों से मिले अब अर्सा हुआ... नाराज़ हों शायद
किताबों से ताल्लुक़ मेरा... अभी वैसे ही क़ायम है
फर्क इतना पड़ा है अब उन्हें अर्से में पढ़ता हूं
तुम्हें किसने कहा पगली....
तुम्हें मैं याद करता हूं
कि मैं खुद को भुलाने की
मुसलसल जुस्तजू में हूं
तुम्हें ना याद आने की
मुसलसल जुस्तजू में हूं
मगर ये जुस्तजू मेरी
बहुत नाकाम रहती है
मेरे दिन रात में अब भी
तुम्हारी शाम रहती है
मेरे लफ्जों की हर माला
तुम्हारे नाम रहती है
तुम्हें किसने कहा पगली......
तुम्हें मैं याद करता हूं..
पुरानी बात है जो लोग
अक्सर गुनगुनाते हैं
’उन्हें हम याद करते हैं
जिन्हें हम भूल जाते हैं’
अजब पागल सी लड़की है....
मेरी मसरूफियत देखो
तुम्हें दिल से भुलाऊं तो
तुम्हारी याद आती है
तुम्हें दिल से भुलाने की
मुझे फुर्सत नहीं मिलती
और इस मसरूफ जीवन में
तुम्हारे ख़त का इक जुमला
’तुम्हें मैं याद आती हूं?
मेरी चाहत की शिद्दत में
कमी होने नहीं देता
बहुत रातें जगाता है
मुझे सोने नहीं देता
सो अगली बार खत में
ये जुमला ही नहीं लिखना
अजब पागल सी लड़की है....
मुझे फिर भी ये लिखती है
मुझे तुम याद करते हो?
तुम्हें मैं याद आती हूं?
किसी मैगज़ीन में मैंने ये कविता पढ़ी थी, ये लाइनें मेरे दिल को छू गईं, उम्मीद है आप को भी पसंद आयेंगी।
ajab pagal si larki hai
meri khamosh aankhon main mehakti , mukurati , gungunati
khawaab se gehri mohabbat ke
sabhi rangon se waqif hai
magar anjaan banti hai
woh meri be'qarari ke sabhi mah'ney samjhti hai
magar khamosh rehti hai
ussay maloom hai
keh be'tahasha rolney wala
zamaney bhar ke qissay
daastan'ein us se kehta hai
her ik mozoo pe us se baat karta hai
woh ussay keh nahin sakta
meri sochon ke mehvar ho
tumharay bin yeh zindagi mujhay be'kaar lagti hai
mera her din tumhari soch ke suraj se ugta hai
meri her shaam ke pehlu main
tumhi muskurati ho
meri her raat qarb-e-na'rasaei se sulagti hai
agar khud se tumhain min'ha karon
to kuch nahin bachta
ussay maloom hai yeh shab gaye tak jaagny wala
jissy khabon ki duniya se
mohabbat si mohabbat hai
woh kyn soney se darta hai
ussay kiya khauf la'haq hai
woh khul kar kyn nahin hansta
woh kiyn chup chup ke rota hai
ussy maloom hai sab kuch
magar anjaan banti hai
ussay maloom hai sab kuch
magar anjaan banti hai
ussay yeh kon samjha'ey
keh dil youn na'rasaei ki
tapish ziada dino tak seh nahin sakta
jissay khabon ki duniya se
mohabbat si mohabbat ho
woh khabon ke bina aisay adhoora reh nahin sakta
ussay yeh kon samjha'ye
keh ussay be'tahasha bolney wala
jo her mozoo par us se baat karta hai
kabhi yeh keh nahin sakta
meri veeraan ankhon main
kai sapney samo jaoo
tumharay bin adhoora hoon
meri takmeel ho jao
डस