रूबीना फॉर सेल, रूबीना बिक रही है.. रूबीना का बाप उसको बेचने के लिए तैयार है... 2 करोड़ रूपये में बेचने की तैयारी, बाप ने किया बेटी का सौदा। रूबीना की लग गई कीमत। ये कड़वी हकीकत है उस हिंदुस्तान की जिसकी स्लमडॉग दुनियाभर में तहलका मचा रही है, वो स्लमडॉग जो स्लम वालों को छोड़कर बाकी सबको मिलेनियर बना रही है। गोल्डन अवार्ड से लेकर ऑस्कर तक में धूम मचाने वाली इस फिल्म की नन्हीं कलाकार रूबीना के सामने आ गई वो कड़वी हकीकत जिसे उसने परदे पर जिया, उसका खुद का बाप उसका सौदा कर रहा था, अपनी उस बेटी का सौदा, जो उसके जिगर का टुकड़ा थी। बाप ने कैश कराया उस बेटी के नाम को जो इस मासूम उम्र में दुनिया में हिंदुस्तान का नाम रौशन कर रही है। दिलचस्प बात ये है कि रूबीना के बिकने का खुलासा भी किया तो एक ब्रिटिश वेबसाइट ने। और रूबीना को झुग्गी से चमक-दमक भरे रैंप पर पहुंचाया तो वो भी ब्रिटेन के डैनी बॉयल ने। रूबीना के बारे में हमने न तब सोचा और न अब। अलबत्ता इतना ज़रूर है कि तब उसकी कामयाबी पर हमने तालियां बजाई थीं, और अब उसकी बदहाली पर अफ़सोस जता रहे हैं। वैसे भी इसके अलावा हम और कर भी क्या सकते हैं।
लेकिन यहां अहम सवाल ये है कि अगर रूबीना की जगह कोई और लड़की होती, और उसके बिकने की बात आती, तो क्या हम इसी तरह जाग जाते? क्या कोई मीडिया हाउस उस लड़की के पिता का स्टिंग ऑपरेशन कर उसके बिकने की साजिश का खुलासा करता? मीडिया की मेहरबानी से रूबीना तो बच गई, लेकिन देश में कितनी लड़कियां ऐसी हैं, जो भूख और गरीबी के इस दौर में अपने मां-बाप और रिश्तेदारों द्वारा बेच दी जाती हैं। और उसके बाद वो किस हाल में जीतीं हैं, कोई नहीं जानता। दूसरों के जूठे बरतन मांजने से लेकर चकलाघर तक उन्हें नर्क जैसी ज़िंदगी से गुज़रना पड़ता है। कुछ मासूम तो हवस के भेड़ियों का शिकार बन जाती हैं। लेकिन न तो कोई उनका पुरसाहाल होता है और न ही उनके दर्द किसी को अपने लगते हैं।
समाज के भूखे भेड़िये उनके जिस्म को नोंच कर अपनी हवस मिटाने में लगे रहते हैं। लेकिन अफ़सोस ये कि उनकी किस्मत रूबीना जैसी नहीं होती। न तो कोई रूबीना की तरह उनकी झुग्गियों में जाकर उनका हाल पूछना चाहता है, और न ही कोई उन पर फिल्म बनाता है। जो लोग उनके लिए धड़ी भर का एहसान भी करते हैं, उसके लिए वो सरकार और विदेशों से अच्छी-खासी रकम ऐंठ लेते हैं। सरकार की स्कीमों का फायदा कोई और उठाता है। और जो इसके हकदार हैं, उनकी निगाहें किसी रहनुमा को खोजती रहती हैं। और मदद करने आते हैं लंबी-चौड़ी गाड़ियों से उतरने वाले लोग, जो उनका भाव लगाते हैं, उन पर एक फिल्म बनाते हैं, उस पर अवार्ड बटोरते हैं, उसकी कामयाबी पर बड़ी-बड़ी पार्टियां करते हैं और फिर मूंछों पर ताव देकर विदेशों की सैर पर निकल जाते हैं। और फिर बाज़ार में कोई और लगाता है उनकी बोली। क्योंकि ये बदनसीब तो बिकने के लिए ही बने हैं।
गाँधी ने ठीक ही कहा था, गरीबी ही सबसे बड़ी हिंसा है। गरीब आदमी क्या-क्या करने पर मजबूर हो जाता है। रुबीना को बेचने पर इतना बवाल है, इसका १% बवाल भी यदि इस विषय पर हो जाये कि "भारत में इतनी गरीबी क्यों है" तो सोचिये... ... ...
इस आज़ादी का क्या लाभ? सिर्फ सत्ता हस्तांतरण हुआ है। जनता की फिक्र आज भी किसी को नहीं।
सहमत हूं आपसे ... वास्तव में गरीबी ही सबसे बडा अभिश्शप है ... गरीबों के घर जन्म लेनेवाले बदनसीब तो बिकने के लिए ही बने हैं।
"....................................................................................................................." बिना कमेंट्स किए जा रहा हूँ. क्योंकि आपने निरुत्तर कर दिया.
... उम्दा लेखन..
Nobody is 'born for sale'...what Rubina's father did signifies narrow mindset of many who weigh human relations against money and power. Danny Boyle has gone to the extent of critcising his decision to cast li'l (so called) 'slumdogs' in his movie. In your blog, we can read how Britain's 13 year old Alfie's father had cashed his son's 'achievement'....now what can one call it?? They might have never experienced slumlife. Its all about how much you value human relations or whether a father looks upto his daughter as potential star or wads of Rs.2 crore
अबयज़ जी , क्या कहूँ.....? उसके पिता ने भी न जाने क्या सोच कर ये फैसला किया होगा .......एक तरफ उनकी बेटी है....दूसरी ओर गरीबी.....!!
बिकने की बदनसीबी की जो बयानगी आपने की है... निसंदेह वो समाज के हर वर्ग के आंख और कान खोलने वाली है..लेकिन उससे भी अहम है..वो सच्चाई जिसे आपने मीडिया से जोड़कर उसे आईना दिखान का काम किया है..लिखते रहिए..ताकि ऐसी कटू सच्चाईयों पर मंथन जारी रहे.... राकेश
असल मे गरीबी एक अभिशाप है। जो इंसान को हैवान बना देती है।रूबीना तो बच गई लेकिन आपकी बात सही है ऐसी हजारों रुबीनाएं हैं जिन की कोई सुध लेने वाला नही।यदि मीडिया भी ऐसी घटनाओ पर पैनी नजर रखे और जहां पता चले उसे उजागर करे तो कुछ तो सुधार हो सकेगा।