Dec
29

उसकी महक से सारा जहान महक उठता था.. उसके आने से ही हवाएं भी मदमस्त होकर चलती थीं... उसके आने की जब ख़बर महकी, उसकी खुशबू से मेरा घर महका... उसकी खुशबू से मेरा मन महका... ज़िंदगी फूल की पत्तियों की तरह और नाज़ुक हो गई... दिन पहले से और बड़े लगने लगे... इंतज़ार और भी बेहतरीन लगने लगा... वक्त की शायद इफ़रात हो चुकी थी... तमाम उम्र भी कम लगने लगी... सात जन्म भी कम लगने लगे... उसके आने की ख़बर से ही दिल बेकरार होने लगता... उसके जाने की ख़बर से बेचैनियां बढ़ जातीं... मुझे सरे-राह कोई मिला था... और मेरी ज़िंदगी में दाखिल हो चुका था... अगले जन्म में भी उसके साथ के लिए दुआएं होने लगीं...

फूल इतने खूबसूरत लगने लगे, कि उसमें से ग़ज़ल निकलने लगी... उर्दू से बेपनाह मौहब्बत हो गई... उसकी छोटी-छोटी खुशियां जान से भी ज्यादा प्यारी लगने लगीं... मन करता कि काश अपनी एक अलग दुनिया हो, जहां कोई रोक-टोक न हो... जहां सबकुछ अपनी मर्ज़ी से हो... जहां किसी की दख़लअंदाज़ी न हो... जहां उसके साथ सिर्फ़ मैं हूं... और इसके सिवा कुछ भी नहीं... कुछ भी नहीं... सिर्फ़ हो तो बस इश्क की कैफियत... मौहब्बत का एक खुशनुमा एहसास.... हमारे दरम्यान न उदासी हो... न तन्हाई हो... अगर हो तो सिर्फ़ एक खुशनुमा एहसास... रंग भरा एहसास...एक हल्की सी छुअन...
लेकिन शायद ये सबकुछ इतना आसान नहीं था... मकतबे इश्क में हमने एक ढंग ही निराला देखा... उसको छुट्टी न मिली जिसको सबक याद हुआ.... अब हर तरफ़ सन्नाटा है... ऐसा लगता है, जैसे वक्त से पहले पतझड़ आ चुका हो... पेड़ों से पत्ते सब झड़ चुके हैं.. मौसम करवट बदल चुका है... लेकिन अफ़सोस ये कि बसंत भी तो नहीं आया... अब न फूलों से ग़ज़ल निकलती है... न उर्दू से मौहब्बत है... न सांसों में पहले की तरह रवानगी है... अब समंदर से भी डर लगता है... अब उनींदी आंखो में सपने भी नहीं आते... अब न रुमानियत है.... न जाने क्यों एसा लगता है जैसे कोई सफ़र में साथ था मेरे... फिर भी संभल-संभल के चलना पड़ा मुझे... अब इंतज़ार है बस फिर से मौसम बदलने का.... और मुझे यकीन है... पतझड़ के बाद फिर से बहार आएगी... और मौसम फिर से पहले से भी ज्यादा हसीन हो जाएगा...