
अरे कहां हैं...आप..? आपके सपनों की कार अब आपसे विदा ले रही है... और आप खामोश हैं...
पहले आपका स्कूटर आपसे विदा हुआ.. और अब आपकी कार... अरे वही कार जिसके लिए आपने अपनी जेब काटकर कुछ रुपये गुल्लक में जमा किया थे... वही कार जिसके लिए आपने अपना पुराना स्कूटर भी बेच दिया था... चार पहियों वाली छोटी सी वही कार, जिसे शोरूम से घर लाने के बाद आप सीना चौड़ाकर घूमते थे.. जिसके लिए, आपने आनन-फानन में आंगन के बाहर एक गैराज भी तैयार कराया था.. अरे भई कार आ रही है, तो गैराज क्यों नहीं होगा... वरना कार खड़ी कहां होगी... कार आने के बाद उसकी आवभगत में क्या जश्न हुआ था..
कार को देखने के लिए पूरा मोहल्ला जमा हो गया था.. मजाल क्या कोई बच्चा उसे छू तो ले... उस पर ज़रा सी खरोंच भी आ जाए तो उफ्फ़ जान ही निकल जाए.. वही कार जिसमें बैठकर आप अपने-अपनों को ही भूल जाते थे..
वही कार जिसने सोसाइटी में आपका स्टेटस सिंबल बढ़ा दिया था... अपने बीवी बच्चों के साथ आप जब उस कार में बैठते थे, तो शायद खुद को किसी लॉर्ड से कम नहीं समझते थे..
घर में सपनों की कार ने आपको बड़ा आदमी बनाया था, तो साथ में अदब और सलीका भी सिखाया था... कपड़े पहनने का सलीका सिखाया था.. अब कार में बैठने के लिए क्रीज़ वाले ही कपड़े पहने जाते थे.. कार ज़रा सी गंदी हो जाए, तो फिर क्या.. पूरा घर मिलकर उसकी धुलाई-सफ़ाई में लग जाता था.. कार ने ज़रा सी खिचखिच क्या की, बस ज़रा देर में ही पहुंच गई गैराज... उसके नाज़-नखरे उठाने के लिए पूरा घर लग जाता था.. बात-बात में आप कहीं जाने के बहाने ढूंढते थे, ताकि कार को गैराज से निकालकर कहीं तफ़रीह ही कर आएं..
कार में बैठने के बाद रूतबा ऐसा बढ़ा था, कि अब नु्क्कड़ की चाय पीने के बजाए रेस्त्रां में बैठकर गप्पें नोश फ़रमाई जाती थीं... कहीं बाहर खाना खाने के बहाने ढूंढे जाते थे... बेगम और बच्चों के साथ गर्मियों की छु्ट्टियों में पहाड़ पर जाने के प्रोग्राम बनते थे..

इधर छुटिटयों का ऐलान हुआ, उधर पूरा घर जुट गया तैयारियों में... पीछे डिग्गी में भरा ढेर सारा सामान.. और चल दिये मंज़िल की ओर... और कार बेफिक्र हर कहीं आपके साथ जाने को तैयार.. हरदम तैयार... बस स्टार्ट करने की देर है.. और लो जी चल पड़ी अपनी मंज़िल की तरफ़... फिर चाहें कैसी ही सड़क हो.. सड़क ऊबड़-खाबड़ हो या फिर उसमें गड्ढे हों...पथरीली हो, या फिर पहाड़ की चढ़ाई, बेचारी ने उफ़्फ तक नहीं की...
कार में चलने के बाद आपकी शाहखर्ची भी बढ़ गई थी.. भले ही पैसे से आप अमीर न बने हों, लेकिन कार ने आपका रूतबा तो ज़रूर बढ़ाया था... अब आप सादा फिल्टर के बजाए सिगार पीने लगे थे.. यार दोस्तों में कार की शानदार सवारी के किस्से बार-बार सुनाए जाते थे... आपकी बेगम मोहल्ले भर की औरतों को कार के किस्से-कहानियां सुनाती थीं..
और आपके पप्पू की तो पूछिए ही मत.. स्कूल में सब बच्चे अब पप्पू से दोस्ती करना चाहते थे, ताकि किसी बहाने पप्पू की कार में चड्डू खाने को मिल जाए.. चड्डू न सही कम से कम कार तो देखने को मिल ही जाएगी...
वक्त का पहिया घूमा तो मारूति ने मिडिल क्लास से निकलकर गरीब आदमी के घर में कदम रखा...
सेकेंड हेंड मारूति के चलन ने उन लोगों को भी कार वाला बना दिया, जो खुद को 'बे'कार समझते थे... कार ने आम आदमी का इतना ख्याल रखा, कि 20 से 50 हज़ार की हैसियत वाले भी मारूति 800 की बदौलत कार वाले हो गए... लेकिन अब आप बड़े आदमी हो गए, तो उस छोटी सी कार को भला क्यों याद रखेंगे... वक्त के साथ आपके सपने भी बड़े होने लगे हैं... अब मारूति को छोड़कर आप लक्ज़री कार में सवार हो चुके हैं... अब आपको अपनी कार का शीशा हाथ से ऊपर चढ़ाने की ज़रूरत नहीं हैं... अब आपकी गाड़ी में सब कुछ ऑटोमेटिक है... बड़ी कार के साथ रूतबा और भी बढ़ा हो गया है...अब आप ऐसी की ठंडी हवा में लक्ज़री कार की सवारी का लुत्फ़ लेते हैं..देश की बड़ी आबादी को कार वाला बनाने वाली मारूति 800 जा रही है... कभी न लौटकर आने के लिए.. लेकिन आपको क्या.. आपकी बला से...

26 साल का लंबा अरसा तय करने के बाद मारूति कंपनी ने उस कार को बंद करने का फैसला किया है, जो हिंदुस्तान के मिडिल क्लास के परिवार को ढोती थी...जो किसी वक्त में हिंदुस्तान के सुखी परिवार का स्टेट्स सिंबल बन चुकी थी..
14 दिसंबर 1983 को जब इंदिरा गांधी ने इसे गुड़गांव से लॉंच किया था, तो कार बाज़ार में तहलका मच गया था... हालांकि भारत में उस वक्त कुछ गिनी-चुनी ही कारें थीं.. और वो भी अमीरों के शौक में शामिल थीं... मिडिल क्लास तो तब कार के बारे में सोच भी नहीं सकता था.. मारूति से सिर्फ़ खानदान ही नहीं जुड़े थे, बल्कि इस कार के साथ जज़्बात जुड़े थे...
26 बरस में मारूति ने करीब 28 लाख से ज्यादा 800 मॉडल की कारें बेचीं.. लेकिन आज वही कंपनी कह रही है, कि हम भावनाओं को हावी नहीं होने देते.. देश में ख़तरनाक होती आबोहवा के लिए अब इस बेचारी को भी ज़िम्मेदार ठहराया जा रहा है... लेकिन कोई ये नहीं कहता कि सड़कों पर दनानदन दौड़ रही कारें भी तो इसके लिए ज़िम्मेदार हैं... फिर बेचारी अकेली मारूति 800 पर ही तोहमत क्यों..? कंपनी ने बाकी सभी कारों को यूरो-4 पर अपग्रेड कर लिया है, और मिडिल क्लास के बाद आम आदमी की इस कार पर किसी को ज़रा भी तरस नहीं खाया...