आखिरी विदाई का वक्त था, तो माहौल थोड़ा ग़मगीन होना लाज़िमी था... जिसे अपने खून पसीने से सींचकर आशियां बनाया था, वो डेढ़ साल में ही ज़मीदोज हो गया... जिन सपनो में पंख लगाकर उड़ने की कोशिश की थी, उन्हे एक झटके में ही किसी ने कतर डाला था... तमाम किले बनाए थे... तूफ़ानों से लड़कर अपनी ज़िंदगी का क़तरा-क़तरा कुर्बान किया था.. उसकी एक-एक चीज़ को सहेजकर ऐसे सजाया था, जैसे कोई मां अपनी बेटी के लिए दहेज़ का सामान जुटाती है... एक चैनल से दूसरे चैनल तक ज़िंदगी में कुछ करने का जज़्बा था... दफ्तर में कलीग एक-दूसरे को देखकर जी रहे थे... हर किसी के मन में कुछ नया करने का जज्बा, खासकर उन लोगों के दिल में जिन्होने अभी जर्नलिज्म के पेशे में कदम ही रखा था... जो मीडिया की चमक-दमक देखकर मैनेजमेंट, आईटी, मेडिकल और इंजीनियरिंग जैसे कई ट्रेडिश्नल करियर को बायबाय करके आये थे, लेकिन उनको जो तजुर्बा हुआ उसके बाद तो वो शायद अपने बच्चों को भी कभी इस प्रोफेशन में न आने दें...
उनके सपनो का बुलबुला तो पल भर में बिखर गया था... मुझे अच्छी तरह याद है जब उन लोगों को ऑफ़र लेटर मिले थे, तो उनके चेहरे पर खुशी साफ़ पड़ी जा सकती थी, उनमें काम सीखने की कैसी ललक थी, एक-एक बात को वो बार-बार पूछने आते थे... वो चाहते थे, कि जल्दी-जल्दी सबकुछ सीख जाएं... लेकिन चार महीने में ही उनके सारे ख्वाब चकनाचूर हो गये.. मीडिया की कड़वी हकीकत से वो लोग इतनी जल्दी रूबरू हो जाएंगे, ऐसा तो उन्होने सपने में भी नहीं सोचा होगा... क्या-क्या प्लान बनाए होंगे अपनी ज़िंदगी को लेकर... लेकिन इसमें उन बेचारों का क्या कसूर है... कसूर तो कुकुरमुतों की तरह उगे उन इंस्टीट्यट का है, जिन्होने मीडिया की झूठी चमक-दमक दिखाकर लोगों से पैसे ऐंठ लिए...
वॉयस ऑफ़ इंडिया... यही नाम था उस न्यूज़ चैनल का...था इसलिए क्योंकि अब वो तारीख बन चुका है.. अब उसे लोग सिर्फ़ याद करेंगे... उसके सिवा शायद किसी के पास कोई ऑप्शन भी नहीं होगा.. हम ख़बर हैं बाकी सब भ्रम है.... यही उसकी पंचिंग लाईन थी.. बड़े शहरों में, चौराहों से लेकर मेट्रो स्टेशन तक.. हर कहीं उसके अजीब से विज्ञापन वाले बोर्ड नज़र आते थे... लेकिन एक साल में ही हम ख़बर बन गये.. जब चैनल शुरु हुआ था... तो दूसरे चैनलों की धड़कनें तेज़ हो गईं थी.. हर कोई चाहता था, कि उसे एक बार इस चैनल में काम करने का मौका मिल जाए.. लोगों ने बड़ी तिकड़मे भिड़ाईं कि किसी तरह उनका सपना सच हो जाए.. बस एक बार उन्हें भी वॉयस ऑफ़ इंडिया में काम करने का मौका मिल जाए.. जिनका सपना पूरा हुआ वो खुद को खुशनसीब समझते थे... लेकिन जो बदनसीब यहां तक नहीं पहुंच पाए वो आज खुद को खुशनसीब समझते हैं...
अफ़सोस ये कि आज वो लोग भी हमें फूटी आंख देखना पसंद नहीं करते जो कल तक फोन पर नौकरी लगवाने की गुहार लगाते थे... मैं खुद ऐसे बहुत सारे लोगों को जानता हूं, जो मुझे फोनकर कहते थे, कि बस यार एक बार बात करवा दो.. किसी बॉस से मिलवा दो.. आज वही लोग खुद को हमसे बड़ा और समझदार साबित करने की कोशिश करते हैं... ऐसा नहीं है कि हमारी किस्मत कोयले से लिखी है, और दूसरी जगह काम करने वाले सोने से अपनी किस्मत लिखवाकर आये हैं... या वीओआई में काम करने वाले सभी लोगों की किस्मत एक साथ खराब हो गई.... वीओआई में काम करने के लिए लोगों ने कई बड़े चैनल्स छोड़ दिये। वीओआई में काम करने वालों में भी कोई कमी नहीं हैं। उनके ट्रैक रिकॉर्ड शानदार रहे हैं। ऐसे में वीओआई में काम करने वालों को हिकारत की नज़र से देखना भला कहां की समझदारी है।
कौन नहीं जानता कि इस दौर में कई बड़े चैनल होने का दावा करने वालों को पसीने आ गये... और उन्होने चुपचाप अपने एम्पलॉयज़ को बाहर का रास्ता दिखा दिया... और तो और उन्होने अपने एम्पलॉयज़ को प्रमोशन और इँक्रीमेंट तक नहीं दिया... लेकिन जिनके घर शीशे के हैं वो भी हमारे ऊपर पत्थर उछाल रहे हैं...ये जानते हुए भी कि इससे उनके घर में भी दरारें आयेंगीं... कौन जानता था, कि हिंदुस्तान की तीसरे नंबर की सॉफ्टवेयर कंपनी सत्यम का इतना बुरा हाल होगा... चाहे एफ़एमसीजी हो, एयरलाईन हो या शेयर मार्केट में काम करने वाली दूसरी बड़ी कंपनियां हों.. हर कोई मंदी की मार से जूझ रहा था... अगर चैनल डूबा तो इसकी एक बड़ी वजह तो यही थी, कि ये ऐसे वक्त में लॉंच हुआ जब बाज़ार में मंदी का आलम था.. मार्केट से रेवेन्यु आया नहीं और चैनल लॉस में जाता रहा.. वरना चालीस ओबी वैन के साथ शुरु हुए इस चैनल की इतनी जल्दी ऐसी हालत हो जाएगी, इसका तो किसी को भी गुमान नहीं था...
अपने करियर को हर कोई चार चांद लगाना चाहता है... जो लोग भी वॉयस ऑफ़ इंडिया में आए, वो बड़े लोगों को देखकर ही आए... लेकिन आज लोग हमें बिन मांगे सलाह दे रहे हैं, जो मदद तो नहीं कर सकते, लेकिन चुटकियां ज़रूर ले रहे हैं... आज वीओआई में जो कुछ हुआ, या उसके लोगों के साथ जो कुछ हुआ वो तो ज़िंदगी का एक हिस्सा है, और ऐसा नहीं है कि जो लोग आज हंस रहे हैं, कल उनकी ज़िंदगी में ऐसे दिन न आएं... लेकिन मुझे अफ़सोस उन लोगों के लिए है जिन्होने वीओआई के साथ सपने बुन लिए... अफ़सोस उन लोगों के लिए है, जिन्होने यहां पर अपना घर-परिवार तक बसा लिया... अफ़सोस उन लोगों के लिए है, जिन्होने वीओआई के भरोसे लोन लेकर मकान खरीद लिये.. उनके सामने तो एक तरफ़ कुआं और दूसरी तरफ़ खाई है.. वैसे भी महानगरों में रहने वालों की आधी ज़िंदगी तो किस्तों में कट जाती है... लेकिन ऐसा नहीं है कि सब दिन एक समान होते हैं, कभी के दिन बड़े होते हैं, तो कभी की रातें बड़ी होती हैं.. और वैसे भी अंधेरे के बाद ही सूरज निकलता है... खुदा या भगवान तो सबका होता है.. अगर उसने दुनिया में भेजा है, तो रोज़ी-रोटी का इतज़ाम करना उसकी ज़िम्मेदारी है... चलते-चलते बिन मांगी सलाह उन लोगों के लिए है, जो मीडिया को अपना प्रोफेशन बनाने जा रहे हैं... कोई भी कदम बढ़ाने से पहले एक बार वॉयस ऑफ़ इंडिया का इतिहास ज़रूर पढ़ लेना...
बिलकुल सही बात है आपकी।मगर एक छलाँग मे लोग चाँद तक पहुँच जाना चाहते हैं कोई क्या करे। शुभकामनायें
किसी भी काम में एक के गलत निर्णय और असफलता का फल बहुतों को झेलना पडता है .. इसलिए अपने कदम फूंक फूंक कर ही उठाने चाहिए .. पर एक रास्ता बंद होने से सारे रास्ते बंद भी नहीं हो जाते .. एक रास्ता बंद होते ही चार रास्ते खुलते हैं .. इसलिए धैर्य तो रखा ही जाना चाहिए .. बेरोजगार हुए कर्मचारियों को शुभकामनाएं !!
दुख हुआ सुन कर वी ओ आई का हश्र.
" bahut hi badhiya post aur siddhe aur saaf alfaz me aapne bandh muthhi me bahut kuch kahe diya .."
" aapko badhai aapki is shandar post ke liye ."
----- eksacchai { AAWAZ }
http://eksacchai.blogspot.com
ऐसे वक्त में ही असली शुभचिंतकों की पहचान होती है किसी को नाउम्मीद नहीं होना चाहिए ,
सभी प्रभावित लोगों को मेरी सहानुभूति और शुभकामनायें
nice
Abyaz... dost gajni ki tarah inki photo kheench kar rakh lena... kyunki ye phir jald hi naukri ke liye phone karenge....
bilkul sahi kaha sir...wo kehte hai na acha waqt ki ye baat achi hoti hai ki wo kat jata hai aur bure waqt ki ye baat achi hai ki wo bhi kat jata hai...shayad hum sabhi ke sath kuch bahot acha hona baki hai kyunki isse bura dekhne ko shayad nahi bacha
आपका यह लेख भावुक करने वाला था ,शायद आपके द्वारा रचे गए शब्दों में हम सब लोग कही न कहीं मौजूद थे,सच में सर मैंने भी बीते वक्त अपनों को पराये होते हुए देखा है ,लेकिन विश्वास था एक दिन सब कुछ बदलेगा....बहुत बुरा होता है जब आपकी कल्पना मर जाती है और उससे ज्यादा बुरा होता है जब आपकी कल्पना करने की क्षमता ख़त्म हो जाए ....
लेकिन बीते वक्त बहुत कुछ सीखने को मिला ,बस यही सोचता रहा की जो सीखा है वो नकारात्मक है या सकारात्मक
लेकिन एक बार फिर से आपको इस शानदार लेख की शुभकामनाये ...सच कहूँ तो आज आपके पूरे ब्लॉग में यह लेख सबसे शानदार था ,,,,,शायद आपकी और मेरी भावनाए इससे जुडी है इसीलिए ......
आशीष
salaamzindagii.blogspot.com
आशीष जब दर्द साझा हो जाता है, तो उसका एहसास और भी ज्यादा बढ़कर होता है...सभी मित्रों का हौसला-अफ़ज़ाही के लिए शुक्रिया...
ज़िंदगी में उतार-चढ़ाव तो आते ही रहते हैं..
abyaz bhai,
jab andhera hota hai to dukh hota hai,lekin aise hi andheron mein logon ki pechaan hoti hai.apne badi himmat se is andhere ka samna kiya hai lekin ab roshni mein sabkuch saaf ho gaya hai. aapke dardmand alfaazon mein kahin na kahin hamari kahani bhi chupi hai.(matloob ansari-09300116094)
मतलूब भाई बहुत अच्छा लगा आपका कमेंट्स पढ़कर... ज़िंदगी में उतार-चढ़ाव तो हर किसी की ज़िंदगी में आते रहते हैं... लेकिन हौसला तो मंज़िल भी दूर नहीं होती.. बहुत शुक्रिया.. आपसे जल्द राब्ता कायम होगा...