छड़े हो जी... इस सवाल को सुनकर जैसे कुछ समझ ही नहीं आया... छड़े का मतलब... हमने तो अबतक छड़ी के बारे में ही सुना था... लेकिन ये छड़े क्या है? अरे मेरा मतलब है शादी हुई है या नहीं..? मेरा मतलब कुंवारे हो क्या..? जी मैंने कहा... माफ़ करना जी फिर हम आपको कमरा नहीं दे सकते... हमें फैमिली वालों को ही अपना घर देना है... छड़ों को नहीं देते... ठीक है जैसी आपकी मर्ज़ी... मैंने मकान मालिक को शुक्रिया कहा... और वापस लौट आया... मकान भले ही न मिला हो.. लेकिन एक अल्फ़ाज़ के बारे में जानने का मौका और मिल गया... छड़े... यानि कुंवारे...दिल्ली, हरियाणा, नोएडा, गाज़ियाबाद और मगरिबी सूबे उत्तर प्रदेश में इस तरह की बोलचाल आम है.. अगर आप किराए पर मकान लेने जाएंगे तो ये सवाल आपसे सबसे पहले पूछा जाएगा.... मकान की तलाश के दौरान अक्सर ऐसे ही सवालों से दो-चार होना पड़ता है... कई बार तो सवालों की बौछार इस तरह होती है, जिससे कुछ देर के लिए आपको ऐसा लगेगा कि शायद आपने कोई जुर्म किया है और आपसे पूछताछ हो रही है...
तमाम तरह के सवालात और आपको शक की निगाहों से देखना... कहां के रहने वाले हो..? काम क्या करते हो? नाम क्या है? कितने लोग रहोगे? इससे पहले कहां रहते थे.? पुराना मकान क्यों छोड़ रहे हो..? इस शहर में तुम्हे कोई जानता है या नहीं.? तुम्हारे घर में कौन-कौन रहता है...? वगैरह-वगैरह। अगर आप इन टेढ़े-मेढ़े सवालों का जवाब देकर इस इम्तिहान को पास कर गये, तो समझो आपको मकान मिल गया। लेकिन आपकी टेंशन अभी यहीं ख़त्म नहीं हुई। अभी तो ढेर सारी शर्तें हैं जिनसे आपको दो-चार होना पड़ेगा। देखिये अगर घर में रहना है तो नॉनवेज नहीं चलेगा.. यार-दोस्त नहीं आयेंगे... बिजली का बिल अलग से आयेगा, बावजूद इसके लाइट कम जलाओगे.. प्रेस नहीं करोगे.. वॉशिंग मशीन नहीं चलेगी... रात को जल्दी आना होगा... ज्यादा शोर-शराबा नहीं होना चाहिए... ऐसा लगता है जैसे आपको मकान किराए पर नहीं मिल रहा है, बल्कि मान मालिक आपको मुफ्त में मकान दे रहा है।
बाप-रे-बाप इतनी शर्तें और इतने सवाल.. अगर इतनी तैयारी यूपीएससी के एक्ज़ाम में कर लेते.. तो सेकेंड क्लास अफ़सर तो ज़रूर बन जाते। और अगर आपने गलती से बता दिया कि भईया मैं पत्रकार हूं... आपको किसी तरह की तकलीफ़ नहीं होगी, तो समझो आपको मिलता हुआ कमरा भी हाथ से गया। लेकिन अभी आपकी परेशानियां यहीं ख़त्म नहीं हुई हैं। मकान दिलाने के लिए आपने जिन भाईसाहब की मदद ली थी, अभी तो उनका रोल बाकी था। दरअसल चार साल पहले मेरे साथ ऐसा हुआ कि मैंने एक दुकानदार भाई से पूछ लिया कि भईया यहां कोई मकान किराए पर मिल सकता है। इतना सुनना था कि जनाब की बांछे खिल गईं... अरे क्यों नहीं भाई साहब... ज़रूर मिल जाएगा... मैं ऐसे कई लोगों को जानता हूं... जिनका मकान किराए के लिए खाली है... जनाब ने सबसे पहले मुझे पानी पिलाया... और फिर अपनी मीठी-मीठी बातों से आईने में उतार लिया। मुझे लगा कि इस अंजान शहर में इतने शरीफ़ लोग भी रहते हैं... अल्लाह इनका भला करे।
बस भाई साहब ने अपनी दुकान बंद की और मुझे मकान दिखाने ले गये.. कई मकान दिखाए, जिसमें से एक मुझे पसंद आ गया। इसके बाद, बात हुई किराए की, मकान मालिक ने बड़ा सा मुंह खोला। भला हो दिल्ली में होने वाले कॉमनवेल्थ गेम्स का... मकान का किराया भी आसमान पर पहुंच गया। चार हज़ार रुपये का किराया सुनकर झटका सा लगा। हमारे रामपुर शहर में तो चार हज़ार रुपये में नवाब साहब का किला भी किराए पर मिल जाएगा.. फिर ये पचास गज़ में बना दो कमरों का कबूतरखाना और किराया चार हज़ार रुपये। बात इतने तक होती, तब भी ठीक था... इसके बाद जो भाईसाहब हमें मकान दिलाने ले गये थे उन्होने भी मुंह खोल दिया... नकली हंसी निकालकर बोले... हें..हें..हें.. एक महीने का किराया मुझे भी देना होगा... ये मेरा कमीशन है। एक महीने का आप से लेंगे और एक महीने का मकान मालिक से।
इतना सुनकर मेरी तो आंखे फटी रह गईं... अबतक जिन्हे हम अजनबी शहर में अपना अज़ीज़ समझ रहे थे एक झटके में ही वो हमारे लिए दलाल बन गये। समझ नहीं आ रहा था, कि थोड़ी देर पहले हमने इन्हें जो झोली भरकर दुआएं दी थीं, उनका क्या करें.. वापस भी नहीं ले सकते। अब इन्हें गालियां दें... या अपने लुटने पर शर्मिंदा हों... मुफ्त में जेब पर एक महीने का डाका पड़ रहा था। लेकिन वो सेर थे तो हम भी सवा सेर थे... बोल दिया हमें मकान नहीं चाहिए और भाई साहब से पिंड छुड़ाकर निकल गये। फिर चार-पांच दिन बाद हम उसी मकान में पहुंचे... मकान मालिक से बात की कि जनाब मकान चाहिए और अगर उनको बीच में डाला, तो दोनों को ही एक-एक महीने का चूना लगेगा... आप चाहें तो मकान दे सकते हैं... मकान मालिक को भी फायदे का सौदा लगा... और मकान की चाभी हमारे हाथ में सौंप दी.. मकान तो किराए पर मिल गया.. लेकिन इस दौरान जिन दिक्कतों से गुज़रना पड़ा उसकी टीस आज भी बाकी है।
bahut khub kahaa aap ne
सही बात है...
Do u know what, we feel helpless during these difficult times..but they teach us how to take and value happiness.... but well said
सत्य वचन.
किराए पर मकान की दिक्कतें मैंने भी बहुत झेली हैं..