अब कहिए जनाब, इस चप्पल के वार पर क्या कहेंगे आप? जब चिदंबरम पर जूता पड़ा तो बीजेपी ने इसकी निंदा तो की, लेकिन इसे इंसाफ़ की आवाज़ भा बता डाला था। लेकिन अब तो अपने ही कार्यकर्ता ने चप्पल से हमला किया। यानि अब आडवाणी जी को भी साफ़ हो गया होगा, कि उनके घर में ही कितनी जूतम-पैजार होती है। बीजेपी के एक कार्यकर्ता ने उन पर महज इसलिए चप्पल फेंक दी, क्योंकि उसको पार्टी ने स्थानीय स्तर पर उसके पद से हटा दिया था। ये हालत उन कार्यकर्ताओं की है, जो एसी में बैठने वाले नेताओं के लिए ज़मीन तैयार करते हैं। लेकिन पार्टी में किसी को इसकी फिक्र नहीं। आज बीजेपी की हालत ये है कि उसको यूपी और बिहार जैसे बड़े राज्यों में अपनी ज़मीन वापस पाने के लिए एड़ी चोटी का ज़ोर लगाना पड़ रहा है। अपने बचाव के लिए बीजेपी अब इसे ज्यादा तूल न देने की बात कर रही है। बीजेपी को लगता है कि चप्पल की जगह जूता भी हो सकता था। और ये घटिया राजनीति और पब्लिसिटी पाने का तरीका है। लेकिन जब यही जूता चिदंबरम पर पड़ा था, तो बीजेपी इसे इंसाफ़ की लड़ाई बता रही थी। यहां तक कि बीजेपी ने कांग्रेस नेता जगदीश टाइटलर और सज्जन कुमार के साथ ही पूरी कांग्रेस को कटघरे में खड़ा कर दिया था। अब आडवाणी पर चप्पल पड़ी है, तो बीजेपी इसे शर्मनाक घटना बता रही है। लेकिन बीजेपी इस हमले के पीछे की वजह जानने की कोशिश ही नहीं कर रही है। दरअसल बीजेपी में गुस्सा तो चुनाव से पहले ही उबाल पर था। पार्टी के वरिष्ठ नेता अरुण जेटली ने चुनाव से पहले ही तलवार म्यान से बाहर निकाल ली थी। जैसे-तैसे उन्हें मनाया गया, तो वरुण ने पार्टी की इमेज पर पलीता लगा दिया। उसके बाद जसवंत सिंह ने नोट बांटकर पार्टी की किरकिरी करने में कोई कसर हीं छोड़ी।
ऐसा पहली बार नहीं है कि बीजेपी में किसी कार्यकर्ता का गुस्सा सामने आया हो। कभी 2 पार्टियों वाली बीजेपी अपने कार्यकर्ताओं के दम पर ही दिल्ली की कुर्सी तक पहुंची थी। उसने सरकार मिलते ही अपने कार्यकर्ताओं को किनारे लगा दिया। दिल्ली में पार्टी ने उन्हीं मदन लाल खुराना को किनारे कर दिया, जिनके दम पर पार्टी ने दिल्ली में कमल खिलाया था। मध्य प्रदेश में पार्टी की फ़ायर ब्रांड नेता उमा भारती से पार्टी ने ऐसी बेरुखी दिखाई कि उमा तो गईं साथ में पार्टी के सैकड़ों ज़मीनी कार्यकर्ता भी पार्टी से रूठ गये। इसके अलावा बीजेपी के अर्श से फ़र्श पर पहुंचाने वाले कल्याण सिंह आज मुलायम सिंह के रहमो करम पर अपने राजनैतिक करियर को बचाने में लगे हैं। और तो और जब चुनाव लड़ने का नंबर आता है, तो बाहर से आकर वो नेता टिकट हड़प जाते हैं, जो दिल्ली के ऐसी कमरों में बैठकर देश की दिशा और दशा तय करते हैं। अटल बिहारी वाजपेयी आज जब इस बीजेपी का हाल देखते होंगे, तो शायद उनको अपनी मेहनत पर पानी फिरता नज़र आता होगा। और तो और प्रधानमंत्री बनने के लिए पार्टी में ऐसी आपा-धापी है कि आडवाणी को प्रधानमंत्री बनने से पहले ही पीएम-इन वेटिंग का खिताब दे दिया गया। ऐसा खिताब शायद दुनिया में पहली बार भारत में ही किसी को दिया गया होगा। यानि अगर आडवाणी पीएम नहीं बन पाए, तो भविष्य में उन्हें पूर्व पीएम इन वेटिंग के नाम से पुकार सकते हैं। आडवाणी के अलावा नरेन्द्र मोदी भी अपने प्रधानमंत्री बनने का शिगूफ़ा छोड़ देते हैं। कभी खुद तो कभी बड़े बिजनेस टाईकून मोदी को बेहतर प्रधानमंत्री साबित करने पर तुले रहते हैं। आडवाणी समेत पार्टी के बड़े नेता आम कार्यकर्ता से जुड़ने के बजाए विपक्षी पार्टियों पर ही निशाना साधने में लगे हैं। मुद्दों पर चुनाव लड़ने के बजाए बीजेपी और उसके नेता मनमोहन सिंह को कमज़ोर प्रधानमंत्री साबित करने में लगे हैं। पार्टी ने नारा दिया है, निडर नेता निर्णायक सरकार। वाकई ये नारा बीजेपी पर एकदम सटीक बैठता है। बीजेपी नेताओं की निडरता का अंदाज़ा इसी से लगाया जा सकता है कि उसके नेता खूंखार आतंकवादियों को कंधार छोड़कर आये। निर्णय लेने की क्षमता का अंदाज़ा इसी से लगा सकते हैं कि संसद से लेकर लालकिले तक पर आतंकवादी हमला कर गये और बीजेपी नेता निर्णय ही लेते रहे। बीजेपी और उसके दूसरे संगठन देश की समस्याओं पर सोचने के बजाए ये देखते हैं कि देश में कौन संस्कृति का पालन कर रहा है। कौन क्या पहन रहा है और कौन क्या खा रहा है। अरे आप देश तो संभाल नहीं सकते, तो लोगों की निजी जिंदगी में ही तांक-झांक शुरु कर दी। और शायद इसी का नतीजा है जो कटनी में हुआ। ज़मीन के कार्यकर्ता को नज़रअंदाज़ करके ड्राइंगरूम में सियासत नहीं हो सकती। बीजेपी और उसके नेता आडवाणी को इस मामले में गंभीर होना ही होगा, वरना कहीं ऐसा न हो कि आडवाणी पीएम इन वेटिंग ही रह जाएं।
ऐसा पहली बार नहीं है कि बीजेपी में किसी कार्यकर्ता का गुस्सा सामने आया हो। कभी 2 पार्टियों वाली बीजेपी अपने कार्यकर्ताओं के दम पर ही दिल्ली की कुर्सी तक पहुंची थी। उसने सरकार मिलते ही अपने कार्यकर्ताओं को किनारे लगा दिया। दिल्ली में पार्टी ने उन्हीं मदन लाल खुराना को किनारे कर दिया, जिनके दम पर पार्टी ने दिल्ली में कमल खिलाया था। मध्य प्रदेश में पार्टी की फ़ायर ब्रांड नेता उमा भारती से पार्टी ने ऐसी बेरुखी दिखाई कि उमा तो गईं साथ में पार्टी के सैकड़ों ज़मीनी कार्यकर्ता भी पार्टी से रूठ गये। इसके अलावा बीजेपी के अर्श से फ़र्श पर पहुंचाने वाले कल्याण सिंह आज मुलायम सिंह के रहमो करम पर अपने राजनैतिक करियर को बचाने में लगे हैं। और तो और जब चुनाव लड़ने का नंबर आता है, तो बाहर से आकर वो नेता टिकट हड़प जाते हैं, जो दिल्ली के ऐसी कमरों में बैठकर देश की दिशा और दशा तय करते हैं। अटल बिहारी वाजपेयी आज जब इस बीजेपी का हाल देखते होंगे, तो शायद उनको अपनी मेहनत पर पानी फिरता नज़र आता होगा। और तो और प्रधानमंत्री बनने के लिए पार्टी में ऐसी आपा-धापी है कि आडवाणी को प्रधानमंत्री बनने से पहले ही पीएम-इन वेटिंग का खिताब दे दिया गया। ऐसा खिताब शायद दुनिया में पहली बार भारत में ही किसी को दिया गया होगा। यानि अगर आडवाणी पीएम नहीं बन पाए, तो भविष्य में उन्हें पूर्व पीएम इन वेटिंग के नाम से पुकार सकते हैं। आडवाणी के अलावा नरेन्द्र मोदी भी अपने प्रधानमंत्री बनने का शिगूफ़ा छोड़ देते हैं। कभी खुद तो कभी बड़े बिजनेस टाईकून मोदी को बेहतर प्रधानमंत्री साबित करने पर तुले रहते हैं। आडवाणी समेत पार्टी के बड़े नेता आम कार्यकर्ता से जुड़ने के बजाए विपक्षी पार्टियों पर ही निशाना साधने में लगे हैं। मुद्दों पर चुनाव लड़ने के बजाए बीजेपी और उसके नेता मनमोहन सिंह को कमज़ोर प्रधानमंत्री साबित करने में लगे हैं। पार्टी ने नारा दिया है, निडर नेता निर्णायक सरकार। वाकई ये नारा बीजेपी पर एकदम सटीक बैठता है। बीजेपी नेताओं की निडरता का अंदाज़ा इसी से लगाया जा सकता है कि उसके नेता खूंखार आतंकवादियों को कंधार छोड़कर आये। निर्णय लेने की क्षमता का अंदाज़ा इसी से लगा सकते हैं कि संसद से लेकर लालकिले तक पर आतंकवादी हमला कर गये और बीजेपी नेता निर्णय ही लेते रहे। बीजेपी और उसके दूसरे संगठन देश की समस्याओं पर सोचने के बजाए ये देखते हैं कि देश में कौन संस्कृति का पालन कर रहा है। कौन क्या पहन रहा है और कौन क्या खा रहा है। अरे आप देश तो संभाल नहीं सकते, तो लोगों की निजी जिंदगी में ही तांक-झांक शुरु कर दी। और शायद इसी का नतीजा है जो कटनी में हुआ। ज़मीन के कार्यकर्ता को नज़रअंदाज़ करके ड्राइंगरूम में सियासत नहीं हो सकती। बीजेपी और उसके नेता आडवाणी को इस मामले में गंभीर होना ही होगा, वरना कहीं ऐसा न हो कि आडवाणी पीएम इन वेटिंग ही रह जाएं।
आडवाणी तो मजबूत नेता हैं, उनके लिए मजबूत चप्पल की ज़रूरत पड़ेगी.
यानी चिदम्बरम के जूते और आडवाणी की चप्पल में आपको कोई अन्तर नज़र नहीं आया? अब क्या कहा जा सकता है…