रामपुर का नाम वैसे तो नवाबों के लिए मशहूर है, लेकिन इस शहर में कुछ ऐसी नायाब चीज़ें भी हैं, जिसने इसका नाम दुनियाभर में रौशन कर दिया है। चाहें रामपुर के लज़ीज़ खानों की बात हो, या इस शहर की तहज़ीब की बात हो। लेकिन जिसने रामपुर को दुनियाभर में आला मुकाम दिलाया उस का नाम था रज़ा लाइब्रेरी। और इसके लिए शुक्रिया करना होगा उन नवाबों का जिन्हें हम हमेशा तानाशाह की निगाह से देखते आये हैं। शहर के बीचों-बीच आलीशान किले में बनी इस लाइब्रेरी ने न सिर्फ़ रामपुर के इतिहास की हिफ़ाज़त की है, बल्कि इसने दुनियाभर की तारीख को अपने आप में समेट लिया है। सोने की प्लेटों से सजी हुई छतें और एक ही पत्थर को तराश कर बनाई गई चौदह खूबसूरत मूर्तियां किसी का भी दिल जीत लेती हैं। उसमें 75 हज़ार से ज्यादा किताबें और 16 हज़ार बेशकीमती पांडुलिपियां, हाथी दांत पर अकबर और उसके नौ रत्नों की तस्वीरें इस नायाब धरोहर की कहानी खुद-ब-खुद बयां कर देती हैं।
रामपुर के नवाब और किताबों के बेहद शौकीन नवाब फैज़ुल्ला खां ने 1774 में उत्तर प्रदेश के रामपुर ज़िले में इस लाइब्रेरी की बुनियाद रखी। उनके इस शौक को और भी आगे बढ़ाया नवाब कल्बे अली खां। इस लाईब्रेरी में आज जो भी बेशकीमती ख़ज़ाना है वो रामपुर के नवाबों की ही देन है। नवाब कल्बे अली खां जब 1872 में हज पर गये तो वहां से ढेर सारी पांडुलिपियां अपने साथ ले आये जो आज भी लाईब्रेरी में मौजूद हैं। लाइब्रेरी में हिंदू, उर्दू, अंग्रेज़ी, मराठी और हिंदुस्तानी ज़बानों के अलावा फ्रेंच, जर्मन, रशियन और अंग्रेज़ी ज़ुबानों में भी ढेर सारी किताबें मौजूद हैं। 1957 में लाइब्रेरी को नई इमारत मिल गई, जिसमें ये आज भी चल रही है। ये इमारत इंडो-यूरोपियन कला का बेहतरीन नमूना है। हामिद मंज़िल के नाम से मशहूर इस इमारत को नवाब हामिद अली खां ने अपना दरबार लगाने के लिए बनवाया था और रियासत ख़त्म होने के बाद ये इमारत रज़ा लाइब्रेरी को दे दी गई।
इस इमारत के अंदर पत्थर की चौदह खूबसूरत मूर्तियां लगी हैं, जिसके लिए इटली से पत्थर मंगवाया गया था। खास बात ये है कि ये मूर्तियां एक ही पत्थर को तराशकर बनाई गईं हैं। इमारत में तो इतनी खूबियां हैं कि इस पर अलग से कुछ लिखा जा सकता है, फिलहाल बात लाइब्रेरी की ही करते हैं। लाइब्रेरी के खज़ाने में 500 से भी ज्यादा बेल-बूटों से सजी सोने के काम वाली बेहतरीन किताबें मौजूद हैं। इसके अलावा यहां पर अरबी की एक बेशकीमती किताब 'अजाइबुल मख़लूकात' भी है, जिसे ज़करिया बिन महमूद अल कज़बीनी ने 1283 में लिखा था। इसके अलावा मलिक मुहम्मद जायसी का फारसी में अनुवादित 'पदमावत', औरंगज़ेब के ज़माने में अनुवादित रामायण, तुर्की ज़ुबान में बाबर का 'दीवाने बाबर', उर्दू में इंशा अल्ला खां की रानी केतकी की कहानी, दुनिया भर की बेहतरीन पेंटिग्स, ईरान का इनसाइक्लोपीडिया, सिराज दमिश्की का 'उस्तूर-लाब', जैसा महत्वपूर्ण उपकरण है। इसका इस्तेमाल सूर्य-नक्षत्रों की गति मापने के साथ ही समंदर में यात्रा करते वक्त इस्तेमाल किया जाता था।
इसके अलावा इस लाइब्रेरी में जो सबसे खास चीज़ है वो है, हज़रत अली द्वारा चमड़े पर लिखा हुआ कुरान। वक्त के साथ लाईब्रेरी खूबसूरत होने के साथ ही हाईटेक भी होती जा रही है। दुनियाभर के पाठकों के लिए इसे ऑनलाइन कर दिया गया है। आज ये लाइब्रेरी न सिर्फ़ दुनियाभर में रामपुर के नाम को बरकरार रखे हुए है, बल्कि इसने नवाब फैज़ुल्ला खां के सपनों को भी साकार किया है। रज़ा लाईब्रेरी उन लोगों के लिए एक नायाब तोहफ़ा है, जो मुगलकालीन कला और किताबों के कद्रदान हैं।
रज़ा लाइब्रेरी पर और जानकारी के लिए आप इसकी साइट http://razalibrary.gov.in/ पर जा सकते हैं।
रामपुर के नवाब और किताबों के बेहद शौकीन नवाब फैज़ुल्ला खां ने 1774 में उत्तर प्रदेश के रामपुर ज़िले में इस लाइब्रेरी की बुनियाद रखी। उनके इस शौक को और भी आगे बढ़ाया नवाब कल्बे अली खां। इस लाईब्रेरी में आज जो भी बेशकीमती ख़ज़ाना है वो रामपुर के नवाबों की ही देन है। नवाब कल्बे अली खां जब 1872 में हज पर गये तो वहां से ढेर सारी पांडुलिपियां अपने साथ ले आये जो आज भी लाईब्रेरी में मौजूद हैं। लाइब्रेरी में हिंदू, उर्दू, अंग्रेज़ी, मराठी और हिंदुस्तानी ज़बानों के अलावा फ्रेंच, जर्मन, रशियन और अंग्रेज़ी ज़ुबानों में भी ढेर सारी किताबें मौजूद हैं। 1957 में लाइब्रेरी को नई इमारत मिल गई, जिसमें ये आज भी चल रही है। ये इमारत इंडो-यूरोपियन कला का बेहतरीन नमूना है। हामिद मंज़िल के नाम से मशहूर इस इमारत को नवाब हामिद अली खां ने अपना दरबार लगाने के लिए बनवाया था और रियासत ख़त्म होने के बाद ये इमारत रज़ा लाइब्रेरी को दे दी गई।
इस इमारत के अंदर पत्थर की चौदह खूबसूरत मूर्तियां लगी हैं, जिसके लिए इटली से पत्थर मंगवाया गया था। खास बात ये है कि ये मूर्तियां एक ही पत्थर को तराशकर बनाई गईं हैं। इमारत में तो इतनी खूबियां हैं कि इस पर अलग से कुछ लिखा जा सकता है, फिलहाल बात लाइब्रेरी की ही करते हैं। लाइब्रेरी के खज़ाने में 500 से भी ज्यादा बेल-बूटों से सजी सोने के काम वाली बेहतरीन किताबें मौजूद हैं। इसके अलावा यहां पर अरबी की एक बेशकीमती किताब 'अजाइबुल मख़लूकात' भी है, जिसे ज़करिया बिन महमूद अल कज़बीनी ने 1283 में लिखा था। इसके अलावा मलिक मुहम्मद जायसी का फारसी में अनुवादित 'पदमावत', औरंगज़ेब के ज़माने में अनुवादित रामायण, तुर्की ज़ुबान में बाबर का 'दीवाने बाबर', उर्दू में इंशा अल्ला खां की रानी केतकी की कहानी, दुनिया भर की बेहतरीन पेंटिग्स, ईरान का इनसाइक्लोपीडिया, सिराज दमिश्की का 'उस्तूर-लाब', जैसा महत्वपूर्ण उपकरण है। इसका इस्तेमाल सूर्य-नक्षत्रों की गति मापने के साथ ही समंदर में यात्रा करते वक्त इस्तेमाल किया जाता था।
इसके अलावा इस लाइब्रेरी में जो सबसे खास चीज़ है वो है, हज़रत अली द्वारा चमड़े पर लिखा हुआ कुरान। वक्त के साथ लाईब्रेरी खूबसूरत होने के साथ ही हाईटेक भी होती जा रही है। दुनियाभर के पाठकों के लिए इसे ऑनलाइन कर दिया गया है। आज ये लाइब्रेरी न सिर्फ़ दुनियाभर में रामपुर के नाम को बरकरार रखे हुए है, बल्कि इसने नवाब फैज़ुल्ला खां के सपनों को भी साकार किया है। रज़ा लाईब्रेरी उन लोगों के लिए एक नायाब तोहफ़ा है, जो मुगलकालीन कला और किताबों के कद्रदान हैं।
रज़ा लाइब्रेरी पर और जानकारी के लिए आप इसकी साइट http://razalibrary.gov.in/ पर जा सकते हैं।
सच कहा आपने ये पोस्ट पढने के याद तो यही लगता है कि.....
"रज़ा लाईब्रेरी रामपुर.. नाम ही काफ़ी है"
अच्छी जानकारी से रूबरू कराया आपने... शुक्रिया
बहुत खूब...मैं जब इंडिया न्यूज में था तो मैंने इसपे एक स्टोरी की थी...वाकई लाजवाब लाईब्रेरी है यह...
अच्छी जानकारी देने के लिए शुक्रिया।