अबयज़ ख़ान
अब तक जूता सिर्फ़ पैरों की शान समझा जाता था, लेकिन ये जूता वक्त के साथ तरक्की कर गया है। कंपनी चाहे कोई भी हो, लेकिन जूते का जलवा कम नहीं हो रहा है। नेताओं और रैलियों में टमाटर और अंडे पड़ना तो अब गुज़रे ज़माने की बात हो गई है। जूते ने ऐसा कब्ज़ा जमाया है कि मार्केट में भी जूते महंगे हो गये, यहां तक कि डिमांड बढ़ने के डर से जूतों की ब्लैकमेलिंग भी होने लगी है। जूतों के वार से सरकारें हिल गईं, किसी की नाक कटी तो कोई बेटिकट हो गया। बुश से चला जूता इंग्लैंड होता हुआ हिंदुस्तान तक पहुंच गया। लेकिन इस जूते के साथ अच्छी बात ये है कि नेताओं की तरह ऊंच-नीच का फर्क नहीं करता। शुरुआत जॉर्ज बुश से हुई, तो सिलसिला कांग्रेस के युवा नेता नवीन जिंदल तक पहुंचा। और जनाब अभी तो ये शुरुआत है। अभी तो सिलसिला शुरु हुआ है। दाम भले ही जूते के कम रहे होंगे। अफ़सोस रहा तो बस ये कि जूतेबाज़ निशाने के पक्के नहीं थे। जॉर्ज बुश पर दोनों में से एक भी नहीं लगा। हां जूते के दाम बहुत बड़ गये, ये अलग बात है कि दोनों जूते बेचारे खाक हो गये। मुंतज़िर अल जैदी जेल की सलाखों के पीछे पहुंचने के बावजूद दुनियाभर में हीरो बन गये। बुश पर जूता पड़ा तो सारी दुनिया हिल गई, लेकिन जिस पर जूता पड़ा उसने अपनी झेंप मिटाने के लिए सबसे पहले तो उसे माफ़ किया जिसने जूता मारा था और उसके बाद जूते की तारीफ़ में पड़ दिये कसीदे। जॉर्ज बुश तो लोगों को जूते का नंबर तक बता गये। सबसे खास बात ये है कि ये जूता मीडिया को अच्छा मसाला दे गया। कई-कई दिन जूते और इसकी महिमा बताने में ही बीत गये। ख़बर पर आगे रहने की होड़ में पत्रकारों में भी जूतमपैजार होने लगी। कोई जूते का इतिहास बता रहा था, तो कोई नेताओं को जूते से बचने के नुस्खे सिखा रहा था। लेकिन किसी ने भी जूते के इतिहास पर नज़र नहीं डाली।



पहले ये जूता नेताओं के गले का हार बनता था, बदला लेने के लिए इसे सबसे बड़ा हथियार बनाया जाता था। किसी को सज़ा देने के लिए उसे जूतों की माला पहनाकर बाकायदा गधे पर बैठाकर उसका जुलूस निकाला जाता था। लेकिन जूता सबका इतना प्रिय कैसे बन गया, इसकी इतिहास में आज तक कोई भी मिसाल नहीं मिलती। जूता अब तक कई लोगों पर पड़ा होगा, लेकिन इसको भी चर्चा तब ही मिली, जब इसने दुनिया की महान हस्तियों पर निशाना साधा। पहले बुश पर जूते की नज़रे इनायत हुई, उसके बाद चीन के प्रधानमंत्री वेन जियापाओ जूते का निशाना बने, फिर सबसे सीधे नेता पी चिदंबरम को जूते ने टारगेट पर लिया उसके बाद ये जूता कुरुक्षेत्र पहुंचा और नवीन जिंदल को निशाना बना गया। बुश पर जूता पड़ने पर भले ही दुनिया में कहीं खुशी और कहीं गम का माहौल रहा हो, लेकिन चिदंबरम और जिंदल पर जूता पड़ने की हर किसी ने निंदा की। क्योंकि ये दोनो नेता न सिर्फ़ बेदाग हैं, बल्कि इनकी इमेज पर कोई भी उंगली नहीं उठा सकता। हां जूता अपने गलत इस्तेमाल पर ज़रूर आंसू बहा रहा है। दूल्हे की सालियों के हाथ में रहने वाला जूता किसी नेता पर पड़ने के बाद सुर्खियां तो बहुत बटोरता है, लेकिन उसके बाद उसके हाल पर आंसू बहाने वाला कोई नहीं। जूता किस हाल में है इसकी किसी को भी फिक्र नहीं रहती। हर कोई जूते का क्रेडिट लेने में लगा रहता है। लेकिन जूते का कहना यही है कि उसका अब तक का सबसे खराब इस्तेमाल यही रहा कि उसे नेताओं पर इस्तेमाल किया गया। इसमें जूते को भी अपनी शान में गुस्ताख़ी नज़र आई, अरे भई उसकी नज़र में भी नेताओं की उतनी ही इज़्ज़त है, जितनी आम आदमी की नज़र में। कोई शक नहीं अपनी इस बेईज्ज़ती के लिए अब जूता मानहानि का दावा न कर दे। जूते को सबसे ज्यादा खुशी उसी वक्त होती है, जब वो नये-नवेले दूल्हे के पैर में होता है। सालियां इस बहाने दुल्हे की जेब पर डाका डालने में लगी रहती है, जूता बड़े जतन से छुपाया जाता है, सालियां अपने जीजा जी से जूते के बदले नेग हड़पने में लगी रहती हैं। और जूते मियां भी इस चकल्लस में खूब मज़ा लेते हैं। लेकिन जूते का सबसे बड़ा दुख ये है कि लोग उसे चोरी करने का भी मौका नहीं छोड़ते। मंदिर-मस्जिद हो या गुरुद्वारे हर कोई वहां से जूते उड़ाने में लगा रहता है। दुनियाभर में सुर्खियां बनने के बाद जूता भले ही आंसू बहा रहा हो, लेकिन जैदी, जरनैल और राजपाल तो हीरो बन ही गये।
1 Response
  1. Aarti Says:

    जूते की माया ने अच्छे-अच्छों को नाप दिया...मुझे तो लग रहा है जूते खुश ही हो रहे होंगे..हमेशा पैरों में रहते हैं कभी-कभी तो सर पर पड़ने का मौका मिलता है। अफ़सोस सिर्फ इस बात का है कि इस बार ये गलत जगह पर चल गया।